Friday, 9 May 2025

मैं तुम्हारा मुजरिम हूँ

 मैं तुम्हारा मुजरिम हूँ

तुमसे दूर हुआ
तुमको ख़बर नहीं की
तुम अंधेरे में रही
मैंने इतनी भी सबर नहीं की

तेरे बिना
सब कुछ थम गया।

तेरी आवाज़
अब भी सिसकियों में है।

तू टूटी,
और मैं चुप रहा।

तेरा दर्द
मेरी ख़ामोशी में था।

तू रात भर जागी,
मैंने पूछा तक नहीं।

तू टूटी रही,
मैंने जोड़ा तक नहीं।

तू रोई होगी
कई बार बेआवाज़।

मैं वहीं था,
पर दूर...
बहुत दूर।

तेरे खत
मैंने खोले नहीं।

तेरे सवाल
मैंने बोले नहीं।

तू थक गई होगी
मुझे समझाते हुए।

और मैं
खुद को भी
समझा नहीं सका।

तेरी तन्हाई का
मैं गवाह था।

फिर भी
मैंने देखा नहीं।

तू अंधेरे में थी,
और मैं...
कहीं उजालों में
ख़ुद को झूठा सुकून देता रहा।

तेरे हिस्से का
सबर भी
मैंने नहीं निभाया।

तेरी चुप्पी की
गहराई तक
मैं गया ही नहीं।

अब जब तू दूर है,
तो साँस भी
गुनाह लगती है।

अब हर लम्हा
मेरी सज़ा है।

अब हर रात
बस तेरा नाम लेती है।

अब हर ख़ुशी
तुझसे इजाज़त माँगती है।

मैं तुम्हारा मुजरिम हूँ
तेरे आँसू मेरे फैसले हैं।
तेरा सन्नाटा
मेरी सज़ा है।

अगर लौट सको
तो लौट आओ —
फ़ैसला मत करना
बस एक
आख़िरी सुनवाई दे देना।

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