वो दर्द
जो मैंने तुझे
अनकहे दिया था,
कभी शब्दों में नहीं ढला—
पर हर साँस में था।
तेरी आँखों ने
शायद उसे देखा था,
पर तू कुछ कह न सकी,
मैं कुछ कह न सका।
वो खामोशी
जो हमारे बीच बैठ गई थी,
वो आज भी
मेरे तकिए के पास
सर रखे रोती है।
तेरे जाने के बाद
बहुत कुछ गया है—
पर सबसे ज़्यादा
मैं खुद चला गया हूँ
अपने ही अंदर कहीं।
हर शाम
तेरी यादों को
दरवाज़े से लौटाना चाहता हूँ,
पर वो भी तो जिद्दी हैं,
बिल्कुल तेरी तरह।
मैं मुस्कुराता हूँ
पर वो दर्द
जो अनकहा था,
अब मेरी मुस्कुराहट के पीछे
घर बनाकर रहने लगा है।
कभी-कभी
तेरे शहर की हवाएँ
मेरे शहर तक आ जाती हैं,
और वो तासीर—
अब भी सीने में
जलती रहती है
धीरे-धीरे।
तू शायद
भूल भी गई होगी,
पर वो एक पल
जब तू रुकी थी कुछ कहने से
वो पल
अब उम्र बन गया है।
मैं आज भी
तेरे जाने का कारण नहीं जानता,
पर तुझसे की गई
हर बात
आज भी मेरी किताबों में सांस लेती है।
वो दर्द
जो तुझे दिया
बिना कहे,
वो सजा
मैं अब भी
हर रोज़ काटता हूँ—
तेरी खामोशी की जेल में।
वो दर्द
जो मैंने तुझे
अनकहे दिया था,
वो अब शब्द नहीं—
सांस बन चुका है।
तू गई,
पर तेरे जाने की आहट
अब तक नहीं गई।
वो दरवाज़ा…
जिससे तू निकली थी,
अब हर रात खुद ही
खुल जाता है।
मेरे सीने में
जो तासीर बची है,
वो कोई घाव नहीं—
तेरी चुप्पी का नमक है,
जो हर याद को
छालों में बदल देता है।
कभी सोचा है तूने?
कैसा लगता है
जब कोई रोता है
बिना आवाज़ के?
बिलकुल वैसे ही
जैसे मैं…
हर रात
तेरे नाम को
तकिए में दबाकर
दम घोंट देता हूँ।
तू नहीं आई,
ना ही कोई खत,
ना कोई शिकायत।
पर मेरी हर कविता में
तेरी परछाईं
अब भी अधूरी लाइन बनकर
ठहर जाती है।
जब दुनिया कहती है—
“भूल जाओ,”
मैं मुस्कुरा देता हूँ।
क्योंकि उन्हें क्या पता,
भूलना
तब मुमकिन होता है
जब कुछ सिर्फ याद रह जाए—
तू तो अब भी
रगों में बहती है।
तेरे बिना
सब है,
पर कुछ भी नहीं है।
ये चाय, ये किताबें,
ये बारिशें और ये खामोशियाँ—
सब गूँगी हो गई हैं,
तेरे आख़िरी अल्फ़ाज़ के इंतज़ार में।
क्या कभी
मेरे नाम की कसक
तेरे सीने में भी उठी है?
क्या तू भी कभी
अपने बीच छाए सन्नाटों को
पढ़ती है?
या मैं ही हूँ
जिसने अपने हिस्से की चुप्पी
दोनों के नाम कर दी?
मैं जी रहा हूँ
पर वो साँसें
जैसी थीं पहले,
अब वैसी नहीं रहीं।
अब हर धड़कन
तेरे न होने की दस्तक लगती है।
वो दर्द
जो मैंने तुझे
अनकहे दिया था,
अब तन्हाई में
मुझसे भी कुछ कहने लगा है—
शायद तू भी
उसे सुन सके
किसी चुप रात में।
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