कभी जो मैं चट्टान बनूँ
तुम नदी बन कर आना
मुझसे टकराना
फिर मेरे टुकड़ों को
अपने साथ बहा ले जाना
शायद तभी टूट पाए
मेरे अहम् का ये चट्टान
मुझसे
अब ये नहीं सम्हलता
चाहूं तो भी नहीं पिघलता
तुम जब
नदी बन कर आओगी
इसके टुकड़े टुकड़े हो जायेंगे
फिर तुम्हारी तेज़ धार में
ये सारे टुकड़े बह जायेंगे
कण कण बन बिखर जायेंगे
तुम नदी बन
यूँ ही बहती रहना
उन चूर हुए टुकड़ों के
कण कण को
इतनी दूर बिखेर देना
कि फिर कभी वो
चट्टान ना बन पाए
मेरे अहम् का
अच्छा लिखा - "फिर कभी वो
ReplyDeleteचट्टान ना बन पाए
मेरे अहम् का.." अच्छे भाव, शुभकामनाएँ
मुझे भी तो अहम् था अपनी तेज़ रफ्त का
ReplyDeleteअच्छा ही हुआ जो तुमसे टकरा गयी
मेरे तुम्हारे दोनों के अहम् का हनन हुआ
और तुम्हारे कण कण से मेरा मिलन हुआ.....:)