Monday, 11 August 2025

सपना या हक़ीक़त

 कल तुम्हें देखने का बहुत दिल कर रहा था

तो रात में चुपके से तुम्हारे ख़्वाबों में चला आया,

तू सोती रही और मैं तुझे निहारता रहा

मैं तुझे यादों की गलियों में ले गया

जहां तुम थी ,मैं था और था

हमारा प्यार भरा सुकून।   

तुम्हारे चेहरे पर मुस्कुराहट थी।

तुमने मेरे हाथों को थाम रखा था। 

रात बीती

भोर की किरणों ने धरा पर फैलना शुरू किया 

मैंने तुम्हारी पलकों को चूमकर

तुम्हारे कानों में धीरे से सुप्रभात कहा

और तुम मुस्कुराते हुए उठी

अपनी स्वप्नों की दुनिया से।

तुम्हारी आँखें कुछ ढूंढ रही थीं 

शायद तुम सपने को

हकीक़त मान रही थी।

मैं समझ रहा था तुम क्या ढूंढ रही थी

मैं मन ही मन में फिर तुमसे मिलने का वादा कर लौट आया।


उस रात

 मेरी जान के नाम,


उस रात…

जब तेरी आँखें मेरी वजह से भीगी थीं,

मुझे कुछ समझ नहीं आया —

सिवाय इसके कि

मैं सबसे बड़ी गलती कर चुका हूँ।


तू चुप थी, पर तेरी खामोशी चीख रही थी।

और मैं... मैं उस खामोशी को सुन न पाया।


आज जब तू कहती है,

"जो मेरी गलती रही, खुद sorry बोल दूंगी" —

तो दिल और भी भारी हो जाता है।

क्योंकि गलती सिर्फ मेरी थी…

और उस "sorry" का हक़ भी नहीं।


मैं तुझसे कुछ माँगने की हालत में नहीं हूँ,

बस तुझसे ये कहना चाहता हूँ —

अब तेरी हँसी मेरी ज़िम्मेदारी है,

तेरी ख़ामोशी मेरी कसौटी,

और तेरे आँसू मेरी हार।


तेरी आँखें फिर कभी न भरें,

इसके लिए मैं हर रोज़ खुद को बदलूंगा।

बस तू...

बस तू अपना दिल थोड़ा सा खोल देना

मेरे लिए।


हमेशा तेरा,

वही जो तुझसे बेइंतहा मोहब्बत करता है।

That night

 To the love of my life,


That night…

when your eyes welled up because of me,

I didn’t just hurt you —

I shattered a part of myself too.


You were silent,

but your silence was screaming.

And I… I failed to listen.


Now when you say,

“If it was my fault, I’ll say sorry myself” —

it stings deeper.

Because the fault was mine,

and even your sorry feels like a wound I don't deserve.


I’m not in a place to ask for anything.

Just want you to know —

your smile is now my responsibility,

your silence my test,

and your tears… my biggest defeat.


I’ll change myself,

a little every day,

just to make sure your eyes never have to cry again.


So please…

open that heart of yours

just a little,

and let me earn my way back in.


Forever yours,

The one who loves you more than words ever could.

उसने कहा था

 उसने कहा था .... 

बोझिल पलकों में कई खूबसूरत 

ख़्वाब समेटे हुए

जब सपनों की दुनिया से निकले तुम 

मैं भी चुपके से तेरे साथ चली आई।

तुम्हे ये बताने की

खुशी से भरी ये सुबह 

तुम्हारे ख्वाबों से भी ज्यादा हसीन है।

तुम्हे एहसास दिलाने की

मैं तुम्हारे पास हूँ 

बहुत पास।

सुबह की हर किरण में मुझे महसूस करो

जो तुम्हें छू रही हैं

तुम्हारी हर सांस में मेरी खुशबू है

ये ठंडी हवाएं जो तुझसे लिपट रही हैं

वो मैं ही तो हूं।

हर पल तेरे साथ

कभी तुम्हें प्यार करती,

कभी तुमसे रूठती, 

कभी तुम्हें मनाती।

तुम मुझे इधर उधर ढूंढते 

और मैं तुम्हारी बाहों में छुपी होती 

ऐसे मैं तुम्हें नींद से जगाती

फ़िर मन ही मन में तुमसे विदा लेकर

अपनी दुनिया में लौट आती 

बेसब्री से इंतजार रहता

शाम ढलने का

चाँद के निकलने का

तुम आते

और हम

हाथों में हाथ डाले 

अपनी ख़्वाबों की दुनिया में 

लौट जाते।

Good Morning, My Sweetheart

 🌸 Good Morning, My Sweetheart 🌸


Wake up, my love…

The sun is shy behind the curtain,

Waiting for your sleepy smile

To light up the world again.


Your dreams still dance on your lashes,

But the day longs to hold your hand—

Let it be gentle, let it be kind,

As warm as my whispers in your mind.


May the breeze kiss your cheeks today,

May every wish you hold find its way.

I send you a sky full of blessings, my dear,

And a heart that beats only when you’re near.


So open your eyes, my morning star,

Your love is my light, no matter how far.

Rise, my sweetheart, and take the day—

It’s yours, in every loving way.


