Tuesday 29 January 2013

आह .....

आह ....

तुम चले गए

सब कुछ

अधुरा छोड़ कर

घर के कितने सारे काम

रुके पड़े थे

कि तुम आकर उन्हें

निपटाओगे

पर मालूम है

अब तुम नहीं आओगे

हम सब को

तुम याद बहुत आओगे

कितनी संक्रामक थी

तुम्हारी हंसी

कितने रोतों को हंसा देती थी

तुम्हारी हंसी

तुम्हारे ठहाके

गूंजते रहेंगे हमारे कानों में

तुम्हारी बातें

तुम्हारी मुलाकातें

भटकती रहेंगी हमारे वीरानों में

तुम सा जिंदादिल इंसान

न कभी हुआ है

न कभी होगा

हम इंसानों में

हम ढूँढा करेंगे तुम्हें

हर महफ़िल हर वीरानों में

इक आह सी निकला करेगी

हमारी तानों में

जब भी हम गुज़रा करेंगे

उन सुनसानों में

जो छोड़ गए तुम

अपने पीछे

हमारे दिलों में

हमारे अरमानों में






Wednesday 23 January 2013

मेरा मन


तुम्हारे स्पर्श को 

क्यूँ मेरा मन

यूँ हर पल तड़प तड़प जाता है 

क्यूँ मेरा मन

तुम्हारे पास आने को   

हर पल छटपटाता है 

और जब कभी 

मेरा मन 

तुम तक पहुँच भी जाता है 

तुमको छुए बिना ही 

तमसे मिले बिना ही 

क्यूँ वापस चला आता है 

ये मेरा मन 

तुमको सदियों से चाहता है 

पर तुमसे कह नहीं पाता है 

कैसे इस मन को समझाऊं

मैं कैसे इसको बतलाऊं

तुम मेरी कल्पना हो 

और कल्पना को कभी

किसी ने छुआ है आज तक

पर मेरा मन  

फिर भी तुमको छूने के लिए 

हर पल छटपटाता है 

तुम्हारे पास आने को

तड़प तड़प जाता है  

Saturday 19 January 2013

मेरे चैन का वो टुकड़ा

कहीं खो गया है मुझसे

मेरे चैन का वो टुकड़ा

जिसके सहारे कभी मैं

पतंगों सरीखा उड़ता था


शायद ज़िन्दगी की आपा धापी में

या फिर रिश्तों की आवा जाही में

कहीं खो गया है मुझसे

मेरे चैन का वो टुकड़ा


उम्मीदों के ऊंचे टीलों पर

मन के बंजर सपाट मीलों पर

कहीं खो गया है मुझसे

मेरे चैन का वो टुकड़ा


ज़िन्दगी के बोझ तले

जाने कितने सपने कुचले

वहीँ खो गया है शायद

मेरे चैन का वो टुकड़ा



Tuesday 15 January 2013

उनकी खामोशी


उनसे ये कहा न जाए

कहे बिना रहा न जाए

उनकी खामोशी अब खलती है

दिल में शूल बन कर चुभती है

ख़ामोशी को बस एक पैगाम दे दो

मेरी मोहब्बत को एक नाम दे दो

जो अगर न ये कर सको तो

मुझको ज़हर का इक जाम दे दो

Sunday 13 January 2013

अभिमान

देखता हूँ जब तुम्हें

यूँ ही बैठे बैठे

कभी कोने से नैनों के

भर उठता है मन

अभिमान से

शायद

तुम्हें पाने का अभिमान

या फिर तुम्हारा

यूँ मेरे होने का अभिमान

अभिमान तुम्हारे प्यार का

अभिमान तुम्हारे दुलार का

अभिमान तुम्हारी फ़िक्र का

अभिमान तुम्हारे ज़िक्र का

बस यूँ ही अभिमान से भरे हुए मन में

