उनको शिकायत
भी मुझसे ही थी
और उनकी दुआओं में भी
मैं ही था
कैसा है ये रिश्ता हमारा
ना कोई नाम
ना कोई पहचान
पर फिर भी
हम हैं एक दूसरे के जान
रूहों से जुड़े हैं हम
सदियों सदियों से
ऐसे कैसे खत्म होगी
हमारी कहानी
ये तो हर जन्म में
दुहराई जाएगी
हमारी जुबानी
शायद खुदा भी
सोचता होगा
हमें बना कर
कैसे इन्हें मिला दूँ
सब कुछ फ़ना कर
सारी कायनात
मचल उठती है
हमारी दास्तां सुन कर
होश उड़ा देती है
वो दिलों में
ख्वाहिशें बुन कर
जब हम मिलेंगे
तो ये ज़मीं
और ये आसमां भी
कहीं न कहीं मिलेंगे
हमारी तरह
एक दूसरे की बाहों में
फिर फूल खिल उठेंगे
हमारी राहों में
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