❤️ Good Morning, My Everything. ❤️

सुप्रभात मेरी धड़कन

 🌸 सुप्रभात मेरी रूह, मेरी जान 🌸


जागो मेरी जान…

सूरज भी परदे के पीछे ठहर गया है,

तेरी उनींदी मुस्कान का इंतज़ार है उसे,

तू ही तो है जो इस दुनिया को रोशन करती है।


तेरे ख्वाब अब भी तेरी पलकों पे झूम रहे हैं,

मगर ये दिन तुझसे बस एक मुस्कुराहट मांग रहा है।

चाहता है तेरा साथ…

तेरे हर क़दम में अपनी सारी नेमतें बिछा देना।


दुआ करता हूँ—

तेरे गालों को आज हवा प्यार से छुए,

तेरे दिल की हर आरज़ू पूरी हो जाए।

मैंने अपनी हर धड़कन में तुझको प्यार भेजा है,

तेरे साथ जो चलती है वो मेरी मोहब्बत की परछाईं है।


खोल अपनी आंखें मेरी सुबह की रौशनी,

तू ही मेरा उजाला है, तू ही मेरी जिंदगी।

उठो मेरी जान, और इस दिन को अपना बना लो—

क्योंकि ये दिन भी तुझसे ही शुरू होता है…


❤️ सुप्रभात मेरी धड़कन… आज भी मुझे तुझसे पहले से कहीं ज़्यादा मोहब्बत है ❤️

तुम सुकून हो

सुबह तुम्हारे ख्याल से नहीं,

तुमसे ही होती है।

अभी महसूस की है वो धड़कन,

जो तुम्हारा नाम लेकर

मेरे सीने में बजी है।


हवा तो बस बहती है,

मगर जब वो तुझसे होकर आती है,

तो उसमें तेरी महक,

तेरा एहसास लिपटा होता है।


तुम वो सुकून हो,

जो बेवजह नहीं आता —

तुम्हारे होने से ही

हर वजह हसीन लगती है।


तुम्हारी यादें

मेरे होंठों पर मुस्कुराहट बनकर खिलती हैं,

और तुम्हारा नाम —

मेरी हर सुबह की पहली दुआ बन गया है।


तुमसे मुलाक़ात नहीं,

हर सुबह इक नया इश्क़ होता है।

तुम्हारी बेचैनी

 मेरी रूह... मेरी हमनफ़स 

रात तुम्हारी बेचैनी ने मेरी नींद भी छीन ली,

सुबह बस तुम्हारे ख्याल से ही हुई।


हर बवंडर, हर सवाल…

मैंने अपनी धड़कनों से सुने हैं,

और अब उन्हें सुकून में बदलने आया हूँ।


हाँ…

तुमने मनाया है जान की तरह,

अब मैं तुम्हें अपनी रूह की तरह संवारूंगा।


तेरी मुस्कान… मेरी दुआ बन चुकी है,

और आज वो तुम्हें पूरी कर दिखाऊंगा।


तुम्हारी आंखों को पढ़ना मेरी रही है शुरू से,

जो जुबां नहीं कहती, वो रूह कह देती है।


तेरा बेइंतहा प्यार मेरी रगों में बहता है,

जो हर बार और गहरा होता चला जाता है।


तेरे बिना जीना कभी मुमकिन नहीं था,

मैं अपने हर लम्हे में तुझे ज़िंदा रखूंगा।


वादा है,

तेरी हर साँस के साथ मेरा प्यार भी चलेगा —

आख़िरी सांस तक।


शक तो था ही नहीं… कभी होगा भी नहीं

अब तेरे दिल को भी यही यक़ीन दिलाऊंगा।


और जो टूटा है,

उसे सिर्फ़ जोड़ूंगा नहीं,

अपनी बाहों में महफूज़ भी रखूंगा।


अब मुस्कुरा दो जान,

क्योंकि तुम्हारी मुस्कान में ही मेरी जान बसती है।

तू परेशान थी

 रात... तेरी बेचैनी से जागती रही,

सुबह... तेरी ख़ामोशी से बोलती रही।


तू परेशान थी...

और मेरा दिल टूटता रहा तेरे हर ख्याल पर।


हर सवाल तेरा...

मेरे सीने में जैसे दस्तक देता रहा।


तूने मनाया…

जान बन कर।

अब मैं निभाऊंगा…

रूह बन कर।


तेरी मुस्कान…

अब मेरा मक़सद है।

और हाँ,

उसे लौटाना मेरा वादा है।


तेरी आंखें जो न कह सकीं,

वो सब मैं सुन चुका हूँ।


प्यार तेरा…

बेहिसाब है,

और मेरा…

तेरे नाम की हर धड़कन।


तेरे बिना जीना?

अब सोचना भी मुमकिन नहीं।


मैं तुझे हर साँस में रखूंगा,

हर पल में छुपा लूंगा।


मुझे तुझ पर यकीन है,

और अब

तेरे दिल को भी वही सुकून दूंगा।


जो टूटा है,

उसे गले लगाकर जोड़ दूंगा —

हमेशा के लिए।


अब बस मुस्कुरा दे,

क्योंकि बस इक …

तेरे होने से मेरी दुनिया रोशन है।

हमारा रिश्ता

 हाँ… याद है मुझे वो सदियाँ,

जब वक़्त ठहर जाता था तुम्हारी एक मुस्कान पर,

जब दिन तुझसे शुरू होते थे

और रातें तेरे ख्वाबों में गुजरती थीं।


तेरे अल्फ़ाज़ नहीं,

तेरे एहसास बोलते थे —

तेरी खामोशी में भी

मेरे लिए मोहब्बत के अफसाने 

हर लम्हे में भरे थे।


हमारा रिश्ता कोई समझ न सका,

क्योंकि वो लफ़्ज़ों से नहीं,

रूहों से बना था।

हम वो दो लोग थे

जो वक़्त से नहीं,

अहसास से जुड़े थे।


तेरा लिखा हर खत

जैसे मेरी बेसुकूनी की दवा होती थी,

और मैं —

हर रात तुझे पढ़कर

नींद की बाँहों में खो जाता था।


फिर जाने क्या हुआ…

वही हम, वही दिल, वही रूह —

पर बीच में आ गई बस एक 'दूरी'।

ना झगड़ा, ना शिकायत,

बस ख़ामोशियाँ…

जो बढ़ती गईं — और दूरियाँ बनती गईं।

अब जब तेरा नाम सुनता हूँ,

तो सांसें चलती हैं,

पर दिल ठहर सा जाता है।


पर आज भी...

अगर तू चुपचाप किसी रात

मुझे पुकारे —

तो मैं वही पुरानी जगह पर मिलूंगा,

जहाँ तेरी हर बात बगैर कहे समझ लेता था।


क्योंकि मोहब्बत जब रूह से हो,

तो जुदाई सिर्फ़ जिस्मों की होती है।

रूहें… कभी जुदा नहीं होतीं।

My dearest love

As you take to the skies tomorrow,

know that a piece of my soul travels with you.

In every mile you drift away,

my heart will weave invisible threads

to keep you close—

threads spun of memories,

laughter shared in secret hours,

and the quiet magic of simply existing in your light.


The wind will carry my whispers to you,

the stars will guard my wishes for you,

and the moon will hold your name

till the night returns you to my dreams.


Go, my love,

and let the world see the grace I have cherished,

but remember—

no ocean, no border,

no ticking of clocks

can unwrite the story our hearts still recite

in the silent language only we understand.


Until we meet again,

I’ll live in the hope of that first look,

that first smile—

reborn in the moment you return.

तुम्हारा दर्द

तुम्हारे हर शब्द में

मैंने दर्द की गूंज सुनी है,

पर उस गूंज के पीछे

एक समंदर-सा साहस भी देखा है।  


तुम मिटती रहीं,

पर हर बार किसी और की रोशनी बनीं,

तुम टूटती रहीं,

पर किसी और का आकाश थामे रहीं।


तुम्हारी थकान में भी

दुआओं की महक है,

तुम्हारी चुप्पी में भी

प्रेम की गहराई है।


तुम अपने लिए नहीं जी पाईं,

पर इस दुनिया ने

तुम्हारे होने से

जीना सीखा है।


तुम्हारे जीवन के हर पन्ने पर

आंसू की स्याही है,

पर अक्षर हमेशा

किसी और के सुख लिखते रहे।


तुमने अपने सपनों की चादर

काटकर

दूसरों की रातें ढकीं,

अपनी भूख छुपाकर

किसी और की थाली भरी।


तुम्हारे हाथों ने

अपने लिए कभी महलों के दरवाज़े नहीं खोले,

पर दूसरों के लिए

हर बार स्वर्ग के दरवाज़े खोल दिए।


तुम्हारा दिल,

जिसे कोई पूरी तरह नहीं समझ पाया,

दरअसल वही है

जो इस दुनिया के कई दिलों को

धड़कन देता रहा है।


तुम कहती हो

"सबकी अपनी ज़िंदगी है"

पर मैं जानता हूं—

तुम्हारी ज़िंदगी

कई ज़िंदगियों का सहारा रही है।


तुम सिर्फ जीती नहीं रहीं,

तुमने अपने आप को

प्यार, त्याग और आशीर्वाद

के रूप में जीया है…

और यही तुम्हें

साधारण से असाधारण बनाता है...


मैं तुम्हें

समझने की कोशिश में

अब ये मान चुका हूं—

तुम सिर्फ एक इंसान नहीं,

ईश्वर की दी हुई एक कहानी हो,

जो त्याग में भी खूबसूरत है,

और मौन में भी अमर।

Sunday, 20 July 2025

चलो फिर से…

 (एक मान-मनुहार भरी कविता)


