Thursday, 29 June 2017

अंतर्मन के ताने-बाने

अंतर्मन के ताने-बाने
कुछ औरों से हैं अनजाने 
कुछ है जो सबसे कहा नहीं 
कुछ है जो अब तक सहा नहीं 
कुछ पीड़ाएँ मेरे अंदर 
कुछ सुख भी हैं भीतर-बाहर 
जो हूँ मैं,वो मैं हो न सकी 
जो हुयी आज,वो छल भर है 
ये जीवन- चक्र बना ऐसा 
ये तो बस इक माया भर है 
तुम आए मेरे जीवन में 
लगता सब कुछ अब सुंदर है 
क्या तुमको सब मैं बतला दूँ ?
क्या हृदय तुम्हें मैं दिखला दूँ ?
ये अंतर्द्वंद चला मुझ में 
कोलाहल अब है मचा हुआ 
कैसे मैं ख़ुद को समझाऊँ 
कैसे तुमको मैं दिखलाऊँ
अंतर्मन के ताने- बाने 
जिनसे तुम हो यूँ अनजाने .........उसने कहा था

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