तेरे बिना तो लम्हे भी ठहर जाते हैं
घड़ियों के काँटे भी सहम जाते हैं
हर दिन अब शाम सा लगने लगा है
हर मौसम में तेरा ग़म बरसने लगा है
तेरी हँसी गूंजती है फिज़ाओं में
तेरी आवाज़ आती है सदाओं में
वो गुलाब जो तूने छुआ था कभी
तेरी खुशबू से महकती है अब भी
तेरे खतों की स्याही भी अब सूख गई है
तेरी यादों की राह भी अब रूठ गई है
मेरे दीवानेपन की तुझे जो आदत थी
वो अब बस तन्हा रातों में ठहर गई है
जिस ख्वाब में तू रोज़ मिला करती थी
अब नींद भी उससे डरने लगी है
तेरा नाम लबों तक आता है जब
दुआ भी इबादत में बिखरने लगी है
हर गीत अधूरा, हर साज़ उदास है
तेरे बिना दिल में बस एक प्यास है
जो कह न सके, हम वो दर्द सह रहे हैं
तू नहीं है मगर हम फिर भी रह रहे हैं
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