तुम यूँ अचानक चले गए
जैसे साँसों से जीवन रुखसत ले
बिना कुछ कहे,
बिना मुझे देखे आख़िरी बार।
एक पल में सब ठहर गया था
जैसे समय ने मेरे लिए चलना छोड़ दिया हो।
तब…
मन में थोड़ा रोष था तुम्हारे लिए —
क्यों नहीं बताया तुमने,
किस दर्द ने तुम्हें तोड़ दिया इतना
कि मेरा साथ भी बोझ लगने लगा?
और फिर
धीरे-धीरे उस रोष की राख में
पछतावे की आग जलने लगी…
मैं खुद से सवाल करता रहा —
कहीं मेरी कोई चुप्पी तुम्हारी चीख बन गई थी क्या?
तुम्हें रोक नहीं पाने का दुख
अब मेरी धड़कनों के साथ धड़कता है…
हर बार जब कोई दरवाज़ा खुलता है,
मुझे लगता है —
शायद तुम लौट आए हो…
पर नहीं —
तुम तो जा चुके थे,
मेरे शब्दों की पहुँच से परे,
मेरे आकाश से उतर चुके तारे की तरह।
कहाँ गए थे तुम?
कैसे चले गए थे
इतना कुछ कहे बिना?
तुमने तो कोई पता भी नहीं छोड़ा था…
ना अपने दिल का,
ना उस आख़िरी दर्द का
जिसने तुम्हें मुझसे चुरा लिया।
अब हर दिन एक अपराध जैसा लगता है —
तुम्हारे बिना जीना,
तुम्हारे बिना मुस्कराना
जैसे खुद से ही बेईमानी हो।
कभी-कभी सोचता हूँ,
काश मैं ज़रा और सुन लेता तुम्हें,
काश तुम ज़रा और कह देते मुझसे।
तुम्हारी वो अधूरी बातें
अब मेरे भीतर गूंजती हैं
और हर बार
कोई नया अर्थ ले आती हैं।
तुम्हारे बिना ये दुनिया
एक खाली आईना बन गई है —
जिसमें मैं खुद को देखता तो हूँ
पर पहचान नहीं पाता।
तुम जो इस दिल को संभाल सकते थे,
अब वहीं खालीपन छोड़ गए हो
जिसे कोई और भर नहीं सकता।
रातें तुम्हारे नाम की नर्म चादर ओढ़े आती हैं,
और नींद —
बस तुम्हारी यादों की करवटों में उलझकर रह जाती है।
काश…
तुम्हें पता चलता
कि तुम क्या कुछ थे मेरे लिए —
एक साँस की तरह ज़रूरी,
एक दुआ की तरह पाक,
एक अधूरी कविता की तरह
जिसे अब कोई भी अंत मुकम्मल नहीं कर सकता।
अब अगर कभी लौटना चाहो,
तो मत सोचना कि देर हो चुकी है…
ये दिल
अब भी उसी मोड़ पर खड़ा है
जहाँ तुमने मुझे छोड़ा था —
बिना अलविदा,
बिना एक आख़िरी मुस्कान
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए
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