Sunday, 25 May 2025

मिलन की रूहानी रेत पर

मेरा चाँद,

सालों बाद

फिर से मेरी रात में उगा।


वो नज़्म,

जो अधूरी थी,

अब मुकम्मल हो गई सदा।


वो स्पर्श,

जो ख्वाबों में था,

अब हथेलियों में बसा।


तू मिली तो

ज़िन्दगी ने

दुबारा जीना सिखा।


तेरे आँचल में

वो हवा है,

जो मेरी साँसों को छू जाए।


तेरी आँखों में

अब भी वही शामें,

जिन्हें देखकर दिल बहक जाए।


मैं ढूँढता रहा

तुझमें खुद को,

और तुझमें ही सब पा गया।


तू लौटी नहीं,

तू तो थी हमेशा,

वक़्त ही रास्ता भटक गया था।


अब ना कोई मौसम

बिछड़ने वाला,

अब ना कोई पल अधूरा सा।


तू मेरे लहू में 

घुली हुई,

मैं तेरे स्पंदन में 

बसा।


अब हम 

वो इबादत बन गए हैं,

जिसे रब भी 

सज़दा करे 


हम वो दुआ हैं

जो अधरों से नहीं,

रूह से माँगी गई।


तेरा मेरा ये मिलन

कोई संयोग नहीं,

ये तो नियति है।


अब हम हैं,

बस हम हैं,

ना कल है, ना अंजाम है।


तेरी बाँहों में

मुझे मेरा वजूद मिला है।

तू लौटी है,

तो जैसे खुदा खुद मिला है।


चलो अब

इस प्यार की रेत पर

हम हमेशा के लिए रुक जाएँ।


ना कोई जुदाई का डर हो,

ना कोई ख्वाब अधूरा रह जाए।


हम मिल गए हैं

इस युग में फिर से—

अब कोई जन्म

जुदा नहीं करेगा।


अब ये प्रेम

नहीं टूटेगा,

ना वक़्त इसे मिटा पाएगा।


हम दो रूहें—एक सांस,

अब हमेशा के लिए 

एक साथ।



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