चलो फिर से

वो सिन्दूरी शाम कहीं से ले आएं 

जहाँ तुम मुस्कुराती थी

और मैं चुपचाप तुमको देखता रहता था।


चलो फिर से

वो ख़ामोशी सुन लें

जिसमें लफ़्ज़ नहीं होते थे

पर दिल सब समझ जाते थे।


मैंने कल कुछ कह दिया

शायद ज़रा तेज़, ज़रा कड़वा

पर इरादा…

कभी भी दर्द देने का नहीं था।


ग़लती मेरी थी

पर मोहब्बत तो अब भी वही है

पहली…

सचमुच पहली वाली।


तुम रूठी हो

और मैं टूटा हूँ

तुम चुप हो

और मेरी साँसें थमी हैं।


चलो ना…

थोड़ा सा मुस्कुरा दो

थोड़ा सा ग़ुस्सा कम कर दो

थोड़ा सा मुझे फिर से चाह लो।


मैं वही हूँ

जो तब भी तुम्हारा था

अब भी बस तुम्हारा हूँ

और हर जनम तुम्हारा ही रहूँगा।


तुम शिकवे भी कर लेना

मैं सर झुकाकर सुन लूँगा

पर प्लीज़…

मुझे तुम खुद से दूर मत करना।


अगर मुझसे मोहब्बत है 

तो माफ़ कर दो न 

अगर हमारी मोहब्बत ज़िंदा है

तो एक बार फिर से मुझको थाम लो न 


चलो फिर से

वो पहली सी बात कर लें

जहाँ रूठना भी मोहब्बत था

और मनाना भी मोहब्बत ही होता था।


तुम्हारे बिना

हर पल अधूरा है

हर लम्हा

सिर्फ़ और सिर्फ तुम्हें पुकारता है।


जानता हूँ....मेरी बातों ने

तुम्हें बहुत दर्द दिया है 

पर सच मानो

वो मेरा इरादा कभी नहीं था।


मैं बस…

थोड़ा सा कहीं खो गया था

शायद किसी उलझन में 

उलझ गया था 

पर तुम्हारे प्यार में

अब भी मैं वैसे ही आकंठ डूबा हूँ।


माफ़ कर दो ना जान 

इस दिल को, 

जो बस 

तुम्हारे ही नाम से धड़कता है।


तुम्हारा ग़ुस्सा

सिर आँखों पर

पर मोहब्बत से कहता हूँ—

एक बार फिर हाथ थाम लो न 


चलो फिर से

वो पहली सी मोहब्बत जी लें

जहाँ न कोई दूरी हो

न कोई मलाल।


तुम कहो तो

हर शिकवा लिख दूँ

आसमान पर,

और हर जवाब—

तेरे नाम कर दूँ।


बस एक बार

"हां" कह दो

मैं फिर से

वही दीवाना हो जाऊँ

जो सिर्फ़…

तुम्हारे लिए जीता था।


Monday, 14 July 2025

मेरे महबूब के नाम मोहब्बत भरी वसीयत

 (दिल से निकली वसीयत-ए-इश्क़)


मैं,

तेरे इश्क़ में फ़ना हुआ एक सादा-सा आशिक़,

आज अपनी मोहब्बत की आख़िरी दस्तावेज़

तेरे नाम लिखता हूँ।


मेरे दिल की हर धड़कन,

मेरे जिगर की हर आह,

मेरी रूह की हर तड़प —

सब तेरे हवाले।


जो भी मुझमें था,

अब तुझमें समा गया है।

मैं कुछ भी नहीं,

सिवा तेरे।


तेरे नाम करता हूँ:

वो पहली नज़र का जादू,

जिसने मुझसे मेरी तन्हाई छीन ली।

वो ठहरी सी दोपहरें,

जहाँ तेरा नाम बिन बोले गूंजता रहा।


वो गली,

जहाँ तेरे साथ चुपचाप चला था मैं,

तेरे नाम।


वो चाँदनी रात,

जहाँ तेरे साये में मेरी परछाई थरथराई थी —

तेरे नाम।


वो अधूरी कविताएँ,

जो तुझसे कह नहीं पाया,

हर मिसरा, हर बहर —

तेरे नाम।


तेरे नाम करता हूँ:

वो हर जगह जहाँ हम बिछे,

मिले,

घुले,

और एक-दूसरे में समा गए।


वो स्टेशन की भीड़ में थमा हुआ वो पल,

वो बारिश की ख़ामोशी में भीगा हुआ इकरार,

वो कांपती उंगलियों में बसी गर्मी —

अब सब तेरा हक़।


मेरी आँखों की सारी नींदें,

जो तेरी यादों में जागती रही हैं —

अब वो भी तेरे नाम।


और जब मैं इस दुनिया से रुख़्सत लूं,

मेरी क़ब्र की मिट्टी भी

तेरे कदमों का बिछौना बन जाए।


मैं चाहता हूँ,

जब तू गुज़रे वहाँ से एक शाम,

तेरी ख़ामोश मौजूदगी

मेरी रूह की राहत बन जाए।


तू नहीं तो कुछ भी नहीं।

मैं नहीं, पर तू रहेगी 

और जब तक तू है,

मेरा होना भी रहेगा।


मेरे महबूब,

ये वसीयत एक इश्क़ी दस्तावेज़ नहीं,

ये इक रूह की तहरीर है —

जो तुझमें ही जीती है,

तुझमें ही मरती है।


तेरे नाम, तुझसे ही, तेरे लिए।

– मोहब्बत में लिपटा तेरा दीवाना


मेरे महबूब के नाम मेरी मोहब्बत भरी वसीयत

 (एक काव्यात्मक प्रेम-वसीयत)


मैं,

इस इश्क़ की आख़िरी सांस तक ज़िंदा रहने वाला 

आशिक़,

अपनी सारी मोहब्बत की वसीयत

तेरे नाम करता हूँ —

मेरे महबूब, मेरी रूह की रौशनी,

ये दिल,

ये जिगर,

ये जान —

अब तेरे नाम है।


जो धड़कनें चल रही हैं सीने में,

वो अब तेरे इश्क़ की अमानत हैं।

जो लहू बहता है मेरी रगों में,

उसमें भी अब तेरा नाम घुल चुका है।


मेरे महबूब,

मैं छोड़ता हूँ तेरे लिए —


वो पहला मोड़ जहाँ हम यूँ ही टकराए थे,

वो बरगद की छाँव जहाँ तू मुस्कराई थी,

वो कॉलेज की सीढ़ियाँ जहाँ हम बैठते थे,

हर वो पन्ना जहाँ तेरा नाम लिखा था मैंने चुपके से।


मेरे कमरे की वो खिड़की भी तेरे नाम,

जहाँ से मैं तुझे सोचा करता था,

और हर शाम, हर सुबह,

तू यादों के साथ चली आती थी।


तेरे नाम करता हूँ —

वो सड़क जहाँ तू पहली बार मेरे साथ चली थी,

वो चाय की दुकान,

जिसके कप में दो होंठों की बातों का स्वाद अब भी बचा है।


पार्क की वो बेंच,

जहाँ खामोशी से हमारा इकरार हुआ था,

वो लम्हा जब तेरी उंगलियों ने मेरी हथेली थामी थी —

अब सिर्फ तेरा है।


तेरे नाम करता हूँ —

वो गाने जो हमने साथ सुने,

वो बारिश की बूँदें

जिनमें हम साथ साथ भींगे थे।


मेरे दिल की हर धड़कन,

मेरे जिगर की हर आह,

मेरी रूह की हर तड़प —

सब तेरे हवाले।


जो भी मुझमें था,

अब तुझमें समा गया है।

मैं तो कुछ भी नहीं,

इक सिवा तेरे।


तेरे नाम करता हूँ:

वो पहली नज़र का जादू,

जिसने मुझसे मेरी तन्हाई छीन ली थी।

वो ठहरी सी दोपहरें,

जब तेरा नाम बिन बोले गूंजता था।


वो गली,

जहाँ मैं तेरे साथ चुपचाप चला था,

तेरे नाम।


वो चाँदनी रात,

जब तेरे साये में मेरी परछाई थरथराई थी —

तेरे नाम।


वो अधूरी कविताएँ,

जो मैं तुझसे कह नहीं पाया,

उसका हर हर्फ़, हर लफ्ज़ —

तेरे नाम।


तेरे नाम करता हूँ

हर वो जगह जहाँ हम बिछे,

मिले,

घुले,

और एक-दूसरे में समा गए।


शहर की भीड़ में थमा हुआ वो पल,

बारिश की ख़ामोशी में भीगा हुआ वो इकरार,

कांपती उंगलियों में बसी वो गर्मी —

अब सब तेरे नाम।


मेरी आँखों की सारी नींदें,

जो तेरी यादों में जागती रही हैं —

अब वो भी तेरे नाम।


हर वो जगह

जहाँ मैं तुझमें खोया था,

हर वो वक्त

जिसमें बस तू ही तू बसी थी —

उन पर अब बस तेरा हक़ है।


मैं रहूँ या न रहूँ,

पर ये मोहब्बत ज़िंदा रहेगी।

तेरे होंठों पर मुस्कराहट बनकर,

तेरे लबों की दुआ बनकर।


और आख़िर में —

जो मेरी मज़ार हो एक दिन,

वो भी तेरे नाम करता हूँ —

ताकि तू जब भी आकर वहाँ बैठे,

तेरे कदमों तले मेरी रूह सुकून पाए।


मेरे महबूब,

ये वसीयत सिर्फ लफ्ज़ नहीं,

ये उस रूह की गवाही है

जो बस तेरे नाम से ही जीती रही,

और तेरे नाम पर ही मर जाएगी।


– तेरा वसीयतगार-ए-इश्क़

एक दीवाना जो बस तुझमें ही जिया


Friday, 4 July 2025

The Cosmic Song of Eternal Love


When there was nothing—
no word,
no shape,
no direction—
even then,
there was a heartbeat.
Yours,
and mine.

