जब मैंने तुमको
पहली बार देखा था
तुम यौवन की दहलीज़ पर
सजधज कर खड़ी थीं
मासूम मुस्कान,
अपलक नज़रें
मेरे दिल में उतर गईं
मेरे होंठों पर
हल्की सी मुस्कान तैर गई
जैसे किस्मत ने
हमें मिलाने का
इंतज़ाम पहले से कर रखा हो
भीड़ थी चारों ओर
पर तुम्हारी आँखें
बस मेरी आँखों को
ढूंढ रही थीं
और मेरी रूह
तुमसे जा मिली
फिर मिलने लगे हम
बार-बार, चुपचाप
हर बार तुम्हें
अपलक निहारता रहा
तुम शरमाकर
रंगों में ढल जाती थीं
जब तुम्हें आलिंगन करता
तुम्हारा तन जैसे
फूल बनकर
मेरे दिल से चिपक जाता
धड़कनों की लय
हमारे बीच पुल बन जाती
हम बोलते नहीं थे
फिर भी सब कहते थे
रूहें एक थीं
बस देहें अलग
पर फिर एक दिन...
जिन्हें अपना समझा
उन्होंने ही
हमारे बीच
ज़हर बो दिया
तेरा विश्वास डगमगाया
मेरी खामोशी
तेरे मन में शंका बन गई
और हम
दो किनारे बनकर
खामोशी में बहते रहे
बिछड़ गए हम
बिना अलविदा कहे
सालों साल
तेरी यादें
मेरे तकिये में समाई रहीं
तेरा नाम
मेरी सांसों में गूंजता रहा
समय बीतता गया
पर इंतज़ार नहीं थमा
एक दिन, अचानक
वक़्त फिर मोड़ा गया
और तू सामने थी
वही आँखें
पर अब उनमें नमी थी
हम चुप थे
पर दिल ज़ोर से धड़क रहे थे
तेरी आंखें पूछ रही थीं —
"इतने साल... क्यों?"
मैंने बस
तेरा हाथ थामा
और तुम
फिर वही सतरंगी बन गईं
हम फिर मिले
इस बार
हर पल को
जी भर के जिया
हर दर्द को
मुस्कान में पिघलाया
अब न कोई शिकवा है
न डर
बस तू है, मैं हूं
और हमारा अधूरा
अब पूरा सा
प्यार
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