Friday, 9 May 2025

मैं तुम्हारा मुजरिम हूँ -2

 मैं तुम्हारा मुजरिम हूँ

तुमसे दूर हुआ
तुमको ख़बर नहीं की
तुम अंधेरे में रही
मैंने इतनी भी सब्र नहीं की

मैं चुप रहा
तू टूटती रही

तू पुकारती रही
मैं छुपता रहा

तेरी आँखें भीगीं
मैं देखा नही

तेरा मन रोया
मैंने सुना नही

तेरे सवाल थे
पर मैं मौन था

तेरे दिन ठहरे थे
मैं कहीं और था

तू सहमी रही
मैं सोचता रहा

तू थक गई थी
पर मैं थमा नहीं

तेरी रातें जागीं
मैं सोता रहा

तेरा दर्द बढ़ा
मैं रोता रहा

मैं पास था
फिर भी दूर था

तू डूबी रही
मैं किनारे खड़ा था

तू बुझती गई
मैं जल भी न सका 

अब समझा हूँ

क्या खो दिया था

अब हर चीज़
तेरा नाम लेती है

अब हर साज़
तेरी सदा बन गया है

अब हर सन्नाटा
तेरे बिना चिल्लाता है

अब मैं जीता हूँ
बस सज़ा में

अब हर पल
गुनाह लगता है

मैं तुम्हारा मुजरिम हूँ
अगर लौट सको, लौट आओ
माफ़ी नहीं चाहिए
बस एक नज़र दे जाओ

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