जब मैंने तुमको
पहली बार देखा था
तुम यौवन की दहलीज़ पार कर
अद्भुत सुन्दरता का लिबास पहने
अपने होठों पर मासूम सी
मुस्कान लिए
अपलक मुझे निहार रही थी
एक हल्की सी मुस्कान
मेरे होठों पर भी
नाच उठी
शायद हमारी नियति ने
हमें यूँ ही मिलाना
तय किया था
ज़माने भर की निगाहें थीं वहां
पर
तुम्हारी आंखें
बस मेरी आँखों में तक रहीं थीं
और मैं
अपनी किस्मत पर इतरा रहा था
तुम्हारी रूह जैसे
तुम्हारी आँखों
के रस्ते
मेरी आँखों से होकर
मेरी रूह से
जाकर मिल गई
और फिर
ऐसा लगा
जैसे
हम दो बदन
एक जान बन गए
और फिर शुरू हुआ
मुलाकातों का सिलसिला
हम जहां भी मिलते
मैं तुम्हारी अप्रतिम सुन्दरता को
अपलक निहारता
तुम शरमा कर
सतरंगी बन जाती
जब मैं तुम्हें आलिंगनबद्ध करता
तुम्हारी आँखें बोझिल होकर
झुक जातीं
मेरे आलिंगन पाश में
तुम्हारा फूलों सा बदन
शिथिल पड़ जाता
तुम छोड़ देती थी
खुद को मुझ पर
मेरे आलिंगन में बंध कर
फिर मेरे धड़कते सीने से
लग कर
मेरी धड़कनों से
अपने धड़कन की
लय मिलाती थी
मैं तुम्हारे रस भरे
कांपते अधरों पर
जब अपना अधर रखता था
सारी कायनात
सिमट कर मेरी बाहों में
आ जाती थी
हम घंटों यूं ही
बिना कुछ बोले
बिना कुछ सुने
एक दूसरे में खोये
अपनी रूहों के मिलन
को साकार करते रहते
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