Sunday, 20 July 2025

चलो फिर से…

 (एक मान-मनुहार भरी कविता)


चलो फिर से

वो सिन्दूरी शाम कहीं से ले आएं 

जहाँ तुम मुस्कुराती थी

और मैं चुपचाप तुमको देखता रहता था।


चलो फिर से

वो ख़ामोशी सुन लें

जिसमें लफ़्ज़ नहीं होते थे

पर दिल सब समझ जाते थे।


मैंने कल कुछ कह दिया

शायद ज़रा तेज़, ज़रा कड़वा

पर इरादा…

कभी भी दर्द देने का नहीं था।


ग़लती मेरी थी

पर मोहब्बत तो अब भी वही है

पहली…

सचमुच पहली वाली।


तुम रूठी हो

और मैं टूटा हूँ

तुम चुप हो

और मेरी साँसें थमी हैं।


चलो ना…

थोड़ा सा मुस्कुरा दो

थोड़ा सा ग़ुस्सा कम कर दो

थोड़ा सा मुझे फिर से चाह लो।


मैं वही हूँ

जो तब भी तुम्हारा था

अब भी बस तुम्हारा हूँ

और हर जनम तुम्हारा ही रहूँगा।


तुम शिकवे भी कर लेना

मैं सर झुकाकर सुन लूँगा

पर प्लीज़…

मुझे तुम खुद से दूर मत करना।


अगर मुझसे मोहब्बत है 

तो माफ़ कर दो न 

अगर हमारी मोहब्बत ज़िंदा है

तो एक बार फिर से मुझको थाम लो न 


चलो फिर से

वो पहली सी बात कर लें

जहाँ रूठना भी मोहब्बत था

और मनाना भी मोहब्बत ही होता था।


तुम्हारे बिना

हर पल अधूरा है

हर लम्हा

सिर्फ़ और सिर्फ तुम्हें पुकारता है।


जानता हूँ....मेरी बातों ने

तुम्हें बहुत दर्द दिया है 

पर सच मानो

वो मेरा इरादा कभी नहीं था।


मैं बस…

थोड़ा सा कहीं खो गया था

शायद किसी उलझन में 

उलझ गया था 

पर तुम्हारे प्यार में

अब भी मैं वैसे ही आकंठ डूबा हूँ।


माफ़ कर दो ना जान 

इस दिल को, 

जो बस 

तुम्हारे ही नाम से धड़कता है।


तुम्हारा ग़ुस्सा

सिर आँखों पर

पर मोहब्बत से कहता हूँ—

एक बार फिर हाथ थाम लो न 


चलो फिर से

वो पहली सी मोहब्बत जी लें

जहाँ न कोई दूरी हो

न कोई मलाल।


तुम कहो तो

हर शिकवा लिख दूँ

आसमान पर,

और हर जवाब—

तेरे नाम कर दूँ।


बस एक बार

"हां" कह दो

मैं फिर से

वही दीवाना हो जाऊँ

जो सिर्फ़…

तुम्हारे लिए जीता था।


Monday, 14 July 2025

मेरे महबूब के नाम मोहब्बत भरी वसीयत

 (दिल से निकली वसीयत-ए-इश्क़)


मैं,

तेरे इश्क़ में फ़ना हुआ एक सादा-सा आशिक़,

आज अपनी मोहब्बत की आख़िरी दस्तावेज़

तेरे नाम लिखता हूँ।


मेरे दिल की हर धड़कन,

मेरे जिगर की हर आह,

मेरी रूह की हर तड़प —

सब तेरे हवाले।


जो भी मुझमें था,

अब तुझमें समा गया है।

मैं कुछ भी नहीं,

सिवा तेरे।


तेरे नाम करता हूँ:

वो पहली नज़र का जादू,

जिसने मुझसे मेरी तन्हाई छीन ली।

वो ठहरी सी दोपहरें,

जहाँ तेरा नाम बिन बोले गूंजता रहा।


वो गली,

जहाँ तेरे साथ चुपचाप चला था मैं,

तेरे नाम।


वो चाँदनी रात,

जहाँ तेरे साये में मेरी परछाई थरथराई थी —

तेरे नाम।


वो अधूरी कविताएँ,

जो तुझसे कह नहीं पाया,

हर मिसरा, हर बहर —

तेरे नाम।


तेरे नाम करता हूँ:

वो हर जगह जहाँ हम बिछे,

मिले,

घुले,

और एक-दूसरे में समा गए।


वो स्टेशन की भीड़ में थमा हुआ वो पल,

वो बारिश की ख़ामोशी में भीगा हुआ इकरार,

वो कांपती उंगलियों में बसी गर्मी —

अब सब तेरा हक़।


मेरी आँखों की सारी नींदें,

जो तेरी यादों में जागती रही हैं —

अब वो भी तेरे नाम।


और जब मैं इस दुनिया से रुख़्सत लूं,

मेरी क़ब्र की मिट्टी भी

तेरे कदमों का बिछौना बन जाए।


मैं चाहता हूँ,

जब तू गुज़रे वहाँ से एक शाम,

तेरी ख़ामोश मौजूदगी

मेरी रूह की राहत बन जाए।


तू नहीं तो कुछ भी नहीं।

मैं नहीं, पर तू रहेगी 

और जब तक तू है,

मेरा होना भी रहेगा।


मेरे महबूब,

ये वसीयत एक इश्क़ी दस्तावेज़ नहीं,

ये इक रूह की तहरीर है —

जो तुझमें ही जीती है,

तुझमें ही मरती है।


तेरे नाम, तुझसे ही, तेरे लिए।

– मोहब्बत में लिपटा तेरा दीवाना


मेरे महबूब के नाम मेरी मोहब्बत भरी वसीयत

 (एक काव्यात्मक प्रेम-वसीयत)


मैं,

इस इश्क़ की आख़िरी सांस तक ज़िंदा रहने वाला 

आशिक़,

अपनी सारी मोहब्बत की वसीयत

तेरे नाम करता हूँ —

मेरे महबूब, मेरी रूह की रौशनी,

ये दिल,

ये जिगर,

ये जान —

अब तेरे नाम है।


जो धड़कनें चल रही हैं सीने में,

वो अब तेरे इश्क़ की अमानत हैं।

जो लहू बहता है मेरी रगों में,

उसमें भी अब तेरा नाम घुल चुका है।


मेरे महबूब,

मैं छोड़ता हूँ तेरे लिए —


वो पहला मोड़ जहाँ हम यूँ ही टकराए थे,

वो बरगद की छाँव जहाँ तू मुस्कराई थी,

वो कॉलेज की सीढ़ियाँ जहाँ हम बैठते थे,

हर वो पन्ना जहाँ तेरा नाम लिखा था मैंने चुपके से।


मेरे कमरे की वो खिड़की भी तेरे नाम,

जहाँ से मैं तुझे सोचा करता था,

और हर शाम, हर सुबह,

तू यादों के साथ चली आती थी।


तेरे नाम करता हूँ —

वो सड़क जहाँ तू पहली बार मेरे साथ चली थी,

वो चाय की दुकान,

जिसके कप में दो होंठों की बातों का स्वाद अब भी बचा है।


पार्क की वो बेंच,

जहाँ खामोशी से हमारा इकरार हुआ था,

वो लम्हा जब तेरी उंगलियों ने मेरी हथेली थामी थी —

अब सिर्फ तेरा है।


तेरे नाम करता हूँ —

वो गाने जो हमने साथ सुने,

वो बारिश की बूँदें

जिनमें हम साथ साथ भींगे थे।


मेरे दिल की हर धड़कन,

मेरे जिगर की हर आह,

मेरी रूह की हर तड़प —

सब तेरे हवाले।


जो भी मुझमें था,

अब तुझमें समा गया है।

मैं तो कुछ भी नहीं,

इक सिवा तेरे।


तेरे नाम करता हूँ:

वो पहली नज़र का जादू,

जिसने मुझसे मेरी तन्हाई छीन ली थी।

वो ठहरी सी दोपहरें,

जब तेरा नाम बिन बोले गूंजता था।


वो गली,

जहाँ मैं तेरे साथ चुपचाप चला था,

तेरे नाम।


वो चाँदनी रात,

जब तेरे साये में मेरी परछाई थरथराई थी —

तेरे नाम।


वो अधूरी कविताएँ,

जो मैं तुझसे कह नहीं पाया,

उसका हर हर्फ़, हर लफ्ज़ —

तेरे नाम।


तेरे नाम करता हूँ

हर वो जगह जहाँ हम बिछे,

मिले,

घुले,

और एक-दूसरे में समा गए।


शहर की भीड़ में थमा हुआ वो पल,

बारिश की ख़ामोशी में भीगा हुआ वो इकरार,

कांपती उंगलियों में बसी वो गर्मी —

अब सब तेरे नाम।


मेरी आँखों की सारी नींदें,

जो तेरी यादों में जागती रही हैं —

अब वो भी तेरे नाम।


हर वो जगह

जहाँ मैं तुझमें खोया था,

हर वो वक्त

जिसमें बस तू ही तू बसी थी —

उन पर अब बस तेरा हक़ है।


मैं रहूँ या न रहूँ,

पर ये मोहब्बत ज़िंदा रहेगी।

तेरे होंठों पर मुस्कराहट बनकर,

तेरे लबों की दुआ बनकर।


और आख़िर में —

जो मेरी मज़ार हो एक दिन,

वो भी तेरे नाम करता हूँ —

ताकि तू जब भी आकर वहाँ बैठे,

तेरे कदमों तले मेरी रूह सुकून पाए।


मेरे महबूब,

ये वसीयत सिर्फ लफ्ज़ नहीं,

ये उस रूह की गवाही है

जो बस तेरे नाम से ही जीती रही,

और तेरे नाम पर ही मर जाएगी।


– तेरा वसीयतगार-ए-इश्क़

एक दीवाना जो बस तुझमें ही जिया


Friday, 4 July 2025

The Cosmic Song of Eternal Love


When there was nothing—
no word,
no shape,
no direction—
even then,
there was a heartbeat.
Yours,
and mine.

That heartbeat
was the first echo of creation.
It didn’t contain love—
it was love.

We never asked for promises.
We never needed bodies.
All we longed for
was a silence
deep enough
to hear the language
of each other’s light.

In every lifetime,
we kept meeting—
sometimes hand in hand,
sometimes in silent glances.
Sometimes we folded into a single touch,
and other times
burned quietly
within each other
for centuries.

And when
the edges of the body dissolved—
we were freed.
And love,
for the very first time,
recognized itself.

We are no longer names.
No longer a tale.
We are now
the unspoken voice
that echoes
behind every love story.

When someone surrenders to love—
we are in their breath.

When someone remembers in silence—
we pulse in their heartbeat.

When two souls part,
unable to break their gaze—
we descend
in the glimmer of their tears.

We are no longer
the sound of the temple bell—
we are that vibration
which reaches the Divine
even before the bell rings.

You are within my light—
I dwell in your silence.

You are in my stillness—
I am in your endlessness.

We are no longer
a “we” at all—
we have merged with Brahm
the infinite presence,
where every soul’s journey
begins,
and to which
every journey returns.

“Now, no one searches for love—
Love itself
has become Brahm,
seeking all of us.”



