Sunday, 29 June 2025

रूहों की पहली बात

 

कहाँ से आई तुम,
साँसों में यूँ उतर गई।
कहाँ से आए हम,
तेरी धड़कनों में ठहर गए।

कैसे मिल गए दिल हमारे,
बिना नाम के इस रिश्ते ने
हर नाम को बेमानी कर दिया।

हमने तो कुछ कहा भी नहीं था,
नज़रें ही थीं,
जो सब कुछ बयाँ कर गईं।

वो पहली मुलाक़ात,
जैसे वक़्त थम सा गया था।
तुमने मुस्कुरा के देखा,
और मैं जी उठा।

हवा की तरह आई थीं तुम,
पर सांसों में महक बनकर रह गईं।
एक झोंका भी अब
तुम्हारी याद लेकर आता है।

मैंने ना कोई ख्वाब बुना था,
ना कोई वादा किया था,
पर तेरी आँखों ने
मुझे मेरा भविष्य दिखा दिया।

शब्दों के बिना
हमने एक भाषा रच ली,
जिसमें हर खामोशी
इकरार बन गई।

रातें अब तेरे नाम की होती हैं,
चाँद भी तुझमें खोया लगता है।
तारे जब टूटते हैं,
तो लगता है —
कोई दुआ फिर से तेरे लिए माँगी गई है।

कभी सोचा नहीं था,
कि रूहें भी मिल सकती हैं
बिना पुकारे,
बिना रास्ता पूछे।

तेरा आना
जैसे मेरी अधूरी रचना
मुकम्मल हो गई।

हमारा मिलना
जैसे सदियों पुरानी कोई प्यास
आज बूंद-बूंद भर के
सराबोर हो गई।

ना तुम कहीं ढूँढी गई थीं,
ना मैं किसी तलाश में था —
फिर भी...
हम मिल गए।

अब जब भी साँस लेता हूँ,
तेरा नाम बुनता हूँ।
अब जब भी चुप होता हूँ,
तेरी आहट सुनता हूँ।

यह कैसी मोहब्बत है —
जिसे हमने छुआ नहीं,
पर उसने हमें
जड़ से पत्ता तक छू लिया।

हमने कुछ कहा भी नहीं था,
फिर भी सब कुछ
कह भी दिया,
समझ भी लिया।


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