(एक मान-मनुहार भरी कविता)
चलो फिर से
वो सिन्दूरी शाम कहीं से ले आएं
जहाँ तुम मुस्कुराती थी
और मैं चुपचाप तुमको देखता रहता था।
चलो फिर से
वो ख़ामोशी सुन लें
जिसमें लफ़्ज़ नहीं होते थे
पर दिल सब समझ जाते थे।
मैंने कल कुछ कह दिया
शायद ज़रा तेज़, ज़रा कड़वा
पर इरादा…
कभी भी दर्द देने का नहीं था।
ग़लती मेरी थी
पर मोहब्बत तो अब भी वही है
पहली…
सचमुच पहली वाली।
तुम रूठी हो
और मैं टूटा हूँ
तुम चुप हो
और मेरी साँसें थमी हैं।
चलो ना…
थोड़ा सा मुस्कुरा दो
थोड़ा सा ग़ुस्सा कम कर दो
थोड़ा सा मुझे फिर से चाह लो।
मैं वही हूँ
जो तब भी तुम्हारा था
अब भी बस तुम्हारा हूँ
और हर जनम तुम्हारा ही रहूँगा।
तुम शिकवे भी कर लेना
मैं सर झुकाकर सुन लूँगा
पर प्लीज़…
मुझे तुम खुद से दूर मत करना।
अगर मुझसे मोहब्बत है
तो माफ़ कर दो न
अगर हमारी मोहब्बत ज़िंदा है
तो एक बार फिर से मुझको थाम लो न
चलो फिर से
वो पहली सी बात कर लें
जहाँ रूठना भी मोहब्बत था
और मनाना भी मोहब्बत ही होता था।
तुम्हारे बिना
हर पल अधूरा है
हर लम्हा
सिर्फ़ और सिर्फ तुम्हें पुकारता है।
जानता हूँ....मेरी बातों ने
तुम्हें बहुत दर्द दिया है
पर सच मानो
वो मेरा इरादा कभी नहीं था।
मैं बस…
थोड़ा सा कहीं खो गया था
शायद किसी उलझन में
उलझ गया था
पर तुम्हारे प्यार में
अब भी मैं वैसे ही आकंठ डूबा हूँ।
माफ़ कर दो ना जान
इस दिल को,
जो बस
तुम्हारे ही नाम से धड़कता है।
तुम्हारा ग़ुस्सा
सिर आँखों पर
पर मोहब्बत से कहता हूँ—
एक बार फिर हाथ थाम लो न
चलो फिर से
वो पहली सी मोहब्बत जी लें
जहाँ न कोई दूरी हो
न कोई मलाल।
तुम कहो तो
हर शिकवा लिख दूँ
आसमान पर,
और हर जवाब—
तेरे नाम कर दूँ।
बस एक बार
"हां" कह दो
मैं फिर से
वही दीवाना हो जाऊँ
जो सिर्फ़…
तुम्हारे लिए जीता था।
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