Tuesday, 13 May 2025

तेरे ख़तों की ख़ुशबू में

 

खुशबू से भरे खत तेरे

जब भी हाथों में लेता हूँ,

उनकी ख़ुशबू से ही

खत का मजमूं समझ लेता हूँ।

 

तेरे लफ़्ज़ों की स्याही से

महकती हैं हर शाम मेरी,

तेरी रूह का इक कतरा

पन्नों में छुपा रहता है कहीं।

 

तेरे हर हर्फ़ में

तेरा चेहरा नज़र आता है,

तेरे जान कहने का अंदाज़

हर बार मुझसे बातें करता है।

 

तेरा दिल जैसे

काग़ज़ की तहों में धड़कता है,

और तेरी मुस्कान

हर नुक़्ते में चमकती है।

 

जब लिफाफा खोलता हूँ

तो यूँ लगता है,

जैसे तेरी बाहें

धीरे से मुझे घेर लेती हैं।

 

तेरे खतों की महक

मेरे तकिए में भी बस गई है,

अब हर रात

तेरे अल्फ़ाज़ों के साथ सोता हूँ।

 

तू जब लिखती है,

शब्द नहीं लिखती

अपने एहसास, अपनी धड़कन

मुझे सौंप देती है।

 

मैं जवाब में

कभी गुलाब की पंखुड़ी रख देता हूँ,

कभी अपने इत्र की दो बूँदें

तेरे नाम कर देता हूँ।

 

तेरा हर जवाब

मेरे सीने में इक गीत बनकर उतरता है,

और हर शब्द

तेरी उँगलियों की नरमी सा लगता है।

 

इन खतों की दुनिया में

हमारे बीच कोई फ़ासला नहीं,

तू हर बार उतनी ही क़रीब होती है

जितनी मेरी साँसें मुझसे।

 

क्या ज़रूरत है तस्वीरों की

जब तेरे लफ़्ज़ों से तेरा चेहरा बन जाता है,

और क्या ज़रूरत है आवाज़ की

जब हर हरूफ़ से तेरा साज़ बजता है।

 

तू जब अगला खत भेजे

तो बस इतना करना

कोई भी शब्द छूटे ना

जो तुझसे मेरा हाल कहता हो।

 

मैं फिर उसी ख़ुशबू में

तेरी साँसों को ढूँढ लूंगा,

तेरे खतों में

तेरे प्यार को जी लूंगा।

 

तेरे भेजे हुए वो ख़त

अब मेरे दिल के पास रहते हैं,

तकिए के नीचे छुपाकर रखे हैं

जैसे कोई राज़, कोई नज़्म अधूरी।

 

जब भी तन्हा होता हूँ,

तेरा लिखा एक नाम पढ़ता हूँ,

और लगता है जैसे

तू मेरे कानों में कुछ कह गई हो।

 

तेरी उंगलियों की छुअन

जैसे अब भी काग़ज़ पर बाकी हो,

तेरी साँसों की नमी

हर लफ़्ज़ में महसूस होती है।

 

तेरे हर अल्फ़ाज़ में

इश्क़ की एक लहर होती है,

जो मेरे सीने को छूकर

दिल के सबसे कोमल कोने में बस जाती है।

 

तू जब "मेरे" लिखती है

तो वो 'मेरे' एक दुनिया बन जाता है,

जिसमें सिर्फ़ तू होती है

और मैं, बस तुझमें खोया रहता हूँ।

 

तेरे खतों की स्याही

अब मेरी रगों में बहती है,

जिससे लिखे हर लफ्ज़

जैसे मेरी धड़कनों के साथ धड़कते हैं।

 

तेरा ख़त खोलते ही

हवा भी ठहर जाती है,

हर पंक्ति से उठती है

तेरे इत्र की एक हल्की सी परत।

 

कभी कोई शेर रख देती है तू,

तो वो मेरी रातों की चुप्पी में गूंजता है,

और कभी खाली छोड़ देती है एक कोना

जहाँ मैं अपने होंठ रखकर तुझे महसूस करता हूँ।

 

तू नहीं होती, पर वो लिफाफा

तेरे आँचल सा लगता है,

और उसका मुड़ा हुआ कोना

तेरी हँसी की तरह बेफ़िक्र होता है।

 

तेरे खत पढ़ते हुए

मैं उन्हें सिर्फ़ आँखों से नहीं पढ़ता,

मैं उन्हें जीता हूँ

हर शब्द, हर विराम, तेरे बिना बोले हुए हर अहसास को।

 

तुम जब जवाब में "याद आते हो" लिखती हो,

तो जानती हो?

मैं ख़ुद को तेरे सामने बैठा महसूस करता हूँ

तेरे घुटनों के पास, सर झुकाए,

तेरी नज़रों में डूबा हुआ।

 

कभी सोचता हूँ,

अगर तेरे खत यूँ महकते हैं

तो तू खुद कितनी खुशबू में लिपटी होगी...

तेरे होंठों से निकले लफ्ज़

जब काग़ज़ पर उतरते हैं

तो रूह को भी छू जाते हैं।

 

लिखती रहना यूँ ही

तेरे खतों से ही

मुझे तुझसे इश्क़ करना आता है,

तेरे हर लफ़्ज़ से

मुझे तुझे महसूस करना आता है।

 

 

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