वो इश्क़ हम ही से करते हैं
जाने क्यों कहने से डरते हैं
नज़रें मिलती हैं
लब नहीं हिलते
हर बार रुकते हैं
कुछ नहीं बोलते
पास तो आते हैं
पर छूते नहीं
हर बात में
हम ही होते हैं
नाम नहीं लेते
पर आँखें बता देती हैं
रातों को जागते हैं
ख़्वाब में मिलते हैं
सुबह वही
फ़ासले लाते हैं
हमको देख
धीमे से मुस्कुराते हैं
कुछ पल रुकते हैं
फिर लौट जाते हैं
उनकी ख़ामोशी
सब कुछ कह देती है
हम समझते हैं
पर पूछते नहीं
वो छुपाते हैं
पर छूटते नहीं
हम उनके हैं
वो हमारे हैं
मगर इकरार
अब तक अधूरा है
शायद डर है
शायद वक़्त नहीं
या शायद इश्क़
उनके लिए बस महसूस करने की चीज़ है
पर दिल जानता है —
वो इश्क़ हम ही से करते हैं
जाने क्यों कहने से डरते हैं
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