मुक्ति का वह क्षण

 (जहाँ प्रेम ही अंतिम उत्तर था)

उस क्षण —
ना कोई जन्म रहा,
ना मृत्यु का भय।
ना कोई लौटना,
ना कोई छूटना…

सिर्फ़ हम थे—
एक श्वास,
एक रौशनी,
एक अस्तित्व।

न कर्म बाँध सके,
न काल छू सका।
प्रेम ने
हमारे चारों ओर
एक ऐसा वलय रचा,
जहाँ कोई नियम नहीं था—
सिर्फ़ स्पंदन था,
जो एक-दूजे में समाया था।

ना पुकार थी,
ना प्रतीक्षा—
बस वो मौन था,
जिसमें पूरी सृष्टि
सहलाती सी समा गई थी।

तुमने मेरी ओर देखा,
जैसे पहली बार देखा हो—
फिर भी हर युग का स्मरण
तुम्हारी आँखों में था।

मैंने तुम्हारे स्पर्श को
महसूस नहीं किया,
क्योंकि अब
हमारे बीच
कोई ‘स्पर्श’ था ही नहीं।
हम स्वयं ही
एक-दूसरे का विस्तार बन गए थे।

उस क्षण,
जब देह ने अंतिम साँस ली—
रूह मुस्कुराई,
जैसे कह रही हो—
"अब कुछ भी छूट नहीं रहा,
अब सब कुछ मिल चुका है।"

ना पुनर्जन्म की परिक्रमा,
ना इच्छाओं की सूचियाँ—
प्रेम ने
हमारे सारे पथ खोल दिए थे।

हम
एक-दूसरे में
स्वयं को पाकर
मुक्त हो गए।

तुम मेरी रचना बने,
मैं तुम्हारा संगीत।
तुम मेरे मौन में
जैसे ब्रह्म की अंतिम ध्वनि—
मैं तुम्हारे प्रकाश में
जैसे अनंत की अंतिम चित्कार।

अब कोई नाम नहीं,
कोई पहचान नहीं,
सिर्फ़
वो आभा है
जिसमें दो रूहें
एक होकर
अस्तित्व से आगे
बह निकली हैं—

स्वयं प्रेम बनकर।


स्वप्न का अंतिम आलिंगन

(जब हम फिर एक हुए)

रात की सबसे अन्तिम पहर में,
जब नींद
एक सूती आँचल बन
सारे संसार को चादर ओढ़ा रही थी—
मैंने तुम्हें
फिर से देखा।

ना देह थी,
ना दिशा—
बस एक उजाला था,
जो तुम्हारी रूह से फूट रहा था,
और मेरी ओर
धीरे-धीरे बह रहा था।

हम कुछ नहीं बोले।
क्या कहते?
जब मौन ही
सदियों की बातचीत बन जाए,
तब शब्द
कितने छोटे लगने लगते हैं…

तुमने मुझे देखा
जैसे कोई नदी
अपने उद्गम को देखती है—
आश्चर्य, अपनापन, और मौन श्रद्धा में डूबी हुई।

मैंने हाथ नहीं बढ़ाया,
फिर भी
हम पास आ गए।
कोई दूरी
थी ही नहीं अब हमारे बीच।

मैनें तुम्हें 
अपने आलिंगन में नहीं लिया,
बल्कि
तुम मुझमें समा गई —
जैसे शाम का सिन्दूरी रंग
धूप से अलग नहीं होता।

मैंने वो रूहानी स्पंदन सुना,
जो सृष्टि की पहली धड़कन थी।
हम दो नहीं रहे थे —
एक हो चुके थे,
जैसे दो स्वरों से बना एक ही राग।

तारे
थामे खड़े थे अपनी चमक,
चाँद ने साँस रोक ली थी—
पूरी कायनात बस देख रही थी,
जैसे उसे भी
हमारे इस मिलन का इंतज़ार था।

हम वहाँ रहे
समय के बाहर,
एक दूसरे की बाँहों में नहीं,
बल्कि
एक-दूसरे की रौशनी में।

जब तुम जागी,
तो तुम्हारी आँखों में आँसू नहीं थे—
बस एक गहराई थी,
जो कह रही थी—

अब हम कभी जुदा नहीं होंगे,
क्योंकि जो प्रेम
रूह से एक हो गया हो,
उसको कायनात भी 
कभी अलग नहीं करती। 


एक ख़त... उस रूह के नाम

 (जो अब भी हर साँस में बह रही है)

