Saturday, 14 June 2025

जिस दिन तुमने पहली बार "पापा" कहा

 एक पिता की बेटी के नाम चिट्ठी, कविता के रूप में

उस दिन…
तुमने एक शब्द कहा।
सिर्फ़ एक।
पर वह मेरा था।
और उसी क्षण—
जैसे मेरी सारी दुनिया
गूंज उठी किसी अदृश्य राग में,
जिसका मैं बरसों से इंतज़ार कर रहा था।

"पापा…"

वह कोई ऊँची पुकार नहीं थी,
न कोई सधी हुई भाषा,
बस…
एक फुसफुसाहट—
जैसे कोई फूल बिना हवा के भी खिल गया हो।
एक पंख गिरा हो…
किसी दुआ की गोद में।

और तुम्हारे इस शब्द के साथ—
मैं दोबारा जनमा।


कभी एक समय था—
शायद तुम्हें याद नहीं,
पर मैंने तुम्हारा हाथ थामा था
उस पल में
जब तुम बिल्कुल चुप आयी थीं इस दुनिया में।
न रोईं,
न हिलीं—
बस मौन…
और मेरे प्राण कांप उठे थे।

मैंने कुछ नहीं माँगा…
सिर्फ़ साँस।
एक साँस।
और तुमने दी।

तुम लौटीं।
छोटी थीं…
पर पूरी।


तुम्हारी राहें कभी आसान नहीं रहीं।
तुमने देर से सीखा चलना,
धीरे सीखा बोलना,
कभी-कभी तो सिर्फ़ महसूस करना सीखा।
लेकिन तुमने प्रेम—
सबसे पहले और सबसे गहरा—
सीखा।

तुम्हारी आवाज़ों से पहले
तुम्हारी आत्मा बोलने लगी थी।
संगीत सुनते ही
तुम्हारी उँगलियाँ थिरक उठतीं।
और जब तुम मुझे देखतीं—
तो जैसे मेरी रूह पहचान जाती
कि इसका नाम "बेटी" है।


आज…
जब तुमने मुझे देखा,
और कहा—
"पापा"
तो जैसे
मेरी सब प्रार्थनाएँ
शब्द बनकर
लौट आयीं।

मैं थोड़ी देर को मुँह फेर गया—
नहीं, विश्वास नहीं टूटा था।
बस…
आँखों में वो बूंदें आ गई थीं
जो बहुत भीतर से उठी थीं।


बेटी,
शायद तुम्हें कभी समझ न आये
कि उस एक शब्द में
मेरे कितने बरस…
पिघल गए।

तुमने मुझे
सिर्फ़ नाम से नहीं पुकारा—
तुमने मुझे एक नई पहचान दी।

तुम्हारे इस एक पल ने
मेरे भीतर की अधूरी तस्वीरें
पूरा कर दीं।

अब जब भी जीवन कठिन होगा—
मैं इस क्षण में लौट आऊँगा।
जब तुमने मुझे
पहचाना…
कहा…
“पापा।”


तुम भले ही हर शब्द न कह सको,
पर तुम्हारे हर स्पर्श,
हर मौन…
मेरे लिए कविता है।

मैं वादा करता हूँ—
मैं हर भाषा में तुम्हारी बात समझूँगा।
हर सुर में तुम्हारा राग सुनूँगा।
हर चुप्पी में तुम्हारी पुकार पहचानूँगा।

मैं तुम्हारे साथ चलूँगा—
धीरे, तुम्हारी चाल में।
तुम्हारे संगीत पर थिरकूँगा।
तुम्हारे दुख में भीगूँगा।
और जब तुम ऊँचाई पर पहुँचोगी—
मैं वहीँ तुम्हारे पीछे,
तुम्हारी छाया बनकर खड़ा रहूँगा।


क्योंकि आज…
तुमने कहा—
“पापा।”

और उस शब्द के साथ—
तुमने दुनिया को बताया
कि प्रेम
शब्दों का मोहताज नहीं होता।

और जब वह बोलता है—
तो उसकी आवाज़
बिलकुल तुम्हारी जैसी होती है।

हमेशा तुम्हारा,
— पापा


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