Sunday, 25 May 2025

जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा था

जब मैंने तुम्हें

पहली बार देखा था

वो शाम

जैसे खुद वक़्त ने

अपने कदम रोक दिए हों


तुम यौवन की दहलीज़ पर

कोमल सुरों की तरह खड़ी थीं

मौसम की ख़ामोशी में

तुम्हारे कदमों की आहट

कविता बनकर घुल रही थी


तुम्हारी आँखों में

कोई अनकहा सपना

हौले-हौले झांक रहा था

और उन होठों पर

वो मासूम मुस्कान

जैसे फूलों ने अभी

ओस को चूमा हो


तुम्हारी दृष्टि

मेरे अंतर्मन तक

उतर गई थी

बिना कुछ कहे

तुमने मुझे

पूरा पढ़ लिया था


मेरे भीतर

एक मीठा कंपन हुआ

और मेरे होंठों पर

एक मुस्कान

ख़ुद-ब-ख़ुद उग आई

शायद नियति ने

इसी क्षण को

सदियों से सँजो रखा था


उस पल

दुनिया का हर शोर

मौन हो गया

बस हम थे

और हमारे बीच

एक अदृश्य पुल

जिस पर प्रेम की रौशनी

चलती रही चुपचाप


तुम्हारी आँखें

मेरी आँखों में ठहर गईं

जैसे दो नदियाँ

पहली बार

सागर से मिलने को रुकी हों


और मैं…

खुद को

तुम्हारी निगाहों में

पहली बार

पूरा महसूस कर रहा था





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