Monday, 12 May 2025

जब मैंने तुमको पहली बार देखा था - 2

 जब मैंने तुमको

पहली बार देखा था,

वो पल जैसे

ठहर गया था।


तुम

यौवन की दहलीज़ पर,

अद्भुत सौंदर्य की

चुप चादर ओढ़े

मुस्कान में

चाँदनी समेटे,

अपलक मुझे

देख रही थीं।


एक हल्की मुस्कान

मेरे होठों पर भी

नाच उठी।

शायद नियति ने

हमारा मिलना

ठीक वहीं

लिख रखा था।


चारों ओर

निगाहें थीं,

पर

तुम्हारी आंखें

बस मेरी आंखों से

बाँध रही थीं

कोई अनकहा बंधन।


तब

मुझे ऐसा लगा

जैसे

तुम्हारी रूह

तुम्हारी आंखों से

मेरी आंखों तक

आई हो,

और वहीं से

मेरी रूह में

उतर गई हो।


और फिर शुरू हुआ 

मुलाकातों का सिलसिला

हम जहां भी मिलते

मैं तुम्हारी अप्रतिम सुन्दरता को

अपलक निहारता

तुम शरमा कर 

सतरंगी बन जाती


जब मैं तुम्हें आलिंगनबद्ध करता

तुम्हारी आँखें बोझिल होकर 

झुक जातीं 

मेरे आलिंगन पाश में 

तुम्हारा फूलों सा बदन

शिथिल पड़ जाता

तुम छोड़ देती थी 

खुद को मुझ पर

मेरे आलिंगन में बंध कर

फिर मेरे धड़कते सीने से

लग कर

मेरी धड़कनों से 

अपने धड़कन की

लय मिलाती थी


मैं तुम्हारे रस भरे 

कांपते अधरों पर 

जब अपना अधर रखता था

सारी कायनात 

सिमट कर मेरी बाहों में 

आ जाती थी


हम घंटों यूं ही

बिना कुछ बोले

बिना कुछ सुने

एक दूसरे में खोये

अपनी रूहों के मिलन

को साकार करते रहते


दिन बीते,

मौसम बदले,

हमने साथ

सपने बुने,

हँसी के पल

संजोए,

तन्हाइयाँ बाँटी।


पर फिर

किस्मत ने

कहा—

"अब देखूँ

इन रूहों की गहराई।"


एक दिन

वक़्त की लहर

हम दोनों को

वक़्त के दो किनारों पर

ले गई।


कभी कुछ कहा नहीं,

पर जो अधूरा था,

वो हर दिन

चीख़ बन

दिल में गूंजता रहा।


तेरी हँसी की

गूँज,

तेरे जाने के बाद भी,

मेरे कमरे की

दीवारों से टकराती रही।


मैं

हर भीड़ में

तेरा चेहरा

ढूँढता रहा—

हर ख़ामोशी में

तेरी आवाज़

सुनता रहा।


रातें लंबी हुईं,

दिन सूने,

वक़्त

जैसे

सिर्फ इंतज़ार में

गुज़रता रहा।


फिर,

कई सालों बाद,

एक मोड़ पर

तुम फिर मिलीं—

थोड़ी बदली,

थोड़ी वैसी ही।


वक़्त

हमारे बीच

अब भी था,

पर आँखों में

फिर वही

पहली सी बात थी।


एक नज़र—

और

वक़्त पीछे

बहने लगा,

वो पहली मुलाक़ात

जैसे

फिर से हो गई हो।


हम बोले नहीं

बहुत कुछ,

पर रूहें

फिर गले मिलीं।


अब जो साथ हैं

तो लगता है—

वो जुदाई

शायद ज़रूरी थी,

हमें

असली मिलन का

अर्थ सिखाने के लिए।


अब हम

सिर्फ दो बदन

एक जान नहीं,

बल्कि

दो बार मिले हुए

दो सबक़ हैं

एक प्रेम के।


अब न कोई डर,

न कोई संकोच।

सिर्फ अपनापन,

सिर्फ भरोसा—

और

वो रूहानी प्यार,

जिसे

समय भी

तोड़ न सका।

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