Saturday, 24 May 2025

जब मैं चला जाऊँ

 कभी जब मैं न रहूँ,

मुझे भूल जाना तुम,

यादों में जो आ जाऊँ,

आँसू न बहाना तुम।


ना मेरी तस्वीरों को छूना,

ना उन चिट्ठियों को पढ़ना,

बस उन्हें किसी बंद दराज़ में रख देना —

जैसे कोई अधूरा ख़्वाब।


मैं लौटकर अब नहीं आऊँगा,

ना किसी हवा के झोंके में,

ना किसी गीत की धुन में,

ना ही चाँदनी की चुप्पी में।


पर जब अकेलापन तुम्हें चुपचाप निगलने लगे,

तो मेरी कविताओं के पन्ने खोल लेना,

जहाँ-जहाँ दर्द की स्याही बही है,

वहाँ मैं आज भी ज़िंदा हूँ।


मैं शब्दों में हूँ,

मैं छंदों में हूँ,

मैं हर उस विराम में हूँ

जहाँ तुम साँस भरके रुक जाया करती थी।


मेरे जाने के बाद

कोई और अगर तेरे पास हो,

तो शर्मिन्दा मत होना,

मैं जानता हूँ —

विरह की तपन में

परछाइयाँ भी आशियाना बन जाती हैं।


मुझे याद कर मत रोना,

तेरे आँसू मुझे कमज़ोर कर देंगे,

मैं अब टूटना नहीं चाहता।

मैं बस एक रूह हूँ

जो तुझसे बंधी है, और 

तेरे हर लहजे में सांस लेती है।


कोई पूछे कभी 

मेरे वज़ूद के बाबत 

तू कह सके तो इतना ही कहना —

वो कहीं गया नहीं,

वो अब 

एक कविता बन गया है


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