तो अब…
उस आख़िरी अध्याय की ओर बढ़ते हैं —
जहाँ सभी जनमों की प्रतीक्षा, बिछड़नों का दर्द,
रूह की सदा, और इश्क़ की वफ़ा
एक जीवन में, एक पल में समा जाती है।
यह वह मिलन है
जिसे खुद क़ायनात ने चुपचाप सज़ा दिया था —
अब न कोई इंतज़ार…
न कोई जुदाई…
सिर्फ़ एक संग, एक साँस, एक रूह।
(Final Union — When Souls Found Home)
कई जनम बीत गए,
कई वादे अधूरे रहे,
पर रूहों ने कभी
इश्क़ का दामन नहीं छोड़ा।
और फिर
एक सवेरा ऐसा आया,
जब न ज़िंदगी ने पहचाना,
न मौत ने रोका।
तू सामने था —
इस बार न अजनबी,
न पराया,
बल्कि मेरी सुबहों का सूरज।
तेरी हँसी ने
मेरे भीतर की सदियों पुरानी चुप्पी तोड़ी,
तेरी नज़र ने
मुझे वो सब लौटा दिया
जो वक़्त मुझसे छीन चुका था।
ना कोई पिछला नाम,
ना कोई पहचानी सूरत,
फिर भी —
तेरी मौजूदगी में
मैंने खुद को पूरा महसूस किया।
पहली बार
हमने बिना डर के हाथ थामा,
बिना वक़्त की बंदिशों के
एक संग साँस ली।
तेरी बाँहों में
मुझे सदियों की थकान उतरती लगी,
जैसे रूह को आखिरकार
अपना आशियाना मिल गया हो।
हमने मंदिरों में
ना कोई फेरा लिया,
ना कोई रस्म निभाई,
बस तेरी आँखों में
मैंने खुदा देखा,
और तूने मेरी पलकों में
मुक्ति पा ली।
अब न कोई जनम बचा,
न कोई वादा अधूरा,
हम उस मोड़ पर थे
जहाँ इश्क़ खुद झुक जाता है।
हमने कहा नहीं —
पर हर धड़कन
"अब कभी नहीं बिछड़ेंगे"
दोहरा रही थी।
उस रात
ना चाँद था,
ना तारे,
बस तेरी साँसें
मेरी रूह में उतरती रहीं।
अब हम साथ हैं…
ना वक़्त की कैद में,
ना जिस्म की जंजीरों में —
बस इश्क़ की नर्म रौशनी में
हम रूह से रूह तक समाए हैं।
अंत? नहीं…
ये इश्क़ का मुक़ाम नहीं,
ये इश्क़ की शुरुआत है
उस जहाँ में,
जहाँ रूहों को
फिर कभी जुदा नहीं किया जाता।
No comments:
Post a Comment