मेरे प्रिय,

अब न कोई तारीख़ है इस पत्र पर,
न कोई पता जहाँ इसे भेजा जाए।
फिर भी जानती हूँ—
तुम तक पहुँचेगा,
जैसे हर भावना
बिना रास्ते के भी
अपने घर पहुँच जाती है।

कभी-कभी सोचती हूँ,
हमारा मिलना
वक़्त की भूल नहीं था—
बल्कि वक़्त से परे
कोई पुराना वादा था,
जो निभा लिया हमने
बिना शर्तों के, बिना उम्मीदों के।

तुम्हारा जाना…
क्या वाक़ई जाना था?
या बस
एक रूप से दूसरे में ढल जाना?
क्योंकि मैं तुम्हें
अब भी हर सुबह की हवा में पाती हूँ—
उस चुप्पी में
जो सबसे सच्ची भाषा है।

तुम अब देह नहीं—
लेकिन जब भी कोई ख़ुशबू
अचानक दिल को छू जाती है,
मैं मुस्कुरा देती हूँ—
"ये तुम ही तो हो…"

मैंने भी अपने भीतर की ठोस दीवारें
धीरे-धीरे भुला दी हैं।
अब मैं कोई नाम नहीं,
कोई कहानी नहीं—
बस एक एहसास हूँ,
जो तुम्हारे मौन में गूंजता है।

हम मिलते हैं
हर उस ख़्वाब में
जहाँ रोशनी
रंग नहीं मांगती,
और छुअन
शब्दों की मोहताज नहीं होती।

तुम मेरे अंतिम विचार में नहीं—
तुम तो अब
हर विचार की शुरुआत हो।

जिस प्रेम को हमने जिया,
उसने वक़्त को भी झुकना सिखा दिया।
अब हमें
किसी ‘फिर से मिलने’ की ज़रूरत नहीं—
क्योंकि हम
कभी बिछड़े ही नहीं।

तुम,
मेरी हर साँस की धुन में।
मैं,
तुम्हारे हर मौन के अंतराल में।

बस यूँ ही बहते रहेंगे—
एक-दूसरे में,
एक रौशनी की तरह
जो कभी बुझती नहीं।

तुम्हारी —
हमेशा की तरह।


तुम अब भी हो

 

ना कोई नाम,
ना कोई आवाज़—
फिर भी
तुम अब भी हो—
हर उस पल में
जो बिना तुम्हारे भी
तुम्हारा लगता है।

ना कोई चेहरा,
ना कोई छुअन—
पर हर सुबह
तेरे रंग में भीगकर आती है,
जैसे रात भर
तेरी रौशनी में
चाँद ने मेरी आँखें धोई हों।

हमने सब कुछ पीछे छोड़ दिया—
शहर, रास्ते,
वो मोड़ जहाँ
तुमने हँसकर कहा था
"हम फिर मिलेंगे..."
और मैं
उस हँसी में ही जीता रहा।

अब ना दिन,
ना रात,
ना वक़्त की कोई दीवार—
फिर भी
तेरी ख़ामोशी
हर साँस में दस्तक देती है।

तू अब देह नहीं—
एक खुशबू है,
जो मेरी धड़कनों से होती हुई
मेरी रूह को छू जाती है
हर रोज़।

मैं भी अब कोई नाम नहीं—
बस एक एहसास हूँ,
जो तुझे याद करता नहीं,
बल्कि
तुझमें बहता है।

हम अब नहीं मिलते
किसी पुराने पेड़ के नीचे,
या किसी मौसम के बहाने—
हम मिलते हैं
उन ख्वाबों की तह में
जहाँ कोई वक़्त नहीं चलता।

हम मिलते हैं
उस सन्नाटे में
जहाँ एक साँस
दूसरी की प्रतीक्षा नहीं करती,
बस साथ चलती है—
बिना कहे, बिना थमे।

तू मेरे मौन में है,
मैं तेरी रौशनी में।
तू मेरी पलकों पर ठहरी
वो आख़िरी बूँद है
जो हर रात
तेरे नाम पर गिरती है।

