Tuesday 31 July 2012

तुम से मिलकर

जाने क्यूँ

तुम से मिलकर 

फिर मिलने को 

दिल तडपता है 

जाने कैसी 

प्यास है ये 

जिसमें 

हर पल 

दिल तरसता है 

तुम्हारी चाहत ने 

अपनी जंजीरों में 

जकड़ा है मुझे 

तुमसे जुडी एहसासों ने 

अपने बाहुपाश में 

पकड़ा है मुझे

जिंदगी में

तेरे आने के बाद 

अब  

तेरे जाने का 

कोई सबब भी नहीं 

जाने फिर क्यूँ 

दिल मेरा 

परेशान सा फिरता है 

इक नया आसमान

आओ

तुम्हें इक नया आसमान देता हूँ

उसमें

तुम तारों की नयी जमात बिछाना

चमकते इन तारों से

अपने सपनों को सजाना

और फिर

अपने अरमानों के बादलों की

इक नयी फसल उगाना

पड़ेंगीं उनसे जब फुहारें

सपने सब सच होंगे तुम्हारे

फिर एक नया सूरज उगेगा

तुम्हारे आसमान पर

उसकी किरणों से

पल्लवित होंगे

तरु

आशाओं के

और पुष्पित होंगी

आशायें

उनकी खुशबु से

महकेगा जीवन कानन

पुलकित होगा

तुम्हारा अंतर्मन

आओ

तुम्हे ले चलूँ

निराशा के बादलों के पार

उस नए आसमान में









Friday 27 July 2012

उदासी

जब भी तनहा होता हूँ

कोई आसपास होता है

जाने किस की आस में

दिल यूँ उदास होता है

तुम हो नहीं यहाँ कहीं

ये भी एहसास होता है

ना मिलने के ख्याल से

मन मेरा निराश होता है

सब कुछ है फिर

दिल क्यूँ उदास होता है





Thursday 26 July 2012

मेरी अभिसारिका

तुम परी हो या अप्सरा 

मैं मुश्किल में हूँ ज़रा 

परियाँ तो ख़्वाबों में होती हैं 

अपसराएँ भी 

आकाश में होती हैं 

फिर कौन हो तुम 

कहाँ से आई हो 

थोड़ी सी सिमटी हुयी 

और 

थोड़ा सा शरमाई हो 

चाँद कहूं या सूरज तुमको 

फूल कहूं या तारे 

सारी उपमा फीकी पड़ गयी 

फीके पड़े नज़ारे 

क्या कहूं तुम कैसी हो 

मेरे सपनों जैसी हो 

चांदनी में नहाई हो 

दुल्हन सी शरमाई हो 

जैसे खुद से मिलकर 

खुद से ही लजाई हो 

पलकें ऐसे झुकी हुयी हैं 

पंखुड़ियों सी ढकी हुयी हैं 

तेरे अधर ऐसे लरजते हैं 

जैसे मुझसे मिलने को तरसते हैं 

तुम अपनी खुशबू से महकती हो 

माथे की बिंदिया से दमकती हो 

चाँद तुमसे घबराता है 

तेरे क़दमों की आहट सुन 

जाने कहाँ छुप जाता है 

तेरे कंगन की खन खन से 

सरगम जल जल जाती है 

तेरे पायल की रुन झुन से 

रागिनी भी शरमाती है

आकाश की अपसराएँ भी 

तुझसे मिलने आती हैं 

जाने अब क्या नाम दूं तुझको 

कैसी ये उलझन है मुझको 

परी कहूं या तारिका 

नहीं नहीं 

तू है 

मेरी अभिसारिका 











अनजाना सा चेहरा

कोई अनजाना सा चेहरा 

जाने क्यूँ पहचाना लगता है 

मिले नहीं कभी मगर 

रिश्ता पुराना लगता है

तू जैसे मेरे बीते पल का 

कोई भुला अफसाना लगता है 

जाने क्यूँ मेरे दिल को 

तू मीत पुराना लगता है 

तुझसे मिलने की सारी यादें 

