Saturday, 17 May 2025

तुम मेरी आदत थे - 1

तुम्हारा वज़ूद 

सिर्फ़ तुम्हारा नहीं था 

तुम मेरी थी 

मेरे हर दिन की शुरुआत 

हर रात की आख़िरी दुआ


तुम

उन ख़ामोशियों का नाम थी 

जो बोलती नहीं थीं

पर सिर्फ़ तुम्हारे होने से

गूंज उठती थीं भीतर


तुम

मेरी आदत थी —

बिलकुल वैसे ही 

जैसे धड़कनें

बिना कहे

साँसों से जुड़ी होती हैं


लेकिन जब तुम गए

तो सिर्फ़ तुम नहीं गए

मेरे भीतर से

वो आदत भी चली गई

वो सारे अहसास भी चले गए 

जिन्हें मैं प्यार कहता था


मैंने

हर उस चीज़ से किनारा किया

जो तुम्हारी याद दिलाती थी

यहाँ तक कि खुद से भी

क्योंकि मैं भी

तो अब अधूरा था


मैंने

चुप रहना सीखा

हँसते हुए रोना

लोगों के बीच रहकर

अकेले होना


तुम्हारी गैर-मौजूदगी

एक साया बन गई थी

जो मेरे साथ चलती थी

बिना आवाज़

बिना किसी शक्ल के 


फिर

किसी रोज़

तुम लौट आए

वैसे ही

जैसे सूखे पेड़ पर

अचानक कोपलें फूट पड़ें

जैसे किसी वीराने में

बादल बरस जाए


तुम

फिर से

नज़रों में उतर गए

बातों में

धड़कनों में

हर ख्वाब में

फिर से वही होना लगा


पर अब

मैं डरता हूँ

इस दोबारा मिलने से

क्योंकि मैंने तुम्हारे बिना

ज़िंदा रहना सीखा है

और तुम फिर से

मेरी साँसों के दरमियान

बस जाना चाहती हो


अब बताओ

कैसे खुद को

फिर से खो दूँ

कैसे फिर

तुम्हारी आदत बनाऊँ

जब जानता हूँ

कि तुम

फिर से

छिन सकती हो


तुम लौटे हो

मैं भी टूट चुका हूँ

अब अगर फिर से

तुम्हें ओढ़ा

तो ये आख़िरी बार होगा

इस बार

या तो मैं

पूरा हो जाऊँगा

या फिर

हमेशा के लिए

ख़त्म




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