जब मैंने तुमको पहली बार देखा था...
तुम यौवन की दहलीज़ पार कर
अद्भुत सौंदर्य का लिबास पहने
अपने होठों पर मासूम सी मुस्कान लिए
अपलक मुझे निहार रही थी
मेरे होठों पर भी
एक हल्की मुस्कान
नाच उठी
शायद नियति ने
हमें यूँ ही
मिलाने का
फैसला किया था
ज़माने की अनगिनत निगाहें थीं
पर तुम्हारी आँखें
सिर्फ मेरी आँखों को
ढूँढ रही थीं
और मैं
अपनी किस्मत पर
इतराने लगा
तुम्हारी रूह
तुम्हारी नज़र के रस्ते
मेरे भीतर उतर आई
और मेरी रूह से
जाकर मिल गई
हम दो बदन
एक जान बन गए
हम एक हो चले थे...
तेरे हर ख्वाब में
मैं था
मेरे हर ख्याल में
तू
तेरी हर मुस्कान
मेरे दिल में
गूंजती थी
तेरा नाम
मेरे होंठों की आदत बन गया था
चाँदनी रातें
तेरी महक में भीगने लगीं
हवाओं ने भी
हमारा नाम
एक साथ पुकारा
हम आत्मा से जुड़ चुके थे
जिसे कोई दुनिया
कोई धर्म
कोई दीवार
तोड़ नहीं सकती थी
या...
शायद हमें ऐसा लगा था
फिर जुदा कर दिया हमें...
फिर एक दिन
ज़माने ने
अपनी साजिशें बुन डालीं
रस्में, रिवाज़, रिश्तों के नाम पर
हमें अलग कर दिया गया
तेरी सिसकियाँ
मेरे ख्वाबों में गूंजती रहीं
और मेरी खामोशी
तेरे आँचल से लिपट कर
रोती रही
मैं चिल्लाया नहीं
बस हर रोज़
अंदर ही अंदर
मरता रहा
तेरी तस्वीर
मेरे दिल के मंदिर में
जलती रही
एक दीपक की तरह
वक़्त बीत गया...
वर्षों बीते
तेरे बिना
हर लम्हा
एक युग बन गया
मैं ज़िंदा था
पर अधूरा
तू कहीं दूर थी
पर हर धड़कन में थी
तेरे बिना
हर खुशी
एक सज़ा लगती थी
फिर तू मिली...
और फिर
एक मोड़ पर
वक़्त ने
फिर से हमें
सामने ला खड़ा किया
तू वही थी
पर अब कुछ थकी हुई
तेरी आँखों में
वही समंदर था
पर अब लहरें शांत थीं
दर्द से बोझिल
मैं भी
वक़्त के थपेड़ों से
गुज़र चुका था
तेरे सामने खड़ा था
टूटा हुआ
पर तुझे पाने की
इच्छा अब भी
ज़िंदा थी
हमने कुछ नहीं कहा
बस देखा
लंबे समय तक
तेरी आँखों से
एक आँसू गिरा
जो मेरे दिल पर
टपक कर
सब कह गया
अब हम फिर साथ हैं...
हम फिर जुड़े
पर अब बिना शोर
बिना वादे
बिना उम्मीदों के
अब बस साथ हैं
चुपचाप
जैसे दो रूहें
जो सब जानती हैं
पर कुछ कहती नहीं
अब हम फिर
दो बदन
और एक जान
बन चुके हैं
इस बार
कुछ ज्यादा समझदार
थोड़े टूटे हुए
पर और भी गहरे
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