इक ख्वाब सुहाना लगता है 

जाने तुझको कहाँ मिला मैं 

कोई गुज़रा ज़माना लगता है  

जाने उसकी आस में क्यों 

दिल याराना याराना लगता है 

तेरे बिना हर महफ़िल में 

मुझको वीराना लगता है 

जाने क्यूँ मेरे दिल को 

तू रब का नजराना लगता है 



तुमसे यूँ मेरा मिलना

सोचा नहीं था 

तुमसे मिलूंगा 

तय था मगर 

तुमसे यूँ मेरा मिलना 

नीले नभ के साए में हुआ 

तुमसे यूँ मेरा मिलना 

देख सूरज भी मुस्काया 

तुमसे यूँ मेरा मिलना 

फूलों और कलियों को भी भाया 

तुमसे यूँ मेरा मिलना 

चाँद तारों संग देखने आया 

तुमसे यूँ मेरा मिलना 

रात भी देख देख शरमाया 

तुमसे यूँ मेरा मिलना 

जाने क्यूँ सबको हरसाया 

तुमसे यूँ मेरा मिलना 

चाहे से भी टल ना पाया 

तुमसे यूँ मेरा मिलना 

दिल को मेरे भी भाया 

तुमसे यूँ मेरा मिलना 

अगर ना होता 

तुमसे यूँ मेरा मिलना 

जान ना पाता कितना मधुर था 

तुमसे यूँ मेरा मिलना 

तेरी आँखें

तस्वीर से झांकती

तुम्हारी आँखों ने

जाने कैसा जादू डाला है

दिल पे काबू नहीं रहा

मन भी अब मतवाला है

जाने क्या कुछ करती हैं

झील सी गहरी तेरी आँखें

धड़कन को बेकाबू कर

उखड़ी है मेरी साँसें

आँखें हैं या मय का प्याला

देखो तो लगती है हाला

मयखाने जाना भूल गया हूँ

जब से इनमें डूब गया हूँ

अब कुछ ऐसा जतन करवा दो

आँखों से अपनी मिलवा दो

जो ना इनसे मिल सका अगर

अधूरा रहेगा रूहों का सफ़र



Wednesday 25 July 2012

कुंठा

कुंठित क्यूँ होती है

हमारी मानसिकता

ईश्वर ने जो रच कर दिया

मानस पटल

वो किंचन था

निर्मल था

पर उसमें हमने बो दिया

अपनी संकीर्णता का ज़हर

और फिर हमारी कलुषित सोच से

सिंचित होकर

वो फल फूल कर

बन गया

कुंठित काँटों की फसल

अब

उस फसल को खाते हैं हम

और फिर

कुंठित कहलाते हैं हम

क्यूँ नहीं फिर

हम गीले कच्चे मानस पटल पर

अच्छी सोच को बोते हैं

जब हम बच्चे होते हैं

कितने सच्चे होते हैं

फिर क्यूँ नहीं वही सच्चाई

हम जीवन भर ढोते हैं

काश अगर ऐसा हो जाए

तो कभी मानस पटल पर

कुंठा की फसल उग ना पाए

सोच हमारी फिर संकीर्ण ना हो

और

कुंठित हम न कहलाये



नफरत

नफरत ---

क्यूँ करते हैं हम किसी से

वो जो दिल के इतने करीब होते हैं

क्यूँ अचानक

दूर हो जाते हैं

हमारी चाहतों से

शायद हमारी उम्मीदें

भारी पड़ जाती हैं

हमारी चाहतों पे

उम्मीदों का ये सिलसिला

ना जाने कहाँ से

शुरू हो जाता है

चाहतों के  जन्म लेते ही

फिर हम

अपनी चाहत को

इन्हीं उम्मीदों की कसौटी पर

परखते हैं

जब तक हमारी चाहत

उम्मीद की कसौटी पर

खरा उतरता है

इन उम्मीदों का ज़हर

असर नहीं दिखा पाता

और हमारी चाहतें

फलती फूलती रहती हैं

पर जिस पल

उम्मीदों का काला साया

चाहतों पे मंडराया

