Saturday, 17 May 2025

तुम मेरी आदत थे

 मेरी आदत

तुम थे

सुबह की पहली सांस

रात की आख़िरी सोच

हर ख्वाब की पहली धड़कन

हर खामोशी में तुम्हारी आहट


तुम्हारे बिना

सब सुना सा था

चाय फीकी

फिज़ाएं खामोश

धूप में भी

सर्दी थी


जब तुम गए

मैं कहाँ रहा 

अपने ही अंदर

टूटती आदतों के पीछे

उलझता रहा

हर दिन

हर रात


सीखा

तुम्हारे बिना

जीना

बेमन ही सही

पर जी लिया


फिर अचानक

तुम लौटे

वो मुस्कान लिए

जिससे मैं कभी बच ही नहीं पाया


अब

मैं डरता हूँ

खुद से

कि फिर वही

आदत बनोगे

फिर वही

तुम बिन अधूरापन

मेरी सांसों में बस जाओगे

बिना पूछे

बिना कहे


अब जो

तुम वापस आई हो

कैसे कहूँ

कि मैंने तुम्हारे बिना

रहना सीख लिया है

पर रहने का मतलब

जीना नहीं होता


अब

मैं आदत नहीं

तुम्हें फिर से

अपना बनाना 

चाहता हूँ


ताकि

फिर टूटूं

पर इस बार

पूरी तरह

तुममें

हमेशा के लिए




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