Sunday, 18 May 2025

जहाँ छोड़ा था

 तेरी पहली नज़र,

मेरे दिल को पागल कर गई

मुझे लगा जैसे

सारी कायनात मुझे मिल गई


तू दिखी थी दूर,

पर दिल में समा गई,

एक पल में

जैसे सदियों की पहचान हो हमारी


तेरी हँसी में,

कोई जादू था,

तेरी चाल में,

कोई नशा था।


हवा थम गई थी,

वक़्त रुक गया था,

और दिल ने कहा,

“यही है… बस यही है।”


हम छुप-छुपकर मिले,

सांसों की ओट में,

चुपचाप जीते रहे

इस दुनिया की चोट में।


तेरे हाथों की गर्मी,

मेरी ठंडी रूह का सुकून थी,

तेरी बाँहों की जकड़,

मेरी हर अधूरी दुआ का जुनून थी।


तेरे होठों पर

जब मेरा नाम थरथराया,

तो जैसे पूरा ब्रह्मांड

मेरे अंदर समाया।


हमने वक़्त से चुराए लम्हे,

चोरी-छुपी मोहब्बत की,

कभी दरख़्तों की छांव में,

कभी तन्हा सड़कों पर।


हमने दुनिया को

नज़रें चुराकर प्यार किया,

जिसे देख न पाए कोई,

उस एहसास को जी लिया।


मगर फिर आई,

वो साज़िशों की आंधी,

कुछ रिश्तों ने

हमारे बीच दीवार खड़ी कर दी।


गलतफहमियों ने

हमें छीन लिया,

और हमने…

एक-दूजे को खो दिया।


मैं तुझे ढूंढता रहा,

हर चेहरे में, हर साये में,

तेरी खुशबू

अब भी मेरी साँसों में थी।


तेरा नाम

अब भी मेरी धड़कन था,

पर तू…

कहीं दूर गुम थी।


वक़्त गुज़रता गया,

हम उम्र की ढलान पर आए,

बालों में चाँदी उतर आई,

पर दिल अब भी जवान था।


फिर एक दिन —

जैसे कोई सपना जागा,

तू मिली मुझे

एक भीड़ के किनारे।


तेरा चेहरा —

अब भी वैसा ही,

बस थोड़ी थकान,

थोड़ी पहचान… और बहुत सारा प्यार।


हमने एक-दूजे को देखा,

तो जैसे सालों की चुप्पी टूटी,

आँखें बोल पड़ीं —

"तू वही है ना… जो मेरा था…?"


हम मुस्कुराए,

भीगे नयन,

हाथ कांपे —

पर दिल स्थिर था।


तेरे हाथों में

अब कोई और था,

मेरे हाथों में भी,

कुछ और जिम्मेदारियाँ थीं।


पर उस पल —

हमने सब भुला दिया,

वो सब बरस

जैसे किसी धुंध में खो गए।


मैंने तेरा हाथ थामा,

जैसे पहली बार,

तू लिपटी मुझसे,

जैसे अधूरा सपना पूरा हो गया।


तेरे होंठ फिर बोले —

"अब बहुत देर हो चुकी…"

और मेरी आँखें बोलीं —

"पर प्यार कभी पुराना नहीं होता…"


हमने फिर से

उस अधूरी कहानी को जिया,

जहाँ छोड़ा था —

वहीं से शुरू किया।

No comments:

Post a Comment