Saturday, 24 May 2025

तेरे बाद की ख़ामोशी

तेरे जाने के बाद 

ये खामोशी ये तन्हाई 

मेरी ग़म में 

शिद्दत से शामिल हैं 


हर डगर  

तेरा साया ढूंढूं

हर मोड़ पर बस 

तेरा नाम बुनूं


हवा भी अब 

अजनबी सी लगती है

तेरे एक स्पर्श को 

हर सांस तरसती है


कमरे में तन्हाई 

कुछ कहती नहीं

बस दीवारें 

चुपचाप सहती रहीं


तेरा तकिया भी अब 

मुझसे रूठ गया

तेरी ख़ुशबू तक 

कमरे से छूट गया


कभी जो 

तेरे बालों में उलझा वक़्त था

जुदाई में अब हर लम्हा 

सिसकता रहता है 


किताबें भी 

अब नहीं पढ़ी जाती है 

हर लफ्ज़ में 

तेरी तस्वीर दिख जाती है 


वो जो तू हँसी थी 

शाम की रौशनी में

वो हँसी 

अब चुभती है हर तन्हाई में


ख़ुद से मिलने का 

अब दिल नहीं करता है 

आईना देखूँ तो 

चेहरा भी डरता है 


माँगा था तुझसे  

बस थोड़ा सा सुकून

मिला दर-बदर 

टूटा हुआ जुनून


अब न शिकवा है 

न सिला कोई

बस तू जो आ जाती  

नहीं होता गिला कोई 




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