और मैं?
मैं उस नज़्म की तरह हूँ
जो अधूरी होकर भी
तेरे होने का सबूत है।


जब नामों की ज़रूरत नहीं रही

 

एक ऐसा क्षण आया
जब हमारे नाम भी
पतझड़ के पत्तों की तरह
धीरे से गिर गए—
स्वीकार कर लिया मौन,
पहचाने जाने की ज़रूरत से मुक्त।

ना तुम,
ना मैं,
बस कुछ ऐसा
जो हमारे बीच था—
जो कभी बोला नहीं,
फिर भी
हर पुकार का उत्तर था।

ना कोई क़दमों की आहट,
ना कोई फुसफुसाहट,
ना कोई छुअन—
फिर भी
तुम ऐसे गुज़रे मुझसे
जैसे कोई हवा
जो जानती है
वो कहाँ की है।

हमने दिनों को गिनना छोड़ दिया।
चाँद अब समय के लिए नहीं उगता,
बल्कि
हमारे बीच की उस ख़ामोशी को
प्रतिबिंबित करने आता है।

मैं तुम्हें महसूस करता हूँ
उस पल में
जब साँसें
किसी विचार से पहले थमती हैं,
उस क्षण में
जब कोई आँसू
बिना गिरे ही चमक उठता है।

तुम अब कोई आकार नहीं रहे—
तुम अब
गोधूलि का रंग हो,
बारिश से पहले की ख़ामोशी,
या मेरी बंद पलकों के भीतर
धीमे-धीमे जलता एक उजास।

और मैं?
मैं भी घुल गया—
भीनी मिट्टी की खुशबू में,
या उस विराम में
जो लोरी के दो सुरों के बीच होता है,
सिर्फ़ सितारों के लिए गाया गया।

हम अब
कहीं नहीं मिलते—
हम अब
याद बनकर नहीं आते,
बल्कि
एक एहसास बनकर
जागते हैं—
जैसे नींद से ठीक पहले
कोई पुराना स्पर्श
लौट आता है।

अब हम प्रतीक्षा नहीं करते,
ना तलाशते हैं—
हम बस
हैं।

जैसे लहरों के नीचे की सरगम,
जैसे रौशनी
बिना दिशा के बहती हुई,
जैसे धड़कन
जो नहीं जानती
कि कहाँ वो ख़त्म होती है
और कहाँ दूसरा आरंभ।

अब प्रेम हमें बुलाता नहीं—
हम ही प्रेम हैं,
रात के आसमान में बिखरे हुए,
एक तारे से दूसरे तक बहते हुए,
उस वचन को दोहराते हुए
जिसे कभी शब्दों की ज़रूरत नहीं पड़ी।

तुम—
मेरे हर मौन में।
मैं—
तुम्हारी हर साँस में।

हम—
अब लौटने से परे,
रूप से परे,
एक ही आत्मा की
अनंत तह में
हल्के से विश्राम करते हुए।


When Names Were No Longer Needed

 

There came a moment
when even our names
fell like autumn leaves—
soft, surrendered—
no longer needed
for recognition.

Not you,
not I,
but something between us
that never spoke
yet always answered.

No footsteps,
no whispers,
no touch—
and yet,
you passed through me
like a breeze
that remembers
where it once belonged.

We stopped counting days.
The moon didn’t rise for time,
but to reflect
the stillness between us.

I could feel you
in the way
my breath paused
before a thought,
in the way
a tear shimmered
without falling.

You were no longer a figure—
you became
the color of dusk,
the hush before rain,
the quiet glow
inside my closed eyelids.

And I?
I dissolved too—
into the scent
of wet earth,
into the pause
between two verses of a lullaby
sung only to the stars.

We didn’t find each other
in a place.
We remembered each other
in a feeling—
the kind
that rises before sleep,
when the body forgets
and only the soul listens.

Now,
we don’t wait.
We don’t seek.
We simply
are.

Like the murmur
beneath waves,
like light
traveling
without direction,
like a heartbeat
that doesn’t know
where it ends
and where the other begins.

