Saturday, 24 May 2025

जब मैं न रहूं - 3

कभी जब मैं न रहूं,

मुझे भूल जाना तुम,

यादों में जो आ जाऊं,

आँसू न बहाना तुम।


कोई गीत जो गुनगुनाओ,

मेरा नाम मत लेना तुम 

मगर जो दर्द हो दिल में,

उसे छुपा लेना तुम।


कभी शाम ढले तन्हा,

जब पत्ते गिरें चुपचाप,

समझ लेना मैं आया था,

तुमसे मिलने एक बार।


न चिट्ठियाँ बचा कर रखना,

न तस्वीरें संजो कर रखना,

मेरा जो भी था, सब मिटा देना,

बस दिल में मेरी याद रखना।


मुझे रोकर न विदा करना,

मैं कोई कारवाँ नहीं,

जो रुके किसी मोड़ पर,

मैं हवा हूँ, बहता रहूँगा 


पर अगर कभी बहुत याद आऊँ,

तो कविता के पन्ने पलटना,

जहाँ भी दर्द का सुर मिले,

वहीं कहीं पास बैठ जाना

वहीँ कहीं मिलूंगा मैं 


हर बिंदी, हर विराम में,

मैं साँस बनके रहूँगा,

हर शब्द में एक छाया सी,

मैं सुकून बनके बहूँगा।


जब बारिशें चुपके से गिरें,

खिड़की से देख मुस्कुराना,

मत कहना "काश वो होता",

बस मुझ को पास ही पाना।


जीवन बहुत लंबा होगा,

जाना मेरा क्षणिक है बस,

मैं गया नहीं पूरी तरह,

मैं रह गया — गीतों में बस।


इस अंतिम यात्रा पर,

न हार लेकर आना तुम,

बस दो बूँदें पन्नों पर,

कविता बनकर छोड़ आना तुम।




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