Sunday, 22 June 2025

रूहों का वादा — भाग दो

उसी रूहानी प्रेम कथा को आगे बढ़ाते हैं — जहाँ आत्माएं मिलती हैं, फिर बिछड़ती हैं, और फिर क़ायनात उन्हें फिर से मिलाने की साज़िश करती है। ये अगला अध्याय उस अमर इश्क़ का है जो समय की सीमाओं से परे बहता है…

(Immortal Love Saga — Part II)

चाँदनी चुप थी,
सितारे नज़रें चुराते थे,
रूह की रूह से
फिर मिलने की आहट थी।

धड़कनों में कोई
अनकही सी तड़प थी,
वक़्त की तहों में
किसी की सदा दबी थी।

तू था,
मैं थी,
और हमारे बीच
वो ख़ामोशी बोल रही थी।

हर लम्हा,
हर साँस,
क़सम सी खाई थी —
बिछड़ कर भी न जुदा होने की।

तेरी याद की परछाइयाँ
आज भी मेरे वजूद में हैं,
तेरा नाम मेरी रगों में
सदियों से महफूज़ है।

इक दीवानी ख़ुशबू
हर साँझ मुझे छू जाती है,
जैसे तेरी रूह
मेरे होंठों पर दुआ बन बैठी हो।

रातों की तनहाई में
तेरी सांसें महसूस होती हैं,
जैसे हवाओं ने
तेरे लफ़्ज़ मुझ तक पहुँचाए हों।

इश्क़ का ये सफ़र
जुदाई से डरता नहीं,
ये इश्क़ है
जो मर कर भी मरता नहीं।

तू मेरी दुआ,
मैं तेरी आरज़ू,
कभी अश्क़ बन के गिरे,
कभी नूर बन के जले।

क़ब्रों के पार से भी
हमने आवाज़ दी एक-दूजे को,
रूहें पिघलीं,
ज़मीन कांपी,
कायनात ने सजदा किया।

तू फिर आया,
मैं फिर जागी,
इक नया जन्म,
इक पुरानी क़सम।

तेरा नाम फिर
मेरे होंठों पर रखा गया,
जैसे इबादत में
कोई मन्त्र फिर से पढ़ा गया।

हम फिर से चल पड़े
उस रास्ते पर जहाँ
इश्क़ कभी ख़त्म नहीं होता,
जहाँ मिलन
बस वक़्त का इंतज़ार होता है।

चुपके से फिर कह दूँ —
तेरा इश्क़ मेरी रूह की ताबीर है,
ना वक़्त, ना मौत,
कोई फ़ासला इसको रोक सके —
इतनी गहरी तक़दीर है।


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