That heartbeat
was the first echo of creation.
It didn’t contain love—
it was love.

We never asked for promises.
We never needed bodies.
All we longed for
was a silence
deep enough
to hear the language
of each other’s light.

In every lifetime,
we kept meeting—
sometimes hand in hand,
sometimes in silent glances.
Sometimes we folded into a single touch,
and other times
burned quietly
within each other
for centuries.

And when
the edges of the body dissolved—
we were freed.
And love,
for the very first time,
recognized itself.

We are no longer names.
No longer a tale.
We are now
the unspoken voice
that echoes
behind every love story.

When someone surrenders to love—
we are in their breath.

When someone remembers in silence—
we pulse in their heartbeat.

When two souls part,
unable to break their gaze—
we descend
in the glimmer of their tears.

We are no longer
the sound of the temple bell—
we are that vibration
which reaches the Divine
even before the bell rings.

You are within my light—
I dwell in your silence.

You are in my stillness—
I am in your endlessness.

We are no longer
a “we” at all—
we have merged with Brahm
the infinite presence,
where every soul’s journey
begins,
and to which
every journey returns.

“Now, no one searches for love—
Love itself
has become Brahm,
seeking all of us.”



मुक्ति का वह क्षण

 (जहाँ प्रेम ही अंतिम उत्तर था)

उस क्षण —
ना कोई जन्म रहा,
ना मृत्यु का भय।
ना कोई लौटना,
ना कोई छूटना…

सिर्फ़ हम थे—
एक श्वास,
एक रौशनी,
एक अस्तित्व।

न कर्म बाँध सके,
न काल छू सका।
प्रेम ने
हमारे चारों ओर
एक ऐसा वलय रचा,
जहाँ कोई नियम नहीं था—
सिर्फ़ स्पंदन था,
जो एक-दूजे में समाया था।

ना पुकार थी,
ना प्रतीक्षा—
बस वो मौन था,
जिसमें पूरी सृष्टि
सहलाती सी समा गई थी।

तुमने मेरी ओर देखा,
जैसे पहली बार देखा हो—
फिर भी हर युग का स्मरण
तुम्हारी आँखों में था।

मैंने तुम्हारे स्पर्श को
महसूस नहीं किया,
क्योंकि अब
हमारे बीच
कोई ‘स्पर्श’ था ही नहीं।
हम स्वयं ही
एक-दूसरे का विस्तार बन गए थे।

उस क्षण,
जब देह ने अंतिम साँस ली—
रूह मुस्कुराई,
जैसे कह रही हो—
"अब कुछ भी छूट नहीं रहा,
अब सब कुछ मिल चुका है।"

ना पुनर्जन्म की परिक्रमा,
ना इच्छाओं की सूचियाँ—
प्रेम ने
हमारे सारे पथ खोल दिए थे।

हम
एक-दूसरे में
स्वयं को पाकर
मुक्त हो गए।

तुम मेरी रचना बने,
मैं तुम्हारा संगीत।
तुम मेरे मौन में
जैसे ब्रह्म की अंतिम ध्वनि—
मैं तुम्हारे प्रकाश में
जैसे अनंत की अंतिम चित्कार।

अब कोई नाम नहीं,
कोई पहचान नहीं,
सिर्फ़
वो आभा है
जिसमें दो रूहें
एक होकर
अस्तित्व से आगे
बह निकली हैं—

स्वयं प्रेम बनकर।


स्वप्न का अंतिम आलिंगन

(जब हम फिर एक हुए)

रात की सबसे अन्तिम पहर में,
जब नींद
एक सूती आँचल बन
सारे संसार को चादर ओढ़ा रही थी—
मैंने तुम्हें
फिर से देखा।

ना देह थी,
ना दिशा—
बस एक उजाला था,
जो तुम्हारी रूह से फूट रहा था,
और मेरी ओर
धीरे-धीरे बह रहा था।

हम कुछ नहीं बोले।
क्या कहते?
जब मौन ही
सदियों की बातचीत बन जाए,
तब शब्द
कितने छोटे लगने लगते हैं…

तुमने मुझे देखा
जैसे कोई नदी
अपने उद्गम को देखती है—
आश्चर्य, अपनापन, और मौन श्रद्धा में डूबी हुई।

मैंने हाथ नहीं बढ़ाया,
फिर भी
हम पास आ गए।
कोई दूरी
थी ही नहीं अब हमारे बीच।

मैनें तुम्हें 
अपने आलिंगन में नहीं लिया,
बल्कि
तुम मुझमें समा गई —
जैसे शाम का सिन्दूरी रंग
धूप से अलग नहीं होता।

मैंने वो रूहानी स्पंदन सुना,
जो सृष्टि की पहली धड़कन थी।
हम दो नहीं रहे थे —
एक हो चुके थे,
जैसे दो स्वरों से बना एक ही राग।

तारे
थामे खड़े थे अपनी चमक,
चाँद ने साँस रोक ली थी—
पूरी कायनात बस देख रही थी,
जैसे उसे भी
हमारे इस मिलन का इंतज़ार था।

हम वहाँ रहे
समय के बाहर,
एक दूसरे की बाँहों में नहीं,
बल्कि
एक-दूसरे की रौशनी में।

जब तुम जागी,
तो तुम्हारी आँखों में आँसू नहीं थे—
बस एक गहराई थी,
जो कह रही थी—

अब हम कभी जुदा नहीं होंगे,
क्योंकि जो प्रेम
रूह से एक हो गया हो,
उसको कायनात भी 
कभी अलग नहीं करती। 


एक ख़त... उस रूह के नाम

 (जो अब भी हर साँस में बह रही है)

मेरे प्रिय,

अब न कोई तारीख़ है इस पत्र पर,
न कोई पता जहाँ इसे भेजा जाए।
फिर भी जानती हूँ—
तुम तक पहुँचेगा,
जैसे हर भावना
बिना रास्ते के भी
अपने घर पहुँच जाती है।

कभी-कभी सोचती हूँ,
हमारा मिलना
वक़्त की भूल नहीं था—
बल्कि वक़्त से परे
कोई पुराना वादा था,
जो निभा लिया हमने
बिना शर्तों के, बिना उम्मीदों के।

तुम्हारा जाना…
क्या वाक़ई जाना था?
या बस
एक रूप से दूसरे में ढल जाना?
क्योंकि मैं तुम्हें
अब भी हर सुबह की हवा में पाती हूँ—
उस चुप्पी में
जो सबसे सच्ची भाषा है।

तुम अब देह नहीं—
लेकिन जब भी कोई ख़ुशबू
अचानक दिल को छू जाती है,
मैं मुस्कुरा देती हूँ—
"ये तुम ही तो हो…"