बस वहीँ पर

चाहत दम तोड़ देती है

और जन्म लेती है

नफरत

क्यूँ हम चाहतों पे

उम्मीदों का बोझ ढोते हैं

पाते नहीं हैं कुछ भी

बस

मन का चैन खोते हैं

चाहतों को

उम्मीद से बस

वहीँ तक जुड़ने दो

जहां चाहतें छटपटा ना पायें

चाहत की राह में

वापस मुड़ने को

ऐसा कर लिया अगर

चाहतें मुस्कुरायेंगी

और

नफरत

कभी जन्म नहीं ले पाएगी




Tuesday 24 July 2012

एक कुंवारे की आस

एक कुंवारे की आस ----

(यह रचना कुंठित पुरुष मानसिकता पर एक व्यंग्य है, अतः कृपया इसे उसी दृष्टिकोण से पढ़ें और आनंद

लें....अपने भाइयों से क्षमा याचना सहित )

इक पत्नी की ज़रूरत है ---

सर्वगुण सम्पन्न

दिखने में सुन्दर वो लगती हो

मेक अप भले ना करती हो

साड़ी सूट पहनती हो

स्कर्ट स्लैक्स से डरती हो

खाना बनाना आता हो

दाल भात सुहाता हो

मैगी पास्ता चिली चिकन

खाने को ना करता हो मन

घर में रहना भाता हो

इंग्लिश भले कम आता हो

पति को परमेश्वर मानती हो वो 

और किसी को ना जानती हो जो 

घर की इतनी भरी पूरी हो

संग कुछ लाना उसकी मजबूरी हो

रिश्ते निभाना जानती हो वो

अतिथि को देवता ना मानती हो जो

कंप्यूटर में एलर्ट हो

वर्ड एक्सेल में एक्सपर्ट हो 

प्रोजेक्ट मेरे सब टाइप करे वो 

थोड़े को भी हाईप करे जो 

फेसबुक उसको प्यारा ना हो 

चैट बिलकुल गंवारा ना हो 

कभी जो उसको फ्रेंड रिक्वेस्ट आये 

सबसे पहले मुझे बताये 

प्रोफाइल मुझे जो पसंद आये 

उसी को वो फ्रेंड बनाए 

मेरी फेसबुक की सखियों को 

वो अपनी बहना माने 

उनके भेजे स्मायिलिज़ से 

उनके मन की ना जाने 

सर्वगुण वो संपन्न हो 

घरवाले उस से प्रसन्न हो 

'गर ऐसी लड़की दिखे कहीं 

मुझको मेसेज कर दें वहीँ 

धन्यवाद आपका ज़रूर चुकाऊंगा 

कहेंगे अगर तो 

आपके लिए भी 

एक ऐसी ही लेकर आऊँगा 

:):):):):):):):)

Monday 23 July 2012

इच्छाएं

इच्छाएं ---

जन्म लेतीं हैं

हमारे साथ

बढ़तीं हैं

हमारे साथ

पलती हैं

हमारे साथ

हर सांस

होती हैं ये इच्छाएं

हमारे साथ

बचपन की इच्छाएं

यौवन की इच्छाएं

जीवन की इच्छाएं

बढती रहतीं हैं उम्र में

हमारे साथ

और फिर

मरने से पहले

मौत कैसी हो

ये इच्छा भी तो रहती है

हमारे साथ

हमारी इच्छाओं को

अंततः

मरना पड़ता है

हमारे साथ

Sunday 22 July 2012

अपेक्षा

ना जाने क्यों

हर रिश्ते में

प्यार की बहती धारा पर 

हम अपेक्षाओं का बाँध बना देते हैं 

फिर रिश्ते सिमट कर रह जाते हैं 

बाँध के उस ओर 

और हम रह जाते हैं 

रिश्तों के गीलेपन से अछूते 

उसके इस ओर 

कभी जब सैलाब आता है 

बहा ले जाता है सब कुछ 

टूटे हुए रिश्ते 

और 

अपेक्षाओं का ढेर 

रह जाते हैं 

बस 

पश्चाताप और ग्लानि 

और उसकी आग में जलते 

हम ....

