Monday, 11 August 2025

हमारा रिश्ता

 हाँ… याद है मुझे वो सदियाँ,

जब वक़्त ठहर जाता था तुम्हारी एक मुस्कान पर,

जब दिन तुझसे शुरू होते थे

और रातें तेरे ख्वाबों में गुजरती थीं।


तेरे अल्फ़ाज़ नहीं,

तेरे एहसास बोलते थे —

तेरी खामोशी में भी

मेरे लिए मोहब्बत के अफसाने 

हर लम्हे में भरे थे।


हमारा रिश्ता कोई समझ न सका,

क्योंकि वो लफ़्ज़ों से नहीं,

रूहों से बना था।

हम वो दो लोग थे

जो वक़्त से नहीं,

अहसास से जुड़े थे।


तेरा लिखा हर खत

जैसे मेरी बेसुकूनी की दवा होती थी,

और मैं —

हर रात तुझे पढ़कर

नींद की बाँहों में खो जाता था।


फिर जाने क्या हुआ…

वही हम, वही दिल, वही रूह —

पर बीच में आ गई बस एक 'दूरी'।

ना झगड़ा, ना शिकायत,

बस ख़ामोशियाँ…

जो बढ़ती गईं — और दूरियाँ बनती गईं।

अब जब तेरा नाम सुनता हूँ,

तो सांसें चलती हैं,

पर दिल ठहर सा जाता है।


पर आज भी...

अगर तू चुपचाप किसी रात

मुझे पुकारे —

तो मैं वही पुरानी जगह पर मिलूंगा,

जहाँ तेरी हर बात बगैर कहे समझ लेता था।


क्योंकि मोहब्बत जब रूह से हो,

तो जुदाई सिर्फ़ जिस्मों की होती है।

रूहें… कभी जुदा नहीं होतीं।

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