मैंने भी अपने भीतर की ठोस दीवारें
धीरे-धीरे भुला दी हैं।
अब मैं कोई नाम नहीं,
कोई कहानी नहीं—
बस एक एहसास हूँ,
जो तुम्हारे मौन में गूंजता है।

हम मिलते हैं
हर उस ख़्वाब में
जहाँ रोशनी
रंग नहीं मांगती,
और छुअन
शब्दों की मोहताज नहीं होती।

तुम मेरे अंतिम विचार में नहीं—
तुम तो अब
हर विचार की शुरुआत हो।

जिस प्रेम को हमने जिया,
उसने वक़्त को भी झुकना सिखा दिया।
अब हमें
किसी ‘फिर से मिलने’ की ज़रूरत नहीं—
क्योंकि हम
कभी बिछड़े ही नहीं।

तुम,
मेरी हर साँस की धुन में।
मैं,
तुम्हारे हर मौन के अंतराल में।

बस यूँ ही बहते रहेंगे—
एक-दूसरे में,
एक रौशनी की तरह
जो कभी बुझती नहीं।

तुम्हारी —
हमेशा की तरह।


तुम अब भी हो

 

ना कोई नाम,
ना कोई आवाज़—
फिर भी
तुम अब भी हो—
हर उस पल में
जो बिना तुम्हारे भी
तुम्हारा लगता है।

ना कोई चेहरा,
ना कोई छुअन—
पर हर सुबह
तेरे रंग में भीगकर आती है,
जैसे रात भर
तेरी रौशनी में
चाँद ने मेरी आँखें धोई हों।

हमने सब कुछ पीछे छोड़ दिया—
शहर, रास्ते,
वो मोड़ जहाँ
तुमने हँसकर कहा था
"हम फिर मिलेंगे..."
और मैं
उस हँसी में ही जीता रहा।

अब ना दिन,
ना रात,
ना वक़्त की कोई दीवार—
फिर भी
तेरी ख़ामोशी
हर साँस में दस्तक देती है।

तू अब देह नहीं—
एक खुशबू है,
जो मेरी धड़कनों से होती हुई
मेरी रूह को छू जाती है
हर रोज़।

मैं भी अब कोई नाम नहीं—
बस एक एहसास हूँ,
जो तुझे याद करता नहीं,
बल्कि
तुझमें बहता है।

हम अब नहीं मिलते
किसी पुराने पेड़ के नीचे,
या किसी मौसम के बहाने—
हम मिलते हैं
उन ख्वाबों की तह में
जहाँ कोई वक़्त नहीं चलता।

हम मिलते हैं
उस सन्नाटे में
जहाँ एक साँस
दूसरी की प्रतीक्षा नहीं करती,
बस साथ चलती है—
बिना कहे, बिना थमे।

तू मेरे मौन में है,
मैं तेरी रौशनी में।
तू मेरी पलकों पर ठहरी
वो आख़िरी बूँद है
जो हर रात
तेरे नाम पर गिरती है।

और मैं?
मैं उस नज़्म की तरह हूँ
जो अधूरी होकर भी
तेरे होने का सबूत है।


जब नामों की ज़रूरत नहीं रही

 

एक ऐसा क्षण आया
जब हमारे नाम भी
पतझड़ के पत्तों की तरह
धीरे से गिर गए—
स्वीकार कर लिया मौन,
पहचाने जाने की ज़रूरत से मुक्त।

ना तुम,
ना मैं,
बस कुछ ऐसा
जो हमारे बीच था—
जो कभी बोला नहीं,
फिर भी
हर पुकार का उत्तर था।

ना कोई क़दमों की आहट,
ना कोई फुसफुसाहट,
ना कोई छुअन—
फिर भी
तुम ऐसे गुज़रे मुझसे
जैसे कोई हवा
जो जानती है
वो कहाँ की है।

हमने दिनों को गिनना छोड़ दिया।
चाँद अब समय के लिए नहीं उगता,
बल्कि
हमारे बीच की उस ख़ामोशी को
प्रतिबिंबित करने आता है।

मैं तुम्हें महसूस करता हूँ
उस पल में
जब साँसें
किसी विचार से पहले थमती हैं,
उस क्षण में
जब कोई आँसू
बिना गिरे ही चमक उठता है।

तुम अब कोई आकार नहीं रहे—
तुम अब
गोधूलि का रंग हो,
बारिश से पहले की ख़ामोशी,
या मेरी बंद पलकों के भीतर
धीमे-धीमे जलता एक उजास।

और मैं?
मैं भी घुल गया—
भीनी मिट्टी की खुशबू में,
या उस विराम में
जो लोरी के दो सुरों के बीच होता है,
सिर्फ़ सितारों के लिए गाया गया।

हम अब
कहीं नहीं मिलते—
हम अब
याद बनकर नहीं आते,
बल्कि
एक एहसास बनकर
जागते हैं—
जैसे नींद से ठीक पहले
कोई पुराना स्पर्श
लौट आता है।

अब हम प्रतीक्षा नहीं करते,
ना तलाशते हैं—
हम बस
हैं।

जैसे लहरों के नीचे की सरगम,
जैसे रौशनी
बिना दिशा के बहती हुई,
जैसे धड़कन
जो नहीं जानती
कि कहाँ वो ख़त्म होती है
और कहाँ दूसरा आरंभ।

अब प्रेम हमें बुलाता नहीं—
हम ही प्रेम हैं,
रात के आसमान में बिखरे हुए,
एक तारे से दूसरे तक बहते हुए,
उस वचन को दोहराते हुए
जिसे कभी शब्दों की ज़रूरत नहीं पड़ी।

तुम—
मेरे हर मौन में।
मैं—
तुम्हारी हर साँस में।

हम—
अब लौटने से परे,
रूप से परे,
एक ही आत्मा की
अनंत तह में
हल्के से विश्राम करते हुए।


When Names Were No Longer Needed

 

There came a moment
when even our names
fell like autumn leaves—
soft, surrendered—
no longer needed
for recognition.

Not you,
not I,
but something between us
that never spoke
yet always answered.

No footsteps,
no whispers,
no touch—
and yet,
you passed through me
like a breeze
that remembers
where it once belonged.

We stopped counting days.
The moon didn’t rise for time,
but to reflect
the stillness between us.

I could feel you
in the way
my breath paused
before a thought,
in the way
a tear shimmered
without falling.

You were no longer a figure—
you became
the color of dusk,
the hush before rain,
the quiet glow
inside my closed eyelids.

And I?
I dissolved too—
into the scent
of wet earth,
into the pause
between two verses of a lullaby
sung only to the stars.

We didn’t find each other
in a place.
We remembered each other
in a feeling—
the kind
that rises before sleep,
when the body forgets
and only the soul listens.

Now,
we don’t wait.
We don’t seek.
We simply
are.

Like the murmur
beneath waves,
like light
traveling
without direction,
like a heartbeat
that doesn’t know
where it ends
and where the other begins.

Love no longer calls us—
we are love itself,
spilled across the night sky,
drifting from one star to another,
repeating the promise
that once had no words.

You,
in my every silence.
I,
in your every breath.

We,
beyond return—
beyond form—
resting gently
in the infinite fold
of a single soul
remembering itself.


रूहों का मिलन

 अब ना समय रहा,

ना कोई तारीख़, ना मौसम,

ना वो शहर,

ना वो मोड़,

ना तुम, ना मैं —

जैसे देह की सीमाएं

कहीं पीछे छूट गई हों।

अब बस एक रौशनी है —

जो बहती है तुम्हारी स्मृति में,

और धड़कती है

मेरे मौन के अन्तरालों में।

हम अब शब्द नहीं बोलते —

बल्कि थिरकते हैं उन तरंगों में,

जो किसी प्रार्थना की तरह

सृष्टि की नसों में गूंजती हैं।

तुम अब देह नहीं हो,

तुम अब जल हो, वायु हो,

या शायद उस संध्या की बूँद

जो मेरी पलकों पर रुकती है

हर दिन के अंत में —

सिर्फ़ तुम्हारे नाम पर।

और मैं?