संवादहीनता

 
इतनी घनिष्ठता ---

फिर अचानक 

ये संवादहीनता ---

क्या ये वही दो इंसान हैं 

ना जाने क्यों हैरान हैं 

किसी अनकही बात पर 

परेशान हैं 

अहम् का टकराव 

या 

विश्वास का बिखराव 

या फिर 

भावनाओं का ठहराव 

क्या है ये 

दोनों समझ नहीं पा रहे हैं 

और यूँ ही 

उलझन में जिए जा रहे हैं 

क्यूँ नहीं करता 

पहल कोई एक 

दोनों तड़प रहे हैं 

एक दूसरे को देख 

या तो रिश्ते बनाते नहीं 

बनाया अगर फिर  

क्यूँ निभाते नहीं 

बस इसी द्वन्द में 

कट जाएगी ज़िन्दगी 

जंग लग जाएगी चाहतों को 

सीलने लगेगी ज़िन्दगी 

होश इन्हें जब आएगा 

दूर जा चुके होंगे कहीं 

इस से बेहतर है  

मौन तोड़ दो अभी यहीं 

करो संवाद तुम फिर से 

मिटा दो सारे गिले दिल से 

छोटी सी ये जिंदगी है 

भर लो इसको खुशियों से  










Saturday 21 July 2012

देखो बहारें आने को है

देखो बहारें आने को है

फूलों से चमन महकाने को है

अब और उदासी मत ढोना

ग़म के आंसू मत रोना

खुशियों का शमा छाने को है

दर्द तुम्हारा जीत गया

उदासी का पल बीत गया

अब सुखों का रेला आने को है

अरमानों के फुल खिलाने को है

आगे बढ़ो और थामो उसको

ज़िन्दगी जो तुमको थमाने को है

आशाओं से सींचो उसको

उम्मीद तुमसे ज़माने को है 

सपनों का मेला

काश कहीं सपना बिकता

अपनी आँखों के लिए

सुनहरे वाले सपने लाता

कुछ दर्द भरे सपनों से बदल कर

खुशियों के सपने लाता

सपनों के उस मेले से

कुछ बचपन के सपने लाता

कुछ यौवन के सपने लाता

कुछ रंगों के सपने लाता

कुछ दीपों के सपने लाता

जीवन जिनसे रंग जाता

उजाला जीवन में भर जाता

ऐसे मैं सपने लाता

काश कहीं सपना बिकता

मैं अपने वाले सपने लाता 

रात के हमसफ़र

रात मचलती रही

चाँद को बाहों में लेने के लिए

चाँद भी आतुर था

रात के आँचल में छुपने के लिए

बादलों को जाने किसने

किस्सा सारा बतला दिया

चांदनी से मिलकर उसने

चाँद को छुपा दिया

रात मचलती रही

चाँद को बाहों में लेने के लिए

हवाओं से देखा ना गया

रात का यूँ मचलना

चाँद से मिलने के लिए

हवा का एक नर्म झोंका

बादलों को हटा दिया

रात ने बाहें फैलाकर

चाँद को

आगोश में अपने छुपा लिया

चांदनी छुपती रही

चाँद भी शरमा गया

चाँद अब आसमां में

जब भी निकल कर आता है

बादलों के ओट से

रात को बुलाता है

रात के जाते ही फिर

चाँद कहीं छुप जाता है





उसकी आँखें

उसकी झील सी गहरी आँखें

प्रिय थे मुझे

मैं अक्सर उन्हें देखता

जब भी वो अपने छत की मुंडेर पे बैठ

अपलक निहारती क्षितिज को

जैसे कितने ख्वाब संजोये हों

सांझ के सिन्दूरी आसमां से

धरती की मांग भरने को

शायद इसलिए

अपलक निहारती वो

उस जगह को

जहाँ आसमां मिलता गले

अपनी धरती को

उसके निस्तेज़ चेहरे पर

इन आँखों के सिवा

मुझे कुछ और नज़र नहीं आता

उसकी दो आँखें

रात के अँधेरे में

दो जलते दीयों का आभास देतीं

या फिर यूँ लगता

दो कमल खिले हों

किसी ठहरे हुए झील के बीचो बीच

