पहली बार जब तुम्हें देखा था,
दिल ने चुपचाप सांस लेना सीख लिया था।
कुछ भी नहीं कहा,
पर सब कुछ कह दिया था।
न उम्र को समझ थी,
न रिश्तों की परिभाषा,
फिर भी तुम्हारे पास
सब कुछ अपना सा लगता था।
तुम हँसती थीं —
जैसे बादल पहली बार बरसे हों।
मैं देखता था - तुम
जैसे इंद्रधनुष को थाम लेना चाहती थी
हाथ छूते नहीं थे,
पर हवा में वो अहसास बहता था,
कि तुम हो कहीं पास ही,
बिल्कुल मेरे सपनों के आसपास।
बस्ते में किताबें कम,
तुम्हारी चिट्ठियाँ ज़्यादा थीं।
हर शब्द में खुशबू थी
तुम्हारे बेनाम से इश्क़ की।
ना वक़्त का होश था,
ना दुनियादारी की परवाह,
बस एक छाँव थी —
जहाँ तुम और मैं
खामोशी में बातें किया करते थे।
चॉक से दीवारों पर
हम नाम नहीं लिखा करते थे,
पर दिल में
तुम्हारा नाम हर दिन उगता था
किसी सुबह की तरह।
छोटी-सी उम्र,
छोटे-से सपने,
और उनमें तुम —
सबसे बड़ा सच।
तुम्हारा देख लेना भर
मेरी दुनिया बदल देता था।
सर्द हवा में तुम्हारी यादें
जैसे गर्म कंबल बन जातीं थीं।
छुप-छुप कर मिलना,
झूठ बोल कर टहलना,
सिर्फ़ तुम्हें देखने के लिए
हर डर से लड़ जाना।
ना स्पर्श था, ना चाह,
फिर भी हर भाव में
एक सच्चा एहसास था —
जैसे आत्मा को आत्मा से प्रेम हो।
कभी साथ बैठ कर
चुपचाप पत्ते गिनते थे,
हर पत्ता —
हमारे बीच एक और वादा बन जाता।
तुम्हारे बालों में बंधा रिबन,
मेरे ख्वाबों में झूलता रहता,
और मैं हर रात
उसे तितली समझकर पकड़ना चाहता।
इस प्यार में कोई माँग नहीं थी,
ना अधिकार, ना सीमा,
बस एक नर्म उजास था
जो हम दोनों की आँखों में रहता था।
वो कच्चा-पक्का,
छोटा-सा,
सचमुच का
पहला प्यार था।
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