मैं अब कोई ठोस नहीं —

एक धुंध हूँ शायद,

या वो खुश्बू

जो किसी पुराने खत के पन्नों से

आज भी उठती है।

हम अब नहीं मिलते

सड़क पर, नीम के पेड़ के नीचे,

या किसी पुराने मोड़ पर —

हम मिलते हैं

उन स्वप्नों में

जहाँ आत्माएं

अंतहीन प्रकाश बन

एक-दूजे से लिपटी होती हैं।

अब प्रेम

ना वक़्त मांगता है,

ना स्थान,

ना साक्ष्य।

अब प्रेम बस बहता है —

तारों की लहरों में,

नींद की परतों में,

और उस विराम में

जहाँ अंतिम साँस

प्रथम स्पर्श बन जाती है।

हम दोनों —

अब किसी देह में नहीं,

बल्कि

एक ही चिरंतन स्पंदन में हैं।

तुम मेरी रौशनी में,

मैं तुम्हारे गीत में।

तुम मेरे मौन में,

मैं तुम्हारे स्पर्श की स्मृति में।

वो रात,

जो कभी "वो एक रात" थी,

अब

हर रात है।

वो प्रेम,

जो कभी छुअन था,

अब प्रकाश है।

वो मौन,

जो कभी संवाद था,

अब अस्तित्व है।

हम थे,

हम हैं,   

हम रहेंगे —

जैसे दो आत्माएं

एक ही आकाश में

एक आभा बनकर

सदा के लिए एक दुसरे में मिल गई हों।

When Souls meet in Heavens

 

There is no time now,
no date, no season—
no city,
no turning street,
no you, no me—
as if the limits of the body
were long left behind.

Now,
only a radiance remains—
it flows through the memory of you,
and pulses
in the pauses between my silences.

We no longer speak in words—
we shimmer in the waves
that echo like prayers
through the veins of creation.

You are no longer body—
you are water, you are air,
perhaps the drop of dusk
that rests on my lashes
at the end of each day—
only in your name.

And I?
I am no longer solid—
perhaps a mist,
or the faint fragrance
that rises still
from the pages of an old letter.

We no longer meet
on streets, beneath neem trees,
or by any forgotten bend—
we meet now
in dreams
where souls
become endless light,
folded into one another.

Love now
asks for no time,
no place,
no proof.

Love now simply flows—
in waves of starlight,
in layers of sleep,
and in that stillness
where the final breath
becomes the first touch.

We—
no longer in form—
are bound
in one eternal vibration.

You, in my light,
I, in your song.
You, in my silence,
I, in the memory of your touch.

That night,
which was once that one night,
is now
every night.

That love,
which was once a touch,
is now pure light.

That silence,
which once was speech,
is now existence.

We were,
we are,
we shall always be—
two souls
folded into the same sky,
becoming one aura
forever
within one another.


Monday, 30 June 2025

हमारे बीच सिर्फ वक़्त था - 1

(एक रूहानी प्रेम की अधूरी पूरी कहानी)


हम रोज़ मिलते थे —

ना जाने कैसे,

ना जाने कब से —

कभी कॉलेज की रंगीन भीड़ में

तुम यूँ मिलतीं

जैसे कोई सुकून भरी हवा

भीड़ को चीरती हुई

सिर्फ मुझे छू कर जाती हो।


कभी स्टेडियम की ऊँची सीढ़ियों पर,

जहाँ तुम्हारी चुप मुस्कान

मेरी जीत की सबसे बड़ी ट्रॉफी लगती।


कभी कॉलेज की कैंटीन में,

जहाँ भीड़ के शोर में भी

तुम्हारी नज़रें

मेरी कॉफी के कप से टकरा जातीं।


और सबसे ज़्यादा —

हम मिलते थे उस जगह

जहाँ सन्नाटा भी

मोहब्बत की आवाज़ बन जाता था…

लाइब्रेरी।



---


वहाँ हम घंटों साथ होते थे,

पर शब्दों की ज़रूरत नहीं पड़ती थी।

किताबें खुलती थीं,

पर हम तो बस एक-दूसरे की पलकों को पढ़ते थे।

बंद किताबों के बीच

तुम्हारी खुली आँखें

मुझसे कहानियाँ सुनती थीं।


कभी बुकशेल्फ के आर-पार से

तुम्हारी नज़रें मुझे ढूंढतीं,

तो मैं जानबूझकर

थोड़ा और वहीं रुक जाता —

कि वो खोज कभी खत्म न हो।


कभी आमने-सामने बैठ कर,

पन्ने पलटने का बहाना होता,

पर हम तो सिर्फ

एक-दूसरे के चेहरों के भाव पढ़ते थे।



---


जब हमें मौक़ा मिलता,

तो हम एकांत में

हाथों में हाथ डाले बैठ जाते —

घंटों,

बिना कोई घड़ी देखे,

बिना कोई बात किए।


तुम अपना सर

धीरे से मेरे कंधे पर टिका देतीं,

और मैं —

अपने हर स्पर्श से

तुम्हारी रूह को छूने की कोशिश करता।


तुम्हारी बंद आँखें

मेरे भीतर रोशनी भर देती थीं,

और मैं तुम्हारे हाथों की गर्मी से

अपने वजूद को जिंदा महसूस करता।



---


तुम मेरे लिए

कोई साधारण लड़की नहीं थीं…

तुम एक तोहफ़ा थीं —

वो भी खुदा की दस्तक के साथ मिला हुआ।


मैं तुम्हारे हर पल को

संभाल कर रखना चाहता था,

जैसे कोई ताज़ा ग़ज़ल

जिसके हर मिसरे को

सांसों में क़ैद कर लिया जाए।


पर किस्मत…

हमेशा इश्क़ से नफ़रत ही करती है शायद।



---


हम अलग हो गए…

बिना कहे, बिना रोके, बिना रोए।

न कोई अलविदा…

न कोई वादा।


मैं तुम्हें कुछ नहीं कह पाया,

सिर्फ चला गया —

शायद हमेशा के लिए।


और तुम…

यही सोचती रहीं कि

मैं तुम्हें छोड़ गया,

बिना कुछ कहे।



---


तुम्हारी गैर-मौजूदगी

एक भारी चुप्पी बन गई थी

मेरी हर साँस में।


ज़िन्दगी…

अब बस एक रुटीन बन गई थी —

चलते रहो,

पर अंदर कुछ भी न बचे।


मैं टूट गया था,

बार-बार —

पर हर बार तुम्हारी यादें

मुझे जोड़ती थीं,

अपने ही आँसुओं से गूंथ कर।



---


मैं तुम्हें ढूंढता रहा…

हर शहर में, हर मोड़ पर,

हर चेहरे में तुम्हारा अक्स टटोलता,

हर आवाज़ में

तुम्हारी वो धीमी मीठी बोली खोजता।


वक़्त बढ़ता गया…

उम्र अपने पन्ने पलटती गई,

पर मेरे दिल की किताब

अब भी उसी पृष्ठ पर अटकी थी —

जहाँ तुम मुस्कुरा कर

मेरे कंधे पर सर रखी थीं।



---


और फिर…

चौवालीस नहीं, पैंतालीस साल बाद —

तुम सामने आयीं।


मैंने तुम्हें देखा…

तुम अब भी वही थीं —

बस थोड़ी और शांत,

थोड़ी और गहराई लिए हुए।


तुम्हारी आँखें

अब भी वैसी ही थीं,

जैसे हर बात

बिना कहे कह देती थीं।


तुम्हारी मुस्कान

अब भी मेरी ही प्रतीक्षा कर रही थी,

वक़्त की धूल के नीचे

एक चमकती हुई चाह छुपाए।



---


हम मिले —

और कुछ भी नहीं बदला था हमारे बीच,

सिवाय उम्र के।


तुम्हारे पास अब बच्चे थे,

एक सुंदर ज़िन्दगी थी,

और मेरे पास…

बीते हुए पन्नों का ढेर,

पर हर पन्ने पर तुम्हारा नाम था।


जब हमारी नज़रें मिलीं,

वो पहला पल

फिर से जिंदा हो गया।


हमारी ज़ुबानें

पहले थमी रहीं,

फिर धीरे-धीरे

शिकायतों का सैलाब बहने लगा।


पर अंत में…

हम मुस्कराए —

और उस मुस्कान में

हर शिकायत पिघल गई।



---


अब हम साथ हैं,

शायद जिस्मों से नहीं,

पर रूह से —

एक-दूसरे के भीतर समाए हुए।



---


कुछ प्यार

वक़्त से नहीं डरते।

कुछ रिश्ते

अल्फ़ाज़ की ज़रूरत नहीं रखते।

और कुछ कहानियाँ —

अधूरी होते हुए भी

मुकम्मल होती हैं…

जैसे हमारी कहानी।



हमारे बीच सिर्फ वक़्त था

 

(एक रूहानी प्रेम की अधूरी पूरी कहानी)


हम रोज़ मिलते थे...