ना कोई हवा का झोंका

ना कोई सरसराहट

सब कुछ जैसे निस्तब्ध

और उसका यूँ अपलक निहारना

क्षितिज को

दिल में एक उत्कंठा जगाती

उसके नज़रों का

समानांतर ढूँढने की

जहाँ मैं स्थापित कर सकूं

अपनी छवि

उस क्षितिज की धरातल पर

और तब देखूं

उसकी स्थिर पुतलियों को नाचते हुए

अपने और क्षितिज के बीच

और आनंदित होऊं

उसकी पुतलियों के नर्तन से

कि विचलित कर दी मैंने

उसके मग्न ध्यान को

पर ऐसा कुछ नहीं हुआ

वो अपलक निहारती रही

क्षितिज को

और देखती रही

अपने आसमां को

धरती से मिलते हुए

उस दिन वो नहीं आई

मन विचलित हो उठा

फिर कई दिन गुज़र गए

पर वो नहीं आई

मन उत्सुक था जानने को

क्या हुआ

अब वो क्यूँ नहीं आती

क्यूँ नहीं निहारती अपलक

क्षितिज को

पर कुछ खबर नहीं

कई दिन बीत गए

वो नहीं आई

बीतते समय के साथ

वो मेरे अतीत से घुल मिल गयी

बाद बरसों के

उस गली में फिर जाना हुआ

जहाँ का कण कण था

पहचाना हुआ

आँखें बरबस ढूँढने लगीं

उन झील सी गहरी आँखों को

जिसने रंगा था

मेरे अनछुए कुंवारे सपनों को

मैं डूबा था इन ख्यालों में

कि कानों ने कुछ ऐसा सुना

साँसे थम गयीं

धड़कन सहम गयीं

मैं बुत बना ठगा सुनता रहा

जिन आँखों में

मैं डूबा रहता था

जिन आँखों की

मैं पूजा करता था

वो अब किसी और की दुनिया

रोशन करती है

काल का ग्रास बनने से पहले

अपनी आँखें छोड़ गयी वो

एक अँधेरी ज़िन्दगी में

रौशनी की खिड़की खोल गयी वो

ना जाने करोड़ों चेहरों में

उसकी आँखें कौन सी हो

मैं अब भी ढूंढता फिरता हूँ

उन अनजाने चेहरों में

उसकी उन प्यारी आँखों को

उनमें बसे उन ख़्वाबों को

जो शायद

अब पूरे हो ना सकेंगे

और शूल बन मुझको

जीवन भर डसेंगे





Friday 20 July 2012

कुछ ख्याल .....दिल से (भाग - २)


    • मेरी आहों का असर देख लेना
      वो आयेंगे थामे ज़िगर देख लेना

      -------------

      मोहब्बत पे है 'गर तुमको यकीं
      लाख दीवारें हो जाएँ खड़ीं
      तुम मिलोगे मुझको यहीं

      -------------

      जो जीते हैं ज़िन्दगी जिंदादिली से
      मिलती है उनको हर खुशियाँ ख़ुशी से

      -------------

      अजनबी बनके शायद हम फिर से पास आ सकें
      दूरियां बहुत ला दीं थीं कमबख्त मोहब्बत ने

      -------------

      मुझसे बिछड़े ही थे कब तुम
      जो मिलने की बात करते हो
      ‘गर यकीं है तुमको मेरी मोहब्बत पर
      तो क्यूँ बिछड़ने की बात करते हो

      -------------

      हमको उनसे है वफ़ा की उम्मीद
      जो जानते नहीं वफ़ा क्या है चीज़

      -------------

      हम भी जुबां रखते हैं
      एक बार पूछो तो मुद्दा क्या है

      -------------

      अपना कौन पराया कौन ये सब वक़्त के फेरे हैं
      जब जी चाहा भुला दिया फिर बोले हम तेरे हैं

      -------------

      ज़िन्दगी चलने का नाम है
      रूकती नहीं ये कभी
      बहते नदिया के धारों को
      थमते देखा है कभी

