तेरी पहली झलक,
जैसे सांस थम गई,
समय वहीं रुक गया,
नज़रों ने कसमें खा लीं।
धड़कनों की जुबां,
तू समझने लगी,
बिना कहे बातों में,
हम बहकने लगे।
हाथ थामे तेरा,
जहाँ छिपते रहे,
भीड़ से दूर,
ख़ामोशी में जिए।
तेरी वो बाहों की जकड़,
मेरी हर थकान का मरहम,
तेरे होंठों की गर्मी,
जैसे पहली बारिश की नमी।
हर मुलाक़ात में,
वक़्त हार जाता था,
और हमारा प्यार,
हर बार जीत जाता था।
फिर एक दिन,
कुछ परछाइयाँ आईं,
शक, फ़रेब,
जैसे ज़हर बनकर छाई।
बिछड़ गए हम,
बिन कहे, बिन लड़े,
किस्मत की चाल में,
दो दिल जुदा हुए।
तुझे ढूंढा मैंने,
हर मोड़, हर गली,
तेरी हँसी की गूंज,
मेरी धड़कनों में गूंजी
सालों की गर्द,
बालों में सफ़ेदी बन गई,
पर दिल वही,
जो तुझसे जुदा ना हो पाया
और फिर,
वो एक दोपहर आई,
जब तू सामने थी,
बिल्कुल वैसी ही, मेरी परछाई।
तेरी आँखों में,
अब भी वही शोला था,
जिसने कभी,
मेरी वजूद को
अपनी गर्मी से जला दिया था।
तू भी थम गई,
मैं भी रुक गया,
सालों का फ़ासला,
एक नज़र में मिट गया।
हम दोनों के हाथों में,
अब और भी हाथ थे,
पर दिलों की कहानी में,
अब भी सिर्फ़ "हम" थे।
तू मुस्कुराई,
जैसे वक़्त ने माफ़ किया,
और मैंने कहा —
"चलो वहीं से शुरू करें,
जहाँ तुम्हें छोड़ा था…"
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