Sunday 23 November 2014

मेरी अर्द्धांगिनी

मेरी अर्द्धांगिनी 

मेरे जिस आधे अंग में तुम रहती हो 

वो मेरी सारी खुशियों की वजह है

और उन खुशियों से तुम मुझे पूरा करती हो 

मेरी अर्द्धांगिनी 

तुम्हारे चेहरे पर फैली हुयी मुस्कराहट 

में ही है मेरी खुशियों की आहट 

और उस आहट की चाह में 

मेरी ज़िन्दगी तुम पर न्योछावर है 

मेरी अर्द्धांगिनी 

मेरी हर सांस पर तुम्हारा नाम लिखा है 

हर धड़कन तुम्हारे नाम किया है मैंने 

मेरा आधा हिस्सा होकर भी तुम 

मेरी पूरी ज़िन्दगी हो 

मेरी अर्द्धांगिनी 

मेरी ज़िन्दगी की हर बात में तुम हो 

मेरे हर दिन रात में तुम हो 

मेरी हर जज़्बात में तुम हो 

तुम से मैं हूँ मेरी ज़िन्दगी 

मेरी ज़िन्दगी तुम हो

मेरी अर्द्धांगिनी





Tuesday 15 July 2014

हम और तुम

हम और तुम

थे अजनबी

दो जान

अलग अलग

दो ज़िन्दगी

अलग अलग

दो परिवेश

अलग अलग

रस्म-ओ-रिवाज़

अलग अलग

सोच विचार

अलग अलग

पर कुछ ऐसा था

जो एक जैसा था

हमारी नियति की रेखायें

जो हमें

एक दूसरे की तरफ खींच रहे थे

जब से

हम चले थे

हम मिले

इन रेखाओं के संगम पर

और फिर

इस संगम के पार

जाने कैसे

हम

दो बदन

एक जान हो गये

खुद को छोड़

दूसरे की पहचान हो गये

अब तो चोट तुमको लगती है

तो दर्द मुझको होता है

खुशियाँ कितनी भी क्यूँ ना हो

जो तुम न मुस्कुराओ

तो कम ही होता है

इस सफ़र में

सुख और दुःख

आते जाते रहे

हमें

और हमारी सहनशक्ति को

आज़माते रहे

साथ तुम थी

तो हम थे

साथ तुम हो

तो हम हैं

हमारा यह सफ़र

जाने कितने मोड़ों से

गुज़रा होगा

जाने कितने मौकों पर

ठहरा होगा

पर

बस एक साथ तुम्हारा पाकर

चलता रहा हूँ मेरी हमसफ़र

मेरी ज़िन्दगी मेरी हमनफज़

तुमसे बस इतना ही है कहना

बस यूँ ही मेरे संग संग रहना







मैं मोहब्बत में हूँ

मैं मोहब्बत में हूँ

अब तुमसे क्या कहूँ

बस नशे में हूँ

अब तुमसे क्या कहूँ

पल भर को जी लूं

अब तुमसे क्या कहूँ

चाहे फिर जियूं ना जियूं

अब तुमसे क्या कहूँ

मैं मोहब्बत में हूँ

अब तुमसे क्या कहूँ


अनन्त की ओर

अनन्त की ओर

चला हूँ मैं

पहली सांस से

शुरू हुआ यह सफ़र

आख़िरी सांस पर

शायद अनन्त का द्वार मिले

अग्रसर हूँ मैं बस

हर पल हर घड़ी

उसी अनन्त की ओर

अनन्त के इस सफ़र में

हर मोड़ पर

जाने कितने लोग मिले

जाने कितने बिछड़े

जो मिले

वो अपने भी थे

कुछ सपने भी थे

जो बिछड़े

वो आंसुओं में बह गए

कुछ यादों में रह गये

हसरतों का भी दौर चला

उम्मीदों का भी रहा सिलसिला

कुछ हसरतें रहीं अधूरी

उम्मीदें भी कहाँ हुई पूरी

हर पल हर घड़ी

अग्रसर हूँ मैं

अनन्त के इस सफ़र में

कल से बेख़ौफ़ बेख़बर

अच्छा ही रहा

अब तक का सफ़र

कुछ खुशियाँ मिलीं

कुछ ग़म मिले

आंसुओं से भी हम मिले

ना उड़ने का गुमां रहा

ना गिरने का मलाल

उड़े तो अपनी ज़मीं थाम कर

गिरे तो हौसले नहीं टूटे

बस उठ कर चल पड़े

ठोकरों से सम्हल कर

होनी से बेख़ौफ़ बेख़बर

मालूम नहीं

कब पहुँचना  होगा

उस अनन्त के द्वार पर

विधाता को हो शायद

इसकी खबर

थाम कर आशा की डोर

मैं बस चलता ही जा रहा हूँ

हर पल हर घड़ी

अनन्त की ओर

अनन्त की ओर











Friday 11 July 2014

कभी हम मिले थे

कभी हम मिले थे 

फूलों से खिले थे 

हवाओं में खुशबू थी 

फिज़ाओं में जादू थी 

बस मुस्कराहट ही मुस्कराहट थी 

हर तरफ खुशियों की आहट थी 

फिर एक दिन जाने क्या हुआ 

जैसा पहले कभी नहीं हुआ 

