अपने कुछ अहसासों को
आज मैं छोड़ रहा हूँ
उनसे जुड़े हर रिश्तों से
अपना नाता तोड़ रहा हूँ
शायद उनका बोझ उठाना
मुमकिन ना था
इस दिल के लिए
कोशिशें बहुत कीं
मगर हो ना सका
उन उम्मीदों का बोझ
मैं ढो ना सका
किसी के जज्बातों को
अपनी नाकामियों से
कुचलने से बेहतर है
उन जज्बातों से
रुखसत हो जाना
आसां ना था
यूँ उनके ख्यालों से
उनके जज्बातों से
रुखसत होना
पर
मुनासिब भी तो ना था
किसी के जज्बातों को
यूँ कुचलना
इसलिए
अपने दिल पर
पत्थर रख कर
मैंने ये फैसला किया कि
अपने उन अहसासों को
मैं छोड़ दूं
जिनसे उनकी यादें
जुड़ी हुई हैं
वो जहाँ भी रहें
खुश रहें सलामत रहें
उनको मेरी उम्र भी बख्श देना
मेरे खुदा
उनकी खुशियों से उनको
कभी ना करना जुदा
आज मैं छोड़ रहा हूँ
उनसे जुड़े हर रिश्तों से
अपना नाता तोड़ रहा हूँ
शायद उनका बोझ उठाना
मुमकिन ना था
इस दिल के लिए
कोशिशें बहुत कीं
मगर हो ना सका
उन उम्मीदों का बोझ
मैं ढो ना सका
किसी के जज्बातों को
अपनी नाकामियों से
कुचलने से बेहतर है
उन जज्बातों से
रुखसत हो जाना
आसां ना था
यूँ उनके ख्यालों से
उनके जज्बातों से
रुखसत होना
पर
मुनासिब भी तो ना था
किसी के जज्बातों को
यूँ कुचलना
इसलिए
अपने दिल पर
पत्थर रख कर
मैंने ये फैसला किया कि
अपने उन अहसासों को
मैं छोड़ दूं
जिनसे उनकी यादें
जुड़ी हुई हैं
वो जहाँ भी रहें
खुश रहें सलामत रहें
उनको मेरी उम्र भी बख्श देना
मेरे खुदा
उनकी खुशियों से उनको
कभी ना करना जुदा
कुछ इस तरह से कहें
ReplyDeleteनई उम्मीद अब ना बंधेगी
नई कशिश अब ना जगेगी
बंधी थी जो रिश्तों की डोर उन संग
वो अब ओर दूर तक नहीं चलेगी ||
कहाँ अपने बस में होता है अहसासों का होना.... अहसास हैं...थे....और रहते हैं सदा !
ReplyDeleteदर्द को पिरोती रचना ....