Thursday, 26 June 2025

वो छुपी हुई तारीख़ें

वो तो

बस एक तारीख़ थी,

हमारे फिर से मिलने की

सालों बाद।


मगर उस से पहले...

कितनी तारीख़ें थीं

जो दिल में दफ़न हैं,

हर एक में

तेरी तलाश की

नाकाम कोशिशें बसी हैं।


कभी चौक में,

कभी उस गली में

जहाँ तेरे क़दमों की ख़ुशबू थी,

कभी बारिश की बूंदों में

तेरी याद भीगती रही।


रातें —

सन्नाटों में घुलती रहीं,

और मैं

चाँद को गवाह बनाकर

तेरा नाम

साँसों में बुनता रहा।


तू कहीं और थी,

एक और जहान में,

बेपरवाह...

ये समझ कर

कि मैंने ख़ुद ही

तेरे रास्ते छोड़ दिए।


मगर तू क्या जानती —

मैंने तो

इस डर से रुख्सत ली थी

कि कहीं मेरा नाम

तेरे लफ़्ज़ों में

बदनामी बन कर न रह जाए।


वो “अलविदा” —

इश्क़ की सबसे

कमज़ोर, मगर पाक सदा थी।


मैं बस

तेरे नाम को

तेरी नफ़रत से

महफ़ूज़ करना चाहता था।


और अब —

जब तू फिर आई

तो मुस्कुरा कर कहा —

"तुम तो छोड़ मुझे छोड़ गए थे ..."


अब किस तरह कहूँ —

कि मैं सिर्फ़ गया था

ताकि तू

ख़ुद को इल्ज़ाम न दे सके,

ताकि मेरा ज़िक्र

तेरी रूह पे बोझ न बने।


वो तमाम तारीख़ें

जिनमें मैं टूटा,

जिनमें मैं चुप रहा,

कभी चीखा, कभी लिखा,

वो सब

अब भी दिल के तहख़ाने में

साँसें ले रही हैं।


और तुझे अब भी

बस उस एक तारीख़ की ख़बर है

जिस दिन हम

फिर से मिले …




No comments:

Post a Comment