कभी जब मैं न रहूँ,
तन्हा शामों में न ढूँढना मुझे,
कोहरे की चादर ओढ़े
मैं बहुत दूर निकल जाऊँगा।
जो फूल मैंने छूए थे,
अब मुरझा चुके होंगे,
जो गीत मैंने गाए थे,
अब खामोशी में डूबे होंगे।
तू रोए नहीं —
क्योंकि मेरा होना,
तेरे आँसुओं का मोहताज नहीं।
मैं वक़्त की रेखाओं में,
तेरे स्पर्श सा रहूँगा कहीं।
मेरी चिट्ठियाँ अगर मिलें,
तो उन्हें मत जलाना,
बस रख लेना तकिये के नीचे,
जैसे मैं वहीं सोया हूँ।
तू मुझे भूल भी जाए तो अच्छा है,
क्योंकि यादें,
कभी-कभी बहुत बेदर्दी होती हैं,
छोटे छोटे लम्हों को
घाव बना देती हैं।
अगर कभी नींद में तू मेरा नाम पुकारे
तो समझ लेना —
मैं वहीँ हूँ,
तेरे ज़ेहन की दरारों में,
सिसकते ख़्वाबों में।
तू अपनी दुनिया बना लेना,
उसमें मेरा कोई कोना न हो,
पर अगर कभी ख़ुद को अधूरा पाए,
तो मेरी कविता पढ़ लेना।
हर लफ़्ज़ में,
मैंने अपने प्राण छोड़े हैं,
हर विराम पर,
एक साँस अटकाई है।
मैं नहीं कहूँगा
कि तू किसी और को न चाहे,
मगर जब वो तुझे देखे,
तो मेरी परछाई नज़र न आए।
ये जो आख़िरी विदा है,
ये अंत नहीं है हमारा,
ये तो एक पगडंडी है,
जहाँ से मेरी रूह
तेरे हर गीत के साथ चलेगी।
तो मत कहना फिर कभी —
"वो चला गया..."
कहो बस —
"अब वो एक कविता बन गया है…"
No comments:
Post a Comment