तू लौटी है—
जैसे बरसों की प्यास को
पहली बूँद छू गई हो।
तेरे कदमों की आहट ने
मेरे इंतज़ार की हर साँस
थाम ली है।
मैं ठहरा रहा,
तेरी यादों की भीड़ में,
और तू आई…
बिलकुल वैसे
जैसे दुआ में मांगा हो तुझे।
हम मिले—
तो कोई शोर नहीं हुआ,
बस रूहों ने
एक-दूजे को छू लिया।
तेरी आँखों में
उतर आया मैं,
तेरी साँसों में
अपना नाम सुन लिया।
तेरे सीने से लगकर
जैसे सदियाँ
एक पल में बह गईं।
तेरे आलिंगन में
धड़कनों ने
अपना संगीत पा लिया।
वो पहला चुम्बन—
होठों पर नहीं,
रूहों पर था।
जैसे कोई वादा
हर जन्म का,
हर मृत्यु से परे का।
तेरी हथेलियाँ
मेरी पीठ पर
सदी की थकावट बुन रही थीं।
और मैं
तेरे गले लगकर
टूटकर पूरा हो रहा था।
हम कुछ बोले नहीं,
फिर भी सब कुछ
कह दिया था।
तेरे बालों में उलझे
मेरी उँगलियों ने
तेरे साथ का वादा
गूंथ लिया था।
तेरी खुशबू
मेरे वजूद में
धीरे-धीरे उतरती चली गई।
मैं एक दीपक बना,
तू उसकी लौ—
हम मिलकर
रौशनी बनते गए।
हमने समय रोक लिया था—
तेरे होंठ मेरे होंठों से
जो मिले थे
उस पल में
सारी कायनात
थम गई थी।
कोई शब्द नहीं था,
बस स्पर्श थे,
जिसमें जन्मों का सुकून था।
तू मेरी बाँहों में थी
और मैं,
तेरी रगों में बह रहा था।
हम दो जिस्म नहीं रहे,
हम दोनों
हवाओं की तरह
एक ही दिशा में बहने लगे।
तू लौटी है,
और अब जो मिली है—
तो ये मिलन
किसी चाँद का समंदर से मिलना है।
हर लहर,
हर स्पर्श,
हर चुम्बन
अब इबादत है।
तू मेरी कविता नहीं,
तू मेरी 'कलम' बन गई है।
अब हम जिएँगे
एक-दूजे के
हर स्पर्श में,
साँस में,
और रूह के हर रंग में।
अब ये प्रेम—
ना छूटेगा,
ना टूटेगा,
ना कोई जन्म इसे बदल पाएगा।
क्योंकि तू लौटी है,
और अब जो लौटी है,
तो सिर्फ मेरे लिए।
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