Sunday, 4 May 2025

जब हम मिलेंगे

 उनको शिकायत 

भी मुझसे ही थी

और उनकी दुआओं में भी

मैं ही था

कैसा है ये रिश्ता हमारा

ना कोई नाम 

ना कोई पहचान

पर फिर भी 

हम हैं एक दूसरे के जान

रूहों से जुड़े हैं हम

सदियों सदियों से

ऐसे कैसे खत्म होगी

हमारी कहानी

ये तो हर जन्म में

दुहराई जाएगी

हमारी जुबानी

शायद खुदा भी 

सोचता होगा

हमें बना कर

कैसे इन्हें मिला दूँ 

सब कुछ फ़ना कर

सारी कायनात 

मचल उठती है

हमारी दास्तां सुन कर

होश उड़ा देती है 

वो दिलों में

ख्वाहिशें बुन कर 

जब हम मिलेंगे

तो ये ज़मीं 

और ये आसमां भी

कहीं न कहीं मिलेंगे

हमारी तरह

एक दूसरे की बाहों में

फिर फूल खिल उठेंगे

हमारी राहों में

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