जाने कहाँ से इक सैलाब आया 

तिनके तिनके से हमारा आशियाँ बहाया 

पल भर में कैसे सब कुछ बिखर गया 

मेरा प्यार मुझसे बिछड़ गया 

अब तो बस तनहाई है 

तू नहीं बस तेरी परछाईं है 

तरसती हैं निगाहें 

तड़पती हैं बाहें 

इंतज़ार के पल 

करे बेसुध बेकल 

आँखें हैं पथराई सी 

साँसे हैं घबराई सी 

ना दिन डूबा ना शाम ढली 

ना रात हुआ ना सहर मिली 

ज़िन्दगी जैसे ठहर गई 

उस तूफां से सिहर गई 

मन कहीं उलझा उलझा सा है 

हर पल बुझा बुझा सा है 

खुशियों को जाने किसकी लगी नज़र 

दुआओं में भी अब नहीं रहा असर 

कब आओगे तुम कुछ तो बता दो 

कहाँ चले गए कुछ तो पता दो 

तुम जब भी आओगे 

जीने को तैयार मिलूँगा 

'गर ज़िन्दगी के इस पार नहीं 

तो मर कर उस पार मिलूँगा 

रूह मेरी तड़पती रहेगी 

जब तक तुमसे नहीं मिलेगी 

अब रूह को मेरी और मत तड़पाना 

मेरी ज़िन्दगी तुम जहाँ भी हो 

मेरी आह सुन बस चली आना 








Friday 20 June 2014

बस तेरे इक दिल तोड़ने के बाद

इस दिल पर हर दर्द बेअसर है

बस तेरे इक दिल तोड़ने के बाद

लगती मय भी अब तो ज़हर है

बस तेरे इक दिल तोड़ने के बाद

पड़ी चमन पर ख़िज़ाँ की नज़र है

बस तेरे इक दिल तोड़ने के बाद

समंदर में भी कहाँ उठती अब लहर है

बस तेरे इक दिल तोड़ने के बाद

ज़िन्दगी भी मेरी गई बस ठहर है

बस तेरे इक दिल तोड़ने के बाद 

Friday 6 June 2014

तुम और बस तुम .....

मयख़ाने के मय में

वो नशा कहाँ

जो नशा

तुम्हारी आँखों में है

चमन के फूलों में

वो ख़ुश्बू कहाँ

जो ख़ुश्बू

तुम्हारी साँसों में है

किसी तरन्नुम में

वो कशिश कहाँ

जो कशिश

तुम्हारी धड़कनों में है

आफताब की रौ में

वो अगन कहाँ

जो अगन

तुम्हारी नज़रों में है

बारिश की बूंदों में

वो तपन कहाँ

जो तपन

तुम्हारी बाहों में है

किसी और ख्वाब की

ऐसी ताबीर कहाँ

जो ताबीर

तुम्हारे ख़्वाबों में है

मेरे सज़दों में

वो असर कहाँ

जो असर

तुम्हारी दुआओं में है

बस असर

उन दुआओं का

इतना हो कि

इस ज़िन्दगी के उस पार भी

बस तुम हो तुम हो तुम हो




Thursday 29 May 2014

तेरे अरमान

मैंने देखा है

तेरे अरमानों को

तेरी आँखों से छलकते हुए

मैंने देखा है

तेरे अरमानों को

तेरी साँसों में महकते हुए

मैंने देखा है

तेरे अरमानों को

तेरी अंगड़ाईयों में मचलते हुए

मैंने देखा है

तेरे अरमानों को

तेरी धड़कनों में धड़कते हुए

अब ये हसरत है मेरी

कि देखूं तेरे अरमानों को

मेरी हसरतों में खिलते हुए 

Tuesday 20 May 2014

फासले

फासले यूँ भी न बढ़ा

इन दिलों के बीच

कि लौट कर

आ ना सकें हम कभी

इन दायरों में बंध कर

अब कहाँ गुज़र पाएगी

यह ज़िन्दगी

यूँ जीने के बाद

घुट घुट कर मर जायेगी

यह ज़िन्दगी

यूँ जीने के बाद

Monday 13 January 2014

जकड़ा हूँ ज़ंज़ीरों में

जकड़ा हूँ

जाने किन ज़ंज़ीरों में

कागज़ पर

खिंची चंद लकीरों में

कि

साँसों को भी

मुहाल है ज़िन्दगी

जाने क्यूँ

बदहाल है ज़िन्दगी

छटपटाता हूँ

पर कटे पंछी की तरह

तड़पता हूँ

जल बिन मछली की तरह

राह कोई सूझता नहीं

चाह कोई बूझता नहीं

मतलब के लिए सब अपने हैं

मतलबों से बाहर सब सपने हैं

ज़िन्दगी जी रहा हूँ औरों के लिए

अपनों को खो रहा हूँ गैरों के लिए

अब और बोझ नहीं उठा सकता

खुद को और नहीं गिरा सकता

ए मौत तू क्यूँ नहीं दखल देती

अपनी बाहों में क्यूँ नहीं भर लेती

थक चुका हूँ मौत से पहले मर मर कर

अब शायद सुकून मिले सच में मर कर