Friday 2 November 2012

मन मन्दिर

पाकर 

बस इक स्पर्श तुम्हारा 

यह मन मंदिर बन जाता 

मन के अंदर 

भाव हैं जितने  

उनको बस इक स्पर्श से 

तुम्हारे 

अर्थ कितना है मिल जाता 

मन के भाव 

मन में रहते 

पर आँखों से यह 

सब कुछ कहते 

जो भी होता 

मन के अंदर 

दिखता आँखों के रस्ते 

घंटे घड़ियाल 

सब मन में बजते 

दीप के थाल 

मन में सजते 

उड़ती जो सुगन्धित 

धूप की बयार 

मन सुगन्धित हो जाता 


पाकर 

बस इक स्पर्श तुम्हारा 

यह मन मंदिर बन जाता 











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