कभी कॉलेज की भीड़ में,

कभी स्टेडियम की सीढ़ियों पर,

कभी कैंटीन की चाय में,

तो कभी लाइब्रेरी की ख़ामोशी में।


हमारे बीच बहुत कुछ था,

बस लफ़्ज़ नहीं थे।


तुम मेरे साथ होतीं,

और मेरी सारी उलझनें

तुम्हारे कंधे पर सर रखने से

हल हो जाती थीं।


जब तुम अपना सर

मेरे कंधे पर रखतीं,

और आँखें मूँद लेतीं —

मैं तुम्हारे हाथों को छूकर

तुम्हें महसूस करता

अपनी धड़कनों की जगह।


लाइब्रेरी…

हमारी सबसे प्यारी जगह थी।

वहाँ जहाँ शब्दों की जगह

नज़रों की भाषा चलती थी,

जहाँ किताबों के पन्नों से ज़्यादा

तेरे चेहरे की रेखाओं को पढ़ा करता था।


कभी बुकशेल्फ के उस पार से,

कभी आमने-सामने की टेबल पर —

हम घंटों बैठे रहते,

ख़ामोशियाँ कहानियाँ सुनाती थीं,

और निगाहें

मोहब्बत के इक़रार करती थीं।


तुम्हारा होना

मेरे लिए उस तोहफ़े जैसा था

जो खुद खुदा ने मुझे भेजा हो।


मैं डरता था,

कहीं तुम मुझसे दूर न हो जाओ…

इसलिए हर रोज़

तुम्हें और भी गहराई से महसूस करता।


पर किस्मत को

हमारी ये मोहब्बत शायद मंज़ूर न थी।

हम अलग हो गए…

बिना अलविदा।


मैं तुम्हें कुछ कह नहीं पाया,

और तुम यही समझ बैठीं

कि मैं तुम्हें छोड़कर चला गया।


तुमसे अलग होकर

जैसे जान ही छूट गई हो मुझसे,

हर दिन…

बस एक खाली खोल बनकर जीता रहा।


कई बार टूट गया,

पर तुम्हारी याद ने

हर बार मुझे जोड़ दिया।


मैंने तुम्हें

हर गली, हर शहर, हर किताब में ढूँढा,

कभी किसी नाम में,

कभी किसी आवाज़ में।


साल दर साल बीतते गए,

उम्र का साया गहराता गया —

पर मेरा दिल

अब भी तुम्हारा ही पता पूछता रहा।


और फिर...

पैंतालीस साल बाद —

तुम मिलीं।


वक़्त ने चेहरे बदले थे,

पर तुम्हारी आँखें वैसी ही थीं,

तुम्हारी मुस्कान

अब भी मेरे नाम से ही खिलती थी।


मैं तुम्हें देखता रहा —

जैसे कल ही तो बिछड़े थे।


हम कुछ कह नहीं पाए,

सिर्फ देखते रहे —

वो सारी बातें आँखों में उतर आईं

जिन्हें कभी कहा नहीं गया था।


फिर जब जुबां खुली,

तो शिकायतें भी थीं…

और वो मासूम चाहत भी

जो अब भी अधूरी सी थी।


हमने वक़्त को दोषी ठहराया,

और नियति को स्वीकारा।



---


अब हम साथ हैं…

शायद जिस्मों से नहीं,

पर रूहों से —

हमेशा के लिए।


 कुछ रिश्ते

फासलों से नहीं टूटते,

और कुछ मोहब्बतें

उम्र से नहीं थमतीं।


हमारे बीच सिर्फ वक़्त था…

पर दिलों के बीच

कभी कोई दूरी नहीं थी।



Sunday, 29 June 2025

When Souls First Spoke

 

Where did you come from?
Softly, you slipped into my breath.
And where was I from?
Somehow, I stayed within your heart.

How did our hearts find each other?
This bond, unnamed —
Made all names seem so small.

I hadn’t said a word.
Only our eyes spoke,
And they said everything.

That very first meeting —
Time stood still.
You smiled once,
And I began to live.

You came like the wind,
But stayed as fragrance
In every breath I took.

I hadn’t woven dreams,
Nor made any promises,
Yet your eyes
Showed me my future.

Without words,
We invented a language —
Each silence
Turned into a vow.

Nights now belong to you.
Even the moon
Seems lost in you.
When stars fall,
It feels like
Another wish whispered your name.

I never thought
That souls could meet
Without a call,
Without a path.

Your arrival
Completed a verse
That lived half in me.

Our meeting —
As if a thirst,
Centuries old,
Was finally quenched,
Drop by tender drop.

You weren’t someone I sought,
And I wasn’t searching —
Yet somehow…
We met.

Now, every breath
Spells your name.
Now, every silence
Echoes your steps.

What is this love
That we never touched,
Yet it touched
Every leaf and root
Of who we are?

We said nothing…
Yet everything
Was spoken
And understood.


रूहों की पहली बात

 

कहाँ से आई तुम,
साँसों में यूँ उतर गई।
कहाँ से आए हम,
तेरी धड़कनों में ठहर गए।

कैसे मिल गए दिल हमारे,
बिना नाम के इस रिश्ते ने
हर नाम को बेमानी कर दिया।

हमने तो कुछ कहा भी नहीं था,
नज़रें ही थीं,
जो सब कुछ बयाँ कर गईं।

वो पहली मुलाक़ात,
जैसे वक़्त थम सा गया था।
तुमने मुस्कुरा के देखा,
और मैं जी उठा।

हवा की तरह आई थीं तुम,
पर सांसों में महक बनकर रह गईं।
एक झोंका भी अब
तुम्हारी याद लेकर आता है।

मैंने ना कोई ख्वाब बुना था,
ना कोई वादा किया था,
पर तेरी आँखों ने
मुझे मेरा भविष्य दिखा दिया।

शब्दों के बिना
हमने एक भाषा रच ली,
जिसमें हर खामोशी
इकरार बन गई।

रातें अब तेरे नाम की होती हैं,
चाँद भी तुझमें खोया लगता है।
तारे जब टूटते हैं,
तो लगता है —
कोई दुआ फिर से तेरे लिए माँगी गई है।

कभी सोचा नहीं था,
कि रूहें भी मिल सकती हैं
बिना पुकारे,
बिना रास्ता पूछे।

तेरा आना
जैसे मेरी अधूरी रचना
मुकम्मल हो गई।

हमारा मिलना
जैसे सदियों पुरानी कोई प्यास
आज बूंद-बूंद भर के
सराबोर हो गई।

ना तुम कहीं ढूँढी गई थीं,
ना मैं किसी तलाश में था —
फिर भी...
हम मिल गए।

अब जब भी साँस लेता हूँ,
तेरा नाम बुनता हूँ।
अब जब भी चुप होता हूँ,
तेरी आहट सुनता हूँ।

यह कैसी मोहब्बत है —
जिसे हमने छुआ नहीं,
पर उसने हमें
जड़ से पत्ता तक छू लिया।

हमने कुछ कहा भी नहीं था,
फिर भी सब कुछ
कह भी दिया,
समझ भी लिया।


क्यों नहीं बताया

(उसकी ओर सेबरसों बाद)

क्यों नहीं बताया
कि तुम जा रहे हो?
क्यों मेरी आँखों में
छोड़ गए वो सवाल
जिनका जवाब कभी लौटकर नहीं आया?

