Sunday 2 September 2012

तुम्हारा स्पर्श

मेरा अंतस

आज भीग गया

तुम्हारे उस एक स्पर्श से

तुमने मुझे थामा था

जब अचानक मैं लड़खड़ाई थी

यूँ ही तुम्हारे साथ चलते चलते

सदियों से सुखा था

मेरा मन

तरस रहा था

तुम्हारे उस एक स्पर्श को

शायद मेरा तन

तुम कितने अनजाने से लगे

मेरे एहसासों से

कितने बेगाने से लगे

मेरे जज़बातों से

मेरी आँखों में क्यूँ नहीं दिखता

प्यार तुम्हें

जब मैं तुम्हें तकती हूँ अपलक

या फिर

तुम अनजाने बने रहते हो

अपने प्यार को

अपने मन में छुपाये

कि मैं आकर तुमसे कहूं

मुझे तुमसे प्यार है

क्या तुम

अपनी उस झिझक से

निकल नहीं सकते

और मुझसे कह नहीं सकते

हाँ मुझे तुमसे प्यार है








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