अंतर्मन के ताने-बाने
कुछ औरों से हैं अनजाने
कुछ है जो सबसे कहा नहीं
कुछ है जो अब तक सहा नहीं
कुछ पीड़ाएँ मेरे अंदर
कुछ सुख भी हैं भीतर-बाहर
जो हूँ मैं,वो मैं हो न सकी
जो हुयी आज,वो छल भर है
ये जीवन- चक्र बना ऐसा
ये तो बस इक माया भर है
तुम आए मेरे जीवन में
लगता सब कुछ अब सुंदर है
क्या तुमको सब मैं बतला दूँ ?
क्या हृदय तुम्हें मैं दिखला दूँ ?
ये अंतर्द्वंद चला मुझ में
कोलाहल अब है मचा हुआ
कैसे मैं ख़ुद को समझाऊँ
कैसे तुमको मैं दिखलाऊँ
अंतर्मन के ताने- बाने
जिनसे तुम हो यूँ अनजाने .........उसने कहा था
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