Sunday, 29 June 2025

तेरे खतों का अंतिम आलिंगन

 

वो पहली नज़र...
जैसे वक़्त ने रुककर हमें देखा हो,
तेरी आँखों में झाँकते ही
मैं खुद को खो बैठा था।

तेरी मुस्कान में
एक रूह की पुकार थी,
और मेरी चुप्पी में
तेरे नाम की दस्तक।

हम मिले
जैसे सदियों से बिछड़ी हुई दो रूहें
एक ही जिस्म की तलाश में भटक रही हों।

तेरा नाम...
अब मेरे नाम से पहले आता था,
और मेरी साँसों में
अब सिर्फ़ तेरी खुशबू बसती थी।

फिर शुरू हुआ
ख़तों का वो सिलसिला,
हर लफ्ज़ में तेरी सूरत,
हर हर्फ़  में तेरा अहसास।

तेरे खत
जैसे तेरे हाथों का स्पर्श,
जैसे तेरी साँसें काग़ज़ पर उतर आई हों।

मैं अपने खतों में
तुझे जी भर कर प्यार करता,
फिर अचानक डर जाता
दुनिया की नज़रें
कहीं तुझे छू लें।

हर इज़हार के बाद
मैं तुझसे हिफ़ाज़त माँगता,
तेरे लिए नहीं
अपने टूटते हुए दिल के लिए।

हम खत कभी
किताबों के पन्नों में छुपाते,
कभी चुपचाप एक-दूजे की हथेली में थमा देते,
और कभी बस नज़रों से कह देते
"पढ़ लेना... अकेले में।"

इन खतों ने
हमारी दुनिया को मायने दिया,
हमारे मिलन को मुकम्मल  
और हमारी मोहब्बत को एक नाम।

पर हर खूबसूरत चीज़ 
कभी कभी
वक़्त के दस्तावेज़ में मिट जाती है।
हम भी वैसे ही 
ख़ामोशी से दो अलग राहों पर मुड़ गए।

मैं तुझे बता सका
कि मैं जा रहा हूँ
और तू सोचती रही
कि मैं खामोश होकर
खुद को तुझसे जुदा कर गया।

पर सच्चाई ये थी
कि तेरे खतों में ही
मैं तुझे हर रात जीता रहा।

तेरा हर एक लफ्ज़
मेरे दिल की इबादत बन गया था,
और उन पन्नों को
मैं अपनी जान से ज़्यादा संभालता रहा।

फिर आई वो घड़ी
जब डर ने मोहब्बत को घेर लिया।
कहीं ये खत
किसी और की नज़रों में गए,
तो तू बदनाम हो जाएगी...
तेरा नाम
मेरे इश्क़ के बोझ से भी भारी लगने लगेगा।

फिर लिया मैंने
अपनी ज़िन्दगी का सबसे कठोर निर्णय।

तेरे तमाम खतों को
अपने सीने से लगाकर
एक शाम मंदिर की सीढ़ियों तक लेकर गया।

वहाँ हवन कुंड के सामने बैठा
तेरे लफ़्ज़ों को
अपने आंसुओं से धोता रहा।

हर खत को पढ़ा
मानो आखिरी बार
तेरी आवाज़ सुन रहा हूँ,
तेरे हाथों को
कागज़ की सिलवटों में छू रहा हूँ।

मैं ऐसे रोया
जैसे किसी ने
मेरी रूह से तुझे छीन लिया हो।

मंदिर की आरती चल रही थी,
पर मेरा रुदन 
आरती की घंटियों को चीर कर                                                                                                    आसमान को भेद रहा था 

और जब तेरा आख़िरी खत जला
तो मानो मेरी साँसें भी
जल कर राख बन गईं।

पुजारी भागते हुए आए,
मुझे थामकर
बरामदे में ले गए।
पानी पिलाया,
आँखों में देखा
और बिना कुछ पूछे
सब कुछ समझ गए।

उन्होंने कहा
जिसने ये खत लिखे हैं,
वो आज भी वहीं है
तेरे दिल में, तेरी धड़कन में।
तो क्यों इन राखों में
अपना इश्क़ जलाते हो?”

उनकी आँखों में
तुझसे फिर मिलने की दुआ थी,
उनकी बातों में
तेरा नाम फिर से जी उठा।

मैं स्तब्ध था,
भीगा हुआ, टूटा हुआ,
पर भीतर अँधेरे में कहीं
एक उजाला भी हुआ
कि 
तू तो आज भी वहीं है,
जहाँ हम पहली बार मिले थे
मेरे इंतज़ार में।

एक दिन मैं ज़रूर आऊंगा                                                                                                                तुझसे मिलने मेरी हमनफ़ज़                                                                                                              और फिर                                                                                                                                        हमें कोई जुदा नहीं कर सकेगा 


No comments:

Post a Comment