कोई है जिसे
मेरी परवाह है
कोई है जिसे
मुझसे मोहब्बत है
कोई है जिसको
मेरा इंतज़ार रहता है
कोई तो है जो
मुझे बेइंतहा प्यार करता है
कौन है वो
क्या नाम है उसका
कोई पता तो होगा उसका
जहां उसका ठिकाना होगा
शायद वहीं पर
मेरा भी आशियाना होगा
उसको मिलने की हसरत
दिल में लिए
दर ब दर भटकता हूँ मैं
उसको पाने की
तमन्ना लिए
गली गली घूमता हूँ मैं
बड़ी ख़ामोशी से
हर रात उससे बातें करता हूँ
चाँद को उसका हमराज़ समझ
सितारों से उसके क़िस्से कहता हूँ
हवा जब उसके शहर से आती है
मैं साँसों में उसे कैद कर लेता हूँ
वो जो कभी सामने नहीं आया
उसे ख्वाबों में रोज़ जी लिया करता हूँ
कभी किसी अजनबी की हँसी में
उसकी आवाज़ ढूँढता हूँ
कभी किसी परछाईं में
उसका चेहरा बुनता हूँ
वो कोई परी है शायद
या मेरी तन्हा दुआओं का असर
जो हर धड़कन में बसी है
बिना मिले, बिना कहे—सदियों से
कभी लगे वो बहुत पास है
तो कभी बस एक वहम सा लगता है
लेकिन यकीन है मुझे
किसी मोड़ पर, किसी पल
वो मिल ही जाएगी
जिसके लिए ये दिल
हर रोज़ थोड़ा और धड़कता है
वो जब मिलेगी
तो शायद वक़्त भी थम जाएगा
लफ़्ज़ गुम हो जाएँगे
सिर्फ़ आँखों से ही
सारा इज़हार हो जाएगा
शायद वो मुस्कुराएगी
और मेरी सारी थकान
बस एक पल में उतर जाएगी
शायद वो कुछ न कहे
पर उसकी ख़ामोशी ही
मेरे हर सवाल का जवाब बन जाएगी
उसकी चूड़ियों की खनक में
मैं अपना सुकून ढूँढ लूँगा
उसकी पलकों की छाँव में
अपनी पूरी दुनिया बुन लूँगा
वो जो आज एक रहस्य है
कल मेरी हकीकत होगी
जो आज दुआ है
कल मेरी आदत होगी
और फिर
इन भटकती गलियों का सफर
एक मंज़िल बन जाएगा
उसके कदमों से जुड़कर
मेरा वजूद मुकम्मल कहलाएगा
जब वो मिल गई
तो जैसे सारी कायनात
एक पल में मुस्कुरा उठी
हर मौसम ने रंग बदला
हर साज़ ने कोई नई धुन छेड़ी
अब सुबहें उसकी आवाज़ से जागती हैं
और रातें उसकी बातों में सिमट जाती हैं
उसकी हँसी मेरे घर की रौशनी है
उसकी मौजूदगी मेरा सबसे हसीं सच है
अब खामोशियाँ भी सुकून देने लगी हैं
क्योंकि वो पास होती है
अब तन्हाई का नाम भी
किसी भूले हुए ख्वाब सा लगता है
कभी साथ बैठकर चाय पीना
जैसे इबादत का हिस्सा हो
कभी उसकी नज़रों में देखना
जैसे पूरी ज़िंदगी वही ठहर गई हो
अब मैं उसे पढ़ता हूँ
हर दिन, हर लम्हा
कभी उसकी ज़ुल्फों की कहानी
कभी उसकी उंगलियों का फ़साना
अब उसके हर पहलू में
अपना घर बसा लिया है मैंने
और जानती हो?
वो भी कभी-कभी
मेरे पुराने अशआर दोहराती है
जिन्हें मैंने तन्हाई में
बस उसके लिए लिखा था
तो आओ…
अब उस मोड़ पर चलें
जहां इश्क़ जवान नहीं,
पर और भी गहरा हो चुका है—
वो अब भी मेरे साथ है
सफेद ज़ुल्फों, कांपते हाथों के साथ
पर उसकी मुस्कान में
अब भी वही पहला दिन चमकता है
हम अक्सर पुराने अल्बम खोलते हैं
और हर तस्वीर में
वक़्त को थमते हुए पाते हैं
"याद है तुम्हें?" वो पूछती है
और मैं कह देता हूँ—
"तुम्हें भूलना तो कभी सीखा ही नहीं"
अब हमारी शामें
किसी पार्क की बेंच पर कटती हैं
जहां बच्चे खेलते हैं
और हम—एक-दूसरे की आँखों में
अपना गुज़रा हुआ वक़्त तलाशते हैं
अब इश्क़ में शोर नहीं
पर सन्नाटे की भी अपनी मिठास है
अब हम कम बोलते हैं
पर हर खामोशी कुछ कहती है
कभी उसके कांपते हाथों को
अपने हाथों में लेकर
बस बैठा रहता हूँ चुपचाप
जैसे वक़्त को रोक लेना चाहता हूँ
क्योंकि अब समझ गया हूँ—
पल बीत जाते हैं, पर एहसास रह जाते हैं
अब मोहब्बत का मतलब
सिर्फ़ ‘मैं’ और ‘तू’ नहीं रहा
अब हम दोनों मिलकर
एक लम्हा हैं
जो गुज़रा भी नहीं
और कभी जाएगा भी नहीं
अगर तुम चाहो,
तो हम इस इश्क़ को
आख़िरी साँस तक ले जाकर
एक अमर दास्तां भी बना सकते हैं।
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