(मेरे पहले प्यार के नाम)
तुम्हें देखा,
तो जैसे कुछ कहना नहीं पड़ा…
दिल ने तुम्हारा नाम
बिना बताए लेना सीख लिया।
तुम मुस्कुराती थी —
तो लगता था,
जैसे मेरे हिस्से की सारी रौशनी
तुम्हारे चेहरे पर उतर आई हो।
मैं कुछ भी नहीं था —
बस एक वज़ूद,
जिसे तुम्हें देखना
दुनिया की सबसे प्यारी आदत लगती थी।
तुम्हारी चोटियों में
सपने बाँध दिए थे मैंने,
और हर दिन
तुम्हारे रास्तों में अपनी नज़रें छोड़ आता था।
कोई "आई लव यू" नहीं कहा,
ना कभी तुम्हारा हाथ माँगा,
बस खामोशी में
तुम्हारे पास खड़े रहने की इजाज़त माँगी थी।
वो कॉलेज की घंटियाँ,
तुम्हारा पलट कर देखना,
कितनी बार दिल ने कहा —
"बस यहीं रुक जा… ये ही है सब कुछ।"
कभी तुम्हारी हँसी को
क़लम से छूने की कोशिश की थी,
पर वो इतनी नाज़ुक थी
कि शब्द भी डरते थे।
तुम्हारे नाम के पहले अक्षर से
हर पन्ना शुरू किया मैंने,
जैसे तुम मेरी कविता नहीं,
मेरा ईमान बन गई थी।
कच्ची उम्र थी,
पर उसमें जो प्यार था
वो जितना मासूम था,
उतना ही सच्चा भी था
तुम्हें खोने से पहले
तुम्हें कभी पाया तो नहीं था,
लेकिन हर ख्वाब में,
हर दुआ में तुम ही थी।
कभी कोई ख्वाहिश नहीं की तुमसे,
बस ये चाहा —
कि जब तुम हँसो,
तो मेरी तरफ भी देख लिया करो।
आज भी,
जब पुरानी कॉपियाँ खोलता हूँ,
वो टेढ़े-मेढ़े दिल,
वो तुम्हारे नाम के इर्द-गिर्द बने फूल
सब मुस्कुरा उठते हैं।
शायद वो प्यार
किसी किताब में दर्ज नहीं होता,
लेकिन मेरे सीने में
अब भी धड़कता है —
"तुम थी, और मैं था…"
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