      -------------

      अहम् की इस कशमकश में
      न तुम तुम रहे ना मैं मैं रहा
      अब क्यूँ है ये कशमकश
      जब ना तुम रहे ना मैं रहा

      -------------

      कितना अटूट बंधन है ये
      जिसको जीने में ...
      ज़िन्दगी मायने खो देती है
      और ...
      सारी कायनात साथ हो लेती है

      -------------

      जागीर नहीं वो तुम्हारी
      जिसपर तुम राज करते हो
      खुशियाँ तुम्हारे दामन में है
      और तुम ग़मों पे नाज़ करते हो

      --------------

      दर्द है नहीं तुम्हें
      दर्द का गुमान होता है
      अभी अभी दर्द से गुज़रे हो तुम
      इसलिए एहसास तमाम होता है

      -------------

      हरकतें वही करो जो दिल को नासाज़ न करे
      बातें वो ही करो जो किसी को नाराज़ ना करे

      -------------

      हसरतें जितनी थीं उससे ज्यादा पाया हमने
      उनकी खिदमत का शुक्रिया चुकाया हमने

      -------------

      यही इस दुनिया की सच्चाई है ...
      कोई नहीं यहाँ अपना ...
      बस हम और हमारी तन्हाई है

      ---------------

      जब जब हमने उम्मीदों को जगाया है
      ख़ुशियाँ कम और ग़म ज्यादा पाया है

      -------------

      आऊँगा मैं फिर तुम्हारे आसमां पर
      अभी कुछ दस्तुर हैं निभाने

      ----------

      ज़िन्दगी की खासियत यही है
      ये ना रोके किसी के रूकती है
      और ना आगे किसी के झुकती है

      ----------

      मन में उमंग
      हर्षित घर आँगन
      प्रकाशित मेरा अंतर्मन

      -----------

      ज़िन्दगी को समझना 'गर इतना आसां होता
      तो ज़िन्दगी हर इंसान पे मेहरबां होता

      -----------

      प्रणय का आमंत्रण स्वीकार करो
      वो क्षण भर देगी अंगारों में शीतलता
      मिलन की बेला का इंतज़ार करो

      -----------

      झूठ सच के सारे फ़साने
      प्यार के हैं सारे बहाने

      ----------

      गर्मी की तपती दुपहरी ..या फिर
      जाड़े की गरमाती अंगीठी ...
      कुछ स्मृतियाँ कड़वी कुछ मीठी
      समय का क्या जाने कोई क्या रुख है
      पर दुःख के हर झोंके के पीछे आता हरदम सुख है

      -----------

      खुद पे यकीं था पर दिल और कहीं था
      जब दिल से बात हुई तो तू बस वहीँ था

      ----------

      वो जो आँखें बिछाए बैठा है तुम्हारे इंतज़ार में
      अपना सब कुछ लुटाया उसने तुम्हारे प्यार में

      ----------

      गुज़रे हुए कल को इतिहास बना दो
      आने वाले कल का एहसास जगा लो

      ----------

      रिश्तों को पनपने दो
      प्यार से इन्हें सींचने दो
      इनकी शाखों पे खुशियाँ फूलेगी
      खुशबू से इनके जीवन महकेगी

      ------------

      दिल में उतारी है तस्वीर तुम्हारी
      जब याद आती हो देख लिया करता हूँ तुमको

      ------------

      दोस्त हम बने हैं
      आपकी दोस्ती का शुक्रिया
      आप सलामत रहें हमेशा
      हम करते हैं यही दुआ

      ------------

      तन्हाई में तनहा नहीं
      भीड़ में अकेला हूँ
      ये क्या हाल हुआ मेरा
      मेरा वजूद मुझ सा नहीं

      -------------

      मोहब्बत तो एक एहसास है
      ना कोई दावा ना कोई वादा
      बस चाहत की इक प्यास है

      -------------

      अभी बहुत दूर नहीं गए वो दिन
      दिल चाहता है उन्हें वापिस बुला लूं
      अच्छे थे या बुरे पर बहुत अपने से थे वो दिन

