रात के आसमां को
आसमां से उतार कर
कभी
अपनी ज़मीं पर ले आऊँ
फिर
ज़मीं पर
तारों की बारात सजाऊं
ओस से
चाँद को नहलाऊँ
फिर
चाँद को दुल्हन बनाऊं
और
चांदनी की ओढ़नी से
उसका चेहरा छुपाऊँ
फिर
उस चाँद को
अपने चाँद से मिलवाऊँ
आसमां से उतार कर
कभी
अपनी ज़मीं पर ले आऊँ
फिर
ज़मीं पर
तारों की बारात सजाऊं
ओस से
चाँद को नहलाऊँ
फिर
चाँद को दुल्हन बनाऊं
और
चांदनी की ओढ़नी से
उसका चेहरा छुपाऊँ
फिर
उस चाँद को
अपने चाँद से मिलवाऊँ
No comments:
Post a Comment