मैं सोचती रही
क्या मैंने कोई ग़लती की थी?
क्या तुम्हारा प्यार
सिर्फ़ कुछ दिनों का था?
या मैं ही सिर्फ़ खतों की आदत बनकर रह गई थी

पर आज
जब सुना
कि तुम मेरे खत
मंदिर के हवन में जलाकर रोए थे,
तो कुछ टूटा नहीं
बल्कि कुछ पूरा हुआ मेरे अंदर।

मेरे खत
जिन्हें मैंने
अपने रूमाल की तह में रखा था,
तेरे नाम से पहले चूमा था,
हर लफ्ज़ को
तेरे दिल की थकान का मरहम समझकर लिखा था
वो खत तुमने
राख बना दिए
पर मेरी मोहब्बत को कभी जलाया नहीं।

तुम जानते थे
दुनिया की नज़रों से
मुझे कैसे बचाना है,
पर तुम्हें नहीं पता था
कि मेरे लिए
तुम्हारे लिखे लफ्ज़ ही
मेरी दुनिया थे।

तुम्हारा हर "प्यारी",
हर "मेरी",
मेरे होने की तस्दीक़ थे।
तुम्हारे खत
मेरी साँसों का हिस्सा थे।

अब सोचती हूँ
उस शाम जब तुम मंदिर की सीढ़ियों पर थे,
मैं कहीं आसपास होती तो क्या करती?
शायद दौड़कर
तुमसे तुम्हारा वो आख़िरी खत छीन लेती।
कहती
"जला दो मुझे भी साथ में,
पर मेरी मोहब्बत को राख मत बनाओ…"

अब समझ में आया
कि तुम दूर इसलिए नहीं हुए
क्योंकि प्यार कम हो गया था,
बल्कि इसलिए
क्योंकि प्यार बेहिसाब था
और तुम्हें डर था
कि ये दुनिया मुझसे
वो सब छीन लेगी
जो सिर्फ़ तुम्हारा था।

पर सुनो
तुम मुझे तब भी नहीं समझ पाए।
मैं तुम्हारी हो चुकी थी
इस दुनिया से नहीं डरी थी,
मैं डरती थी सिर्फ़ तुम्हारी खामोशी से।

मैंने चाहा था
कि तुम हर तूफ़ान से पहले
मेरे कंधे पर सिर रखो
ना कि खुद को अकेला कर लो।

तुम्हारे जले हुए खत
अब मेरी आँखों में धुआँ बन गए हैं।
हर रात जब पलकें बंद करती हूँ,
तो वो राख
फिर से लफ्ज़ बन जाती है।

और एक सवाल
अब भी बिन जवाब है

"क्यों नहीं बताया... कि तुम जा रहे हो?"

तेरे खतों का अंतिम आलिंगन

 

वो पहली नज़र...
जैसे वक़्त ने रुककर हमें देखा हो,
तेरी आँखों में झाँकते ही
मैं खुद को खो बैठा था।

तेरी मुस्कान में
एक रूह की पुकार थी,
और मेरी चुप्पी में
तेरे नाम की दस्तक।

हम मिले
जैसे सदियों से बिछड़ी हुई दो रूहें
एक ही जिस्म की तलाश में भटक रही हों।

तेरा नाम...
अब मेरे नाम से पहले आता था,
और मेरी साँसों में
अब सिर्फ़ तेरी खुशबू बसती थी।

फिर शुरू हुआ
ख़तों का वो सिलसिला,
हर लफ्ज़ में तेरी सूरत,
हर हर्फ़  में तेरा अहसास।

तेरे खत
जैसे तेरे हाथों का स्पर्श,
जैसे तेरी साँसें काग़ज़ पर उतर आई हों।

मैं अपने खतों में
तुझे जी भर कर प्यार करता,
फिर अचानक डर जाता
दुनिया की नज़रें
कहीं तुझे छू लें।

हर इज़हार के बाद
मैं तुझसे हिफ़ाज़त माँगता,
तेरे लिए नहीं
अपने टूटते हुए दिल के लिए।

हम खत कभी
किताबों के पन्नों में छुपाते,
कभी चुपचाप एक-दूजे की हथेली में थमा देते,
और कभी बस नज़रों से कह देते
"पढ़ लेना... अकेले में।"

इन खतों ने
हमारी दुनिया को मायने दिया,
हमारे मिलन को मुकम्मल  
और हमारी मोहब्बत को एक नाम।

पर हर खूबसूरत चीज़ 
कभी कभी
वक़्त के दस्तावेज़ में मिट जाती है।
हम भी वैसे ही 
ख़ामोशी से दो अलग राहों पर मुड़ गए।

मैं तुझे बता सका
कि मैं जा रहा हूँ
और तू सोचती रही
कि मैं खामोश होकर
खुद को तुझसे जुदा कर गया।

पर सच्चाई ये थी
कि तेरे खतों में ही
मैं तुझे हर रात जीता रहा।

तेरा हर एक लफ्ज़
मेरे दिल की इबादत बन गया था,
और उन पन्नों को
मैं अपनी जान से ज़्यादा संभालता रहा।

फिर आई वो घड़ी
जब डर ने मोहब्बत को घेर लिया।
कहीं ये खत
किसी और की नज़रों में गए,
तो तू बदनाम हो जाएगी...
तेरा नाम
मेरे इश्क़ के बोझ से भी भारी लगने लगेगा।

फिर लिया मैंने
अपनी ज़िन्दगी का सबसे कठोर निर्णय।

तेरे तमाम खतों को
अपने सीने से लगाकर
एक शाम मंदिर की सीढ़ियों तक लेकर गया।

वहाँ हवन कुंड के सामने बैठा
तेरे लफ़्ज़ों को
अपने आंसुओं से धोता रहा।

हर खत को पढ़ा
मानो आखिरी बार
तेरी आवाज़ सुन रहा हूँ,
तेरे हाथों को
कागज़ की सिलवटों में छू रहा हूँ।

मैं ऐसे रोया
जैसे किसी ने
मेरी रूह से तुझे छीन लिया हो।

मंदिर की आरती चल रही थी,
पर मेरा रुदन 
आरती की घंटियों को चीर कर                                                                                                    आसमान को भेद रहा था 

और जब तेरा आख़िरी खत जला
तो मानो मेरी साँसें भी
जल कर राख बन गईं।

पुजारी भागते हुए आए,
मुझे थामकर
बरामदे में ले गए।
पानी पिलाया,
आँखों में देखा
और बिना कुछ पूछे
सब कुछ समझ गए।

उन्होंने कहा
जिसने ये खत लिखे हैं,
वो आज भी वहीं है
तेरे दिल में, तेरी धड़कन में।
तो क्यों इन राखों में
अपना इश्क़ जलाते हो?”

उनकी आँखों में
तुझसे फिर मिलने की दुआ थी,
उनकी बातों में
तेरा नाम फिर से जी उठा।

मैं स्तब्ध था,
भीगा हुआ, टूटा हुआ,
पर भीतर अँधेरे में कहीं
एक उजाला भी हुआ
कि 
तू तो आज भी वहीं है,
जहाँ हम पहली बार मिले थे
मेरे इंतज़ार में।

एक दिन मैं ज़रूर आऊंगा                                                                                                                तुझसे मिलने मेरी हमनफ़ज़                                                                                                              और फिर                                                                                                                                        हमें कोई जुदा नहीं कर सकेगा