Monday, 11 August 2025

सपना या हक़ीक़त

 कल तुम्हें देखने का बहुत दिल कर रहा था

तो रात में चुपके से तुम्हारे ख़्वाबों में चला आया,

तू सोती रही और मैं तुझे निहारता रहा

मैं तुझे यादों की गलियों में ले गया

जहां तुम थी ,मैं था और था

हमारा प्यार भरा सुकून।   

तुम्हारे चेहरे पर मुस्कुराहट थी।

तुमने मेरे हाथों को थाम रखा था। 

रात बीती

भोर की किरणों ने धरा पर फैलना शुरू किया 

मैंने तुम्हारी पलकों को चूमकर

तुम्हारे कानों में धीरे से सुप्रभात कहा

और तुम मुस्कुराते हुए उठी

अपनी स्वप्नों की दुनिया से।

तुम्हारी आँखें कुछ ढूंढ रही थीं 

शायद तुम सपने को

हकीक़त मान रही थी।

मैं समझ रहा था तुम क्या ढूंढ रही थी

मैं मन ही मन में फिर तुमसे मिलने का वादा कर लौट आया।


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