चाहत का ये अंदाज़ भी कितना निराला
है
चाहत ने उनकी टूटने से हमको
सम्हाला है
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मौन ही प्यार है मौन
दुलार है मौन इकरार है
मौन अहसास की भाषा और मौन ही मनुहार
है
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ये जिंदगी तो यूँ ही करवट बदलती रहती
है
कभी हंसी तो कभी आंसुओं में ढलती रहती है
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असर तुम्हें दिखे ना दिखे तुम्हारी
दुआओं का
दुआओं से पहले आकर उसने तुम्हें थाम
लिया है
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जिन ख़्वाबों की ताबीर नहीं
उन्हें आँखों में मत सजाओ तुम
वो नासूर बन कर चुभेंगे
जब ख्यालों में उनको लाओगे तुम
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खफा 'गर हम होते उनकी फितरतों से
ख्यालों में ना होते वो हमारे
हसरतों के
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शब्दों की धार से डरती है तलवार भी
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शब्द मांझी भी है शब्द पतवार भी
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दरख्तों को भी फिकर होती है अपनी हर शाखों की
‘गर शाख कोई ज़ख़्मी हो तो दरख़्त अपने आंसू रोता है
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मोहब्बत तो एक अहसास है
ना कोई वादे ना कोई दावे
बस चाहत की इक प्यास है
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तन्हाई में तनहा नहीं भीड़ में अकेला हूँ
ये क्या हुआ मेरा वजूद मुझ सा नहीं
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गुज़रे हुए कल को इतिहास बना दो
आने वाले कल का एहसास जगा लो
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वो जो आँखें बिछाए बैठा है तुम्हारे इंतज़ार में
उसने अपना सब कुछ लुटाया तुम्हारे प्यार में
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खुद पे यकीं था पर दिल और कहीं था
जब दिल से बात हुई तू बस वहीँ था
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सोने को कह कर ख़्वाबों में चल दिए
हम तनहा चाँद तकते रहे
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