Love no longer calls us—
we are love itself,
spilled across the night sky,
drifting from one star to another,
repeating the promise
that once had no words.

You,
in my every silence.
I,
in your every breath.

We,
beyond return—
beyond form—
resting gently
in the infinite fold
of a single soul
remembering itself.


रूहों का मिलन

 अब ना समय रहा,

ना कोई तारीख़, ना मौसम,

ना वो शहर,

ना वो मोड़,

ना तुम, ना मैं —

जैसे देह की सीमाएं

कहीं पीछे छूट गई हों।

अब बस एक रौशनी है —

जो बहती है तुम्हारी स्मृति में,

और धड़कती है

मेरे मौन के अन्तरालों में।

हम अब शब्द नहीं बोलते —

बल्कि थिरकते हैं उन तरंगों में,

जो किसी प्रार्थना की तरह

सृष्टि की नसों में गूंजती हैं।

तुम अब देह नहीं हो,

तुम अब जल हो, वायु हो,

या शायद उस संध्या की बूँद

जो मेरी पलकों पर रुकती है

हर दिन के अंत में —

सिर्फ़ तुम्हारे नाम पर।

और मैं?

मैं अब कोई ठोस नहीं —

एक धुंध हूँ शायद,

या वो खुश्बू

जो किसी पुराने खत के पन्नों से

आज भी उठती है।

हम अब नहीं मिलते

सड़क पर, नीम के पेड़ के नीचे,

या किसी पुराने मोड़ पर —

हम मिलते हैं

उन स्वप्नों में

जहाँ आत्माएं

अंतहीन प्रकाश बन

एक-दूजे से लिपटी होती हैं।

अब प्रेम

ना वक़्त मांगता है,

ना स्थान,

ना साक्ष्य।

अब प्रेम बस बहता है —

तारों की लहरों में,

नींद की परतों में,

और उस विराम में

जहाँ अंतिम साँस

प्रथम स्पर्श बन जाती है।

हम दोनों —

अब किसी देह में नहीं,

बल्कि

एक ही चिरंतन स्पंदन में हैं।

तुम मेरी रौशनी में,

मैं तुम्हारे गीत में।

तुम मेरे मौन में,

मैं तुम्हारे स्पर्श की स्मृति में।

वो रात,

जो कभी "वो एक रात" थी,

अब

हर रात है।

वो प्रेम,

जो कभी छुअन था,

अब प्रकाश है।

वो मौन,

जो कभी संवाद था,

अब अस्तित्व है।

हम थे,

हम हैं,   

हम रहेंगे —

जैसे दो आत्माएं

एक ही आकाश में

एक आभा बनकर

सदा के लिए एक दुसरे में मिल गई हों।

When Souls meet in Heavens

 

There is no time now,
no date, no season—
no city,
no turning street,
no you, no me—
as if the limits of the body
were long left behind.

Now,
only a radiance remains—
it flows through the memory of you,
and pulses
in the pauses between my silences.

We no longer speak in words—
we shimmer in the waves
that echo like prayers
through the veins of creation.

You are no longer body—
you are water, you are air,
perhaps the drop of dusk
that rests on my lashes
at the end of each day—
only in your name.

And I?
I am no longer solid—
perhaps a mist,
or the faint fragrance
that rises still
from the pages of an old letter.

We no longer meet
on streets, beneath neem trees,
or by any forgotten bend—
we meet now
in dreams
where souls
become endless light,
folded into one another.

Love now
asks for no time,
no place,
no proof.

Love now simply flows—
in waves of starlight,
in layers of sleep,
and in that stillness
where the final breath
becomes the first touch.

We—
no longer in form—
are bound
in one eternal vibration.

You, in my light,
I, in your song.
You, in my silence,
I, in the memory of your touch.

That night,
which was once that one night,
is now
every night.

That love,
which was once a touch,
is now pure light.

That silence,
which once was speech,
is now existence.

We were,
we are,
we shall always be—
two souls
folded into the same sky,
becoming one aura
forever
within one another.