उठते हैं हाथ दुआओं में

कि हर जीवन में

हे ईश्वर

मेरे इस अभिमान का

मान रखना

और हर जनम

तुम यूँ ही

मेरा अभिमान बनना

चाँद क्यूँ उदास है आज

चाँद

क्यूँ उदास है आज

कोई नहीं

उसके पास है आज

कोई अपना बिछड़ा है

उसका तभी

इतना हताश है आज

उसके होंठो पर

ना जाने क्यूँ

इतना त्रास है आज

तभी शायद मद्धम

उसकी उजास है आज

Wednesday 9 January 2013

मैं तुमसे प्यार करता हूँ

जब मैं तुमसे कहता हूँ 

मैं तुमसे प्यार करता हूँ 

यह मैं नहीं कहता 

न ही मेरी जुबां यह कहती है 

यह तो मेरे दिल की बात 

मेरी जुबां से निकलती है

आँखों से भी मेरे यूँ लगता हो कभी

जैसे वो भी यही कहता हो कभी

इसमें आँखों की नहीं कोई गलती

यह भी है उस दिल की ही लगी 

अब कैसे दिल को समझाऊं 

कैसे इसको बतलाऊँ 

कि यूँ

औरों का सहारा लेकर 

अपनी बात न कहा करे 

'गर कहनी है अपनी बात 

तो अपनी कोई जुबां चुना करे 

Tuesday 8 January 2013

कभी

कभी

हम उनके

चाहतों के साए में 

पलते थे 

कभी 

धड़कन बन कर 

उनके दिल में 

मचलते थे 

कभी

प्यार की आंच से

ख्वाब बन कर

आँखों में

पिघलते थे

कभी

उनके दिल से

इस दिल के अरमान

निकलते थे

कभी

हम हाथ थामे

साथ साथ

यूँ ही

चलते थे

कभी

राहों में उनके

हमारे प्यार के दिए

जलते थे

कभी

उनके जुल्फों के साए में

बैठे बैठे

न जाने कब ये दिन

ढलते थे

कभी

दिन के ढलते

रात हर महफ़िल में

उनकी आँखों से पीकर

हम खुद ही

सम्हलते थे

बस

उन लम्हों की यादों को

सीने से लगाए

यूँ ही जीता हूँ

कि

कभी

जो तुम कहीं से

फिर आ जाओ

तो हर उन लम्हों को

हम फिर से जी लेंगे

जिन लम्हों में

हम

कभी

साथ साथ

ज़िन्दगी को यूँ ही

जिया करते थे










औरों की खातिर

कैसी है यह जिंदगी

जिसका कोई लम्हा

मेरा नहीं

इसमें

मेरे ख़्वाबों की कोई

जगह नहीं

मेरे अरमानों की कोई

सुबह नहीं

पर जिए जा रहा हूँ

यह ज़िन्दगी

औरों की खातिर

सबकी चाहत पूरी करने को

सबकी आस पूरी करने को

मुद्दे तो बहुत हैं

जीने के लिए

पर इनमें

मेरा कोई मुद्दा नहीं

क्यूँ जी रहा हूँ

इस तरह

जब कि मुझे भी मालूम है

मेरे जीने से

मेरी ज़िन्दगी का

कोई मतलब नहीं

बस जिए जा रहा हूँ

औरों की खातिर

कि सब जी सकें

अपनी खातिर















सवेरे का सूरज

कभी ऐसा हो कि

सवेरा हो

पर उस सवेरे से पहले

सवेरे का सूरज देखने को

मैं ना रहूँ

उस सवेरे से पहले

किसी एक पल में

मेरे सारे पल ख़त्म हो जाएँ

और मैं

उस सवेरे के सूरज से

अनजान रहूँ

फिर क्या

उस सवेरे के सूरज की

किरणों से

तुम मेरा होना या ना होना

पकड़ पाओगे

नहीं न !

