Sunday, 18 May 2025

पहला प्यार — तेरी बाहों में


तू दिखी पहली बार,

तो ज़िंदगी मुस्कुराई।

जैसे कोई बंद दरवाज़ा,

अचानक खुल गया हो।


तेरी आँखों में देखा,

तो जैसे डूब गया,

बिना सोचे,

बिना संकोच।


वो नज़रों की पहली बात,

कुछ कह गई थी।

बोल न पाए,

पर सब कुछ सुन लिया था।


तेरी मुस्कान —

जैसे चुप साज बज उठे,

तेरी साँस —

जैसे कोई मधुर हवा छू जाए।


तेरी ज़ुल्फ़ें —

रात की गहराइयों से भी घनी,

जो मेरे ख़्वाबों की

छाँव बन गईं।


तेरा चेहरा —

खुद एक कविता,

जैसे किसी कवि की

सबसे सुंदर कल्पना।


तेरी आवाज़ —

भीगी हुई रागिनी,

जो सीने के सबसे कोमल

राग को छेड़ जाती।


मैं हर रोज़

तुझे सोचकर जागता,

और तेरे ख्याल में

नींद खो बैठता।


जब तू मिली

भीड़ से दूर,

कोई खाली कोना

हमारा संसार बन गया।


तेरा हाथ थामना —

जैसे धरती आसमान से जुड़ जाए,

तेरी उंगलियों का स्पर्श —

एक नशा, एक सुकून, एक जूनून।


हम जब गले लगते,

तो वक़्त रुकता,

साँसें थमतीं,

और धड़कनों की भाषा

समझ आती।


तेरी छाती से लगकर

मैं खुद को पिघलता पाता,

तेरे दिल की हर धड़कन

मुझे मेरा नाम पुकारती सी लगती।


हम चुप रहते,

पर हमारी त्वचा बोलती थी।

तेरे होंठ —

हर बार मेरी आत्मा को

चूम जाते थे।


तेरे चुम्बन —

कभी हल्के बूँदों जैसे,

कभी तूफ़ान बनकर —

और हर बार,

मैं और थोड़ा तुम्हारा हो जाता।


हमने एक-दूजे में

प्यार की हर सीमा पार की,

बिना कुछ खोए,

सिर्फ़ पाते गए…

एक-दूजे को।


तू मेरी चाहत नहीं,

मेरी इबादत थी।

तू मेरा सपना नहीं,

मेरा जागता हुआ सच थी।


तेरे बिना दुनिया थी,

पर जीवन नहीं था।

तेरे साथ हर क्षण,

जैसे अमरता को छू लेना।


तू अब भी कहीं है —

दिल की उसी जगह पर।

वही पहली नज़र वाली जगह,

जहाँ से मेरा प्यार कभी हटा ही नहीं।


तेरे प्यार में

मैं अब भी जल रहा हूँ,

पर ये आग

अब भी मीठी लगती है।


तेरी बाँहों में

जो पहली बार सिमटा था,

वहीं अब भी

हर रात सिमट जाता हूँ —

तेरे ख्वाबों में।




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