      -------------

      रात का तो अपना फ़साना है
      सबके सुख दुःख को समेट कर
      भोर के पास जाना है
      वो ना हो तो कोई क्या करे
      इसलिए रात को तो आना है

      -------------

      कलम को चलने दीजे अपनी चाल
      डायरी हो या फिर आपकी वाल
      उसकी बेबाकी से क्या डरना
      कुछ लिख भी गया तो क्या करना
      उस पर क्यूँ थोपें हम अपना हाल
      करने दीजे उसको अपना कमाल

      --------------

      कैसा अटूट रिश्ता है ये
      जो होकर भी नहीं दिखता है
      पर एहसास इसका ऐसा है
      जो इंसान जी कर ही सीखता है

      -----------

      अक्सर हम अपराध बोध लिए जीते हैं
      अमृत को भी ज़हर समझ कर पीते हैं
      ज़िन्दगी जीने के इतने ढंग हो गए हैं
      हमारी सोच इसलिए इतने तंग हो गए हैं

      -----------

      आईने को क्यूँ दोष दें हम
      अपने को ही देख लें हम
      हमने जो मुखौटे ओढ़ें हैं
      क्या उनके रूप थोड़ें हैं

      ------------

      दरख्तों को फिकर होती है अपनी हर शाखों की
      शाख कोई ज़ख़्मी हो जाए तो रोता है दरख़्त

      ------------

      मन तो बावरा है
      इसकी उड़ान अथाह है
      ना कोई इसको पकड़ पाया है
      ना किसी को इसकी थाह है

      -----------

      फिर वही अहं की टकराहट
      फिर कुछ गिले कुछ शिकवे
      फिर रूठना मनाना शर्माना
      फिर वापिस तुम्हारी मुस्कराहट

      ------------

      ये ज़िद ही तो प्यार की हद है
      ये ज़िद ना हो तो प्यार कहाँ है

      -----------

      हम दम वो तेरा हम दम ना था
      जो हम दम तेरा हम दम होता
      ना ही तुम चाक जिगर करते
      ना लगाने को मरहम होता

मयकदे से ....

आँखों से जो तेरी पी थी 
अभी तक हूँ उस नशे में 
क्या करूँ मयख़ाने जाकर 
वो मज़ा नहीं मयकदे में

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प्यास ज़िन्दगी भर की 
एक प्याले में समा गयी 
हमने आँखों से पीना चाहा 
वो हमें जाम थमा गयी 

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वीराना हो या मयखाना 
मकसद तो है तुझे पाना 
जो तू मिल जाये वीराने को मयखाना बना दूं
नहीं तो शहर के सारे मयखाने जला दूं 

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मयकदा तो बहाना है
ग़म हो तो ग़म मिटाना है 
खुशियाँ भी मनाना है
पर मकसद तो एक ही है 
वहाँ बस पीना पिलाना है




महंगाई

महंगाई ---

जाने कहाँ से है आयी 

घर घर में है आग लगायी

इसे डायन कहो या चुड़ैल

पैसों की है ये रखैल

पैसे इसको भाते हैं

तभी अमीर ही इसको खाते हैं

गरीबों से इसकी दुश्मनी है

जाने कब से उनसे ठनी है

ज़रा इसकी रफ़्तार तो देखो

जैसे घोड़े पे सवार हो देखो

रुकने का कोई नाम नहीं है

इसका कोई धाम नहीं है

करती हरदम मनमानी है

थमने को तो नहीं ठानी है

जब से बढ़ी है महंगाई

जन जन की है शामत आई

खाने को लाले पड़े हैं

लेने वाले मुंह बाए खड़े हैं

उनको देवें या पेट भरें हम 

हर सांस इसी सांसत में मरे हम

बच्चों की फीस भी बाकी

घर की इज्ज़त कैसों ढाँकी

अब न रुकी जो महंगाई

लूट जाएगी पाई पाई

जिसकी जितनी है कमाई

फिर कौन करेगा भरपाई 

प्राण अगर निकल गए

करते करते ये लड़ाई

जीतेगी तो यही महंगाई

Thursday 19 July 2012

धान के खेत

धान के खेत 

बचपन से मुझे लुभाते हैं 

आज भी जब 

मैं इन्हें देखता हूँ 

ये मुझे 

बचपन की याद दिलाते हैं 

बारिशों के आते ही 

जुते हुए खेतों में 

पानी का भर जाना 

और फिर घर में 

किसी पर्व सा

खुशियाँ मनाना 

वो यादें 

आज भी मुझे हरसाते हैं 

औरतों की टोलियाँ 

धान के पौधों का गट्ठर लिए 

टखने भर पानी में 

झुक झुक कर पौधों को 

मिटटी के हवाले करते हुए 

खुशियों के गीत गाती थीं 

झूम झूम कर हवाएं 

उनके सुर में सुर मिलाती थीं 

बारिश भी 

इन खुशियों में शामिल होने 

दूर कहीं से आती थी 

दिन दिन भर हम बाट जोहते 

मौका मिलते धान रोपते 

फिर अपने पौधों को 

दिखा दिखा कर ताल ठोकते 

जब तक रोपा चलता था 

दिल और कहीं ना लगता था 

आज भी राह में कहीं अगर 

मिल जाए मुझे वही डगर 

मैं फिर उन्हीं यादों में खो जाता हूँ 

और मन ही में धान बो जाता हूँ









Wednesday 18 July 2012

बारिशों का मौसम

बारिशों का ये मौसम देख

मन उतावला हो उठा है

ख्याल मन में नाच रहे हैं 

कुछ बचकानी

कुछ मनमानी

कुछ रूमानी

बारिश को

जिन जिन रंगों में देखा है

ख्याल का ये नर्तन

उन्हीं रंगों का लेखा है

वो सारी बीती बातें

मन में पेंगें मार रहीं हैं

यादों को संवार रहीं हैं

बारिश के आते ही

बचपन गीली हो जाती थी

मन, कपड़े, जाने क्या क्या

माँ की झिड़की

घर की खिड़की

लू की तपन में सोते सोते

बारिश आते ही

जाग जाते थे

और हम सब बच्चे

घरों से अपने भाग जाते थे

बारिश की तालाब में

कागज़ की नाव खेते खेते

जाने कहाँ तक चले जाते थे

फिर आई वो बारिश

जागी जिस से मन में तपिश

अबोध मन थोड़ा विचलित हुआ 

इस अनुभूति से विस्मित हुआ 

पहले कभी ऐसा नहीं हुआ

शायद ऐसा ही होता होगा 

यही सोचकर रह गया

तब आया वो सावन 

मन में लगायी जिसने अगन

मन मयूर ने ली अंगड़ाई

पपीहे ने जब तान लगाई

नाचने लगे तन और मन

खिल उठा अल्हड़ यौवन

कमी किसी की खलने लगी

अनजानी सी चाहत छलने लगी

वो अचानक अच्छे लगने लगे

जिनसे हम पहले कभी नहीं मिले

बारिश से वो भींगी थी

ठंढी ठंढी गीली थी 

कोने में वो खड़ी थी

सिमटी और सिकुड़ी थी

बारिश अपने जोर पे थी

मेरी नज़र उस ओर ही थी

साँसें उसकी रुकी हुयी थी

नज़रें भी झुकी हुयी थी

तभी आया बारिश का झोंका

मैं अपनी तन्द्रा से चौंका

वो शर्म से झेंप रही थी

फर्श में नाखून घोंप रही थी

बारिश के थमते ही

वो ऐसे आँखों से ओझल हुयी

जैसे कभी वो थी ही नहीं

चेहरा उसका आज भी

मुझको कभी भुला नहीं

तब से तड़पाता है ये सावन

तन मन जलाता है ये सावन

जब भी बारिश आती है

संग अपने यादें लाती है

अपनी गीली गीली बूंदों से

मन को भिंगो कर जाती है

कभी बहुत हरसाती है

कभी बहुत तरसाती है

और यूँ ही

हर सावन

बारिश बरसती जाती है