यूँ ही दिल ने चाहा था रोना रुलाना
तेरी याद तो बन गई बस एक बहाना
जिस्म से रूह अब अलग सी लगने लगी है
ज़िंदगी भी मुझसे खफा खफा सी रहने लगी है
हर लम्हा ठहरा सा है, हर पल बोझिल है
तेरे बिना हर शय मेरे गम में शामिल है
दरारें हैं अब ख़्वाबों की दीवारों में
बस राख़ बची है जलती यादों के जारों में
तेरे बिना हर लफ्ज़ अब इक ज़हर है
तेरी ख़ामोशी भी मेरे लिए इक कहर है
तू गई तो उजाले भी साथ ले गई
छाँव भी मुझसे अब मुँह फेर गई
ख़त जो लिखे थे, वो अब जलते हैं
तेरे नाम पे ये आंसू रोज़ पलते हैं
आवाज़ तेरी गूंजती है वीरानों में
मैं बिखरता हूँ तेरे आशियाने में
आईनों में अब अपना चेहरा नहीं दिखता है
मेरा साया भी अब मुझसे दूर दूर रहता है
गर लब हिले तो बस तेरा नाम निकले
तेरी जुदाई में शाम का सिंदूर पिघले
दिल की दीवारें खुद से टकरा गईं
ये सांसें भी जैसे मुझसे शरमा गईं
तेरे जाने से मुझसे मेरा मैं बिछड़ गया
जो भी मेरा था वो सब तेरे साथ ही गया
अब न वो इश्क़ रहा, न इंतज़ार कोई
बस चुभते सवाल हैं जिनका नहीं जवाब कोई
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