Saturday, 17 May 2025

तुम यूँ अचानक चले गए - एक ग़ज़ल

 तुम यूँ अचानक चले गए, कुछ भी नहीं कहा,

जैसे कि ख़्वाब टूट गया, और दिल वहीं रहा।


न शिकवा, ना कोई अलविदा, ना कोई निशान,

बस इक ख़लिश का साया था, जो हर जगह रहा।


मन में था कुछ गिला तुझसे, थोड़ी सी कसक,

पर खुद से भी शिकायतों का सिलसिला रहा।


कैसे न रोका मैंने तुझे, कैसे चुप रह गया,

ये सोच-सोच कर हर दफ़ा दिल रोता रहा।


तू ही था जो ज़ख़्मों पर मरहम लगा सकता,

पर तू ही सबसे पहले उन्हें गहरा कर गया।


नज़रों से दूर, शहर से दूर, दिल से नहीं,

तू जिस भी मोड़ पे गया, मैं तेरे साथ रहा।


ढूँढा तुझे हर एक गली, हर एक नाम में,

तू बेपता था और मेरा दिल बेसबब रहा।


तेरे बिना हर लम्हा अधूरा सा लगता है,

जैसे साज़ हो कोई, जिसमें सुर ही नहीं रहा।


रातों को तेरा नाम हवा में बिखरता है,

और नींद बस तेरी यादों में उलझा रहा।


अब लौट भी आ, या कोई ख़बर तो भेज दे,

ये दिल तुझी पे रुका था, तुझी पे थमा रहा।




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