इसलिए तो कहता हूँ

मैं इक हवा का झोंका हूँ

आया हूँ

कुछ पल बह कर

जाने को

वो पल जब ख़त्म हो तो

मुझे रोको नहीं

जाने दो

क्योंकि

कोई और हवा का झोंका

बहता हुआ आएगा

और मेरी जगह लेगा

और दुनिया

यूँ ही सतत चलती रहेगी













रिश्तों का अर्थशास्त्र

अक्सर हमारे रिश्ते

अर्थशास्त्र के पैमाने पर भी

खरे उतरते हैं

जिन रिश्तों की आपूर्ति

बहुत ज्यादा होती है

वो अक्सर

मांग में कम ही रहते हैं

जो रिश्ते

हमें मुश्किल से मिलते हैं

वो मांग में

हमेशा बढ़ कर रहते हैं

रिश्तों में जहां

उम्मीदें जुड़ कर

उनका मोल बढ़ाती हैं

वो रिश्ते फिर

मांग में कम ही रह जाती हैं

जो रिश्ते

प्यार में ढल कर

मांग के अनुरूप

खुद को ढालते हैं

वो रिश्ते सबसे ज्यादा

पूजे जाते हैं

और मांग में भी

सबको पीछे छोड़ जाते हैं

ऐसे रिश्तों का ग्राफ

हमेशा धनात्मक ही बढ़ता है

और हमेशा

सबकी आँखों में रहता है






नया सहर

मेरे किसी रात की

सहर न हो अगर कभी

ये चिराग जलते जलते

बुझ गयी जो अगर कभी

तो मुझको मत ढूंढना यारों

गम में मत डूबना यारों

चीर निद्रा में सोने के बाद

मैं नए सहर में जागूँगा

किसी नए शहर में आऊंगा

जो यह रूप न फिर धर पाया

तुमको अगर मैं नहीं नज़र आया

धीर तुम मत खोना यारों

भीर तुम मत होना यारों

मैं फूल बनकर आऊंगा

उन राहों में बिखर जाऊँगा

जिन राहों पर हम साथ चले

गुलमोहर के साए तले

या फिर

मैं पंछी बन कर आऊंगा

प्यार के नगमे सुनाऊंगा

जो हमने गाये थे कभी

साथ गुनगुनाये थे कभी

अगर जो

मैं भंवरा बन कर आया

और फूल फूल मंडराया

मेरी गुन गुन सुनकर जानोगे

वो मैं ही हूँ मानोगे

पर कमी हमारी खलेगी ज़रूर

रोने को भी होगे मज़बूर

चाहे जो भी रूप धर आऊंगा

फिर से वही खुशियाँ ले आऊंगा





Monday 7 January 2013

महफ़िल मेरे ख़्वाबों की


कल शाम सुरमई आसमां ने

मुझसे पूछा

क्यूँ शाम तुम्हारी है तनहा

कोई बात है तो मुझ को बता

मैंने कहा

वो कह कर गए हैं आने को

ख़्वाबों में महफ़िल सजाने को

बस अब शब का इंतज़ार है

आँखें ख़्वाबों को बेक़रार है

कहीं नींद खफा न हो जाये

दुश्मन-ए-वफ़ा न हो जाये

बस कुछ ऐसा जतन कर देना

नींद को इतना कह देना

वो राह इन आँखों की भटके नहीं

किन्हीं और आँखों में अटके नहीं

मैंने पलकों की पालकी बिछाई है

सेज नींद की सजाई है

नींद के सेज पर जाते ही

ख़्वाबों के आँखों में आते ही

महबूब के कदमों की आहट से

उनकी मनमोहक मुस्कराहट से

सज उठेगी महफ़िल मेरे ख़्वाबों की

महक उठेगी पंखुड़ी उनके गुलाबों की

तुम एक जतन और कर देना

शब् को वहीँ पर रोक लेना

जब बाहों में हो मेरा महबूब

उसकी आँखों में मैं रहा हूँ डूब

वो वक़्त कहीं जो गया निकल

फिर हो जाऊँगा मैं विकल

ना जाने कब फिर उनका आना हो

यूँ ख़्वाबों की महफ़िल सजाना हो

तुम सूरज को यह समझा देना

कुछ वक़्त ढले आये बतला देना

महबूब को मेरे यह मत बतलाना

पूछे भी अगर तो मत जतलाना

कि हमने तुमसे कोई गुजारिश की है

ख़्वाबों में उनको लाने की साज़िश की है















Sunday 6 January 2013

बस इक तुम हो


वसंत की बहार में
जेठ की पछार में
सावन की फुहार में
शीत की बयार में
                       बस इक तुम हो

ताल की पसार में
झरने की फुहार में
नदी की धार में
सागर के विस्तार में
                       बस इक तुम हो

बागों की बहार में
कलियों की शुमार में
फूलों की कतार में
खुश्बू की खुमार में
                      बस इक तुम हो

दिल की हर पुकार में
मन के लाड़ दुलार में
मेरे हर इकरार में
सपनों